महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 16 श्लोक 1-18

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 12:51, 27 August 2015 by व्यवस्थापन (talk | contribs) (1 अवतरण)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

षोडश (16) अध्याय: द्रोण पर्व ( द्रोणाभिषेक पर्व)

महाभारत: द्रोण पर्व: षोडश अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद

वृषसेनका पराक्रम, कौरव-पाण्‍डव वीरों का तुमुल युद्ध, द्रोणाचार्य के द्वारा पाण्‍डवपक्ष के अनेक वीरों का वध तथा अर्जुन की विजय

संजय कहते हैं- महाराज ! आपकी विशाल सेनाको तितर-बितर हुई देख एकमात्र पराक्रमी वृषसेन ने अपने अस्‍त्रों की माया से रणक्षेत्रमें उसे धारण किया (भागने से रोका) । उस युद्धस्‍थल में वृषसेन के छोड़े हुए बाण हाथी, घोड़े, रथ और मनुष्‍यों को विदीर्ण करते हुए दसों दिशाओं मे विचरने लगे । महाराज ! जैसे ग्रीष्‍म ऋतु में सूर्यसे निकलकर सहस्‍त्रों किरणें सब ओर फैलती है, उसी प्रकार वृषसेन के धनुष से सहस्‍त्रों तेजस्‍वी महाबाण निकलने लगे । राजन ! जैसे प्रचण्‍ड ऑधी से सहसा बडे-बडे वृक्ष टूटकर गिर जाते है, उसी प्रकार वृषसेन के द्वारा पीडित हुए रथी और अन्‍य योद्धागण सहसा धरती पर गिरने लगे । नरेश्‍वर ! उस महारथी वीरने रणभूमि में घोड़ों, रथो और हाथियों के सैकड़ों-हजारों समूहों को मार गिराया । उसे अकेलेही समरभूमिमेंनिर्भय विचरतेदेख सब राजाओं ने एक साथ अाकर सब ओर से घेर लिया । इसी समय नकुलके पुत्र शतानीक ने वृषसेन पर आक्रमण किया और दस मर्मभेदी नाराचों द्वारा उसे बींध डाला । तब कर्णके पुत्र शतानीक के धनुष को काटकर उनके ध्‍वज को भी गिरा दिया । यह देख अपने भाई की रक्षा करने के लिये द्रौपदी के दूसरे पुत्र भी वहां आ पहॅुचे । उन्‍होंने अपने बाण-समूहों की वर्षा से कर्णकुमार वृषसेन को अनायास ही आच्‍छादित करके अदृश्‍य कर दिया । महाराज ! यह देख अश्रत्‍थामा आदि महारथि सिंहनाद करते हुए उन पर टूट पड़े और जैसे मेघ पर्वतों पर जलकी धारा गिराते हैं, उसी प्रकार वे नाना प्रकार के बाणोंकी वर्षा करते हुए तुरंत ही महारथी द्रौपदी पुत्रों को आच्‍छादित करने लगे । तब पुत्रों की प्राणरक्षा चाहने वाले पाण्‍डवों ने तुरंत आकर उन कौरव महारथियों को रोका । पाण्‍डवों के साथ पाचाल, केकय, मत्‍स्‍य, और सृंजय देशीय योद्धा भी अस्‍त्र-शस्‍त्र लिये उपस्थित थे । राजन ! फिर तोदानवों के साथ देवताओं की भॉति आपके सैनिकों के साथ पाण्‍डवों का अत्‍यन्‍त भयंकर युद्ध छिड़ गया, जो रोंगटे खड़े कर देने वाला था । इस प्रकार एक-दूसरे के अपराध करने वाले कौरव-पाण्‍डव वीर परस्‍पर क्रोधपूर्ण दृष्टि से देखते हुए युद्ध करने लगे । क्रोधवश युद्ध करते हुए उन अमित तेजस्‍वी राजाओं के शरीर आकाश मे युद्ध की इच्‍छा से एकत्र हुए पक्षिराज गरूड़ तथा नागों के समान दिखायी देते थे । भीम, कर्ण, कृपाचार्य, द्रोण, अश्रत्‍थामा, धृष्‍टधुम्न तथा सात्‍यकि आदि वीरोंसे वह रणक्षेत्र ऐसी शोभा पा रहा था, मानो वहां प्रलयकाल के सूर्य का उदय हुआ हो । उस समय एक-दूसरे पर प्रहार करने वाले उन महाबली वीरोंमें वैसा ही भयंकर युद्ध हो रहा था, जैसे पूर्वकाल में बलवान् देवताओं के साथ महाबली दानवों का संग्राम हुआ था । तदनन्‍तर उत्‍ताल तरंगो से युक्‍त महासागर की भॉति गर्जना करती हुई युधिष्ठिर की सेना आपकी सेनाका संहार करने लगी । इससे कौरव सेना के बड़े-बड़े रथी भाग खड़े हुए । शत्रुओं के द्वारा अच्‍छी तरह रौंदी गयी आपकी सेनाको भागती देख द्रोणाचार्य ने कहा-शूरवीरों ! तुम भागो मत, इससे कोई लाभ न होगा ।


'

« पीछे आगे »


टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः