महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 23 श्लोक 64-83

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 12:56, 27 August 2015 by व्यवस्थापन (talk | contribs) (1 अवतरण)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

त्रयोविंश (23) अध्याय: द्रोण पर्व (संशप्‍तकवध पर्व )

महाभारत: द्रोण पर्व: त्रयोविंश अध्याय: श्लोक 64-83 का हिन्दी अनुवाद

जिनके माला, कवच, अस्‍त्र–शस्‍त्र और ध्‍वज सब कुछ विचित्र हैं, उन राजा चित्रायुध को पलाश के फूलों के समान लाल रंगवाले उत्‍तम घोड़े संग्राम में ले गये। जिनके ध्‍वज, कवच और धनुष सब एक रंग के थे, वे राजा नील अपने रथ में जुते हुए नील रंग के घोड़ों द्वारा रणक्षेत्र में उपस्थित हुए। जिनके रथ का आवरण, रथ तथा धनुष नाना प्रकार के रत्‍नों से जटित एवं अनेक रूपवाले थे, जिनके घोड़े, ध्‍वजा और पताकाऍ भी विचित्र प्रकार की थी, वे राजा चित्र चितकबरे घोड़ों द्वारा युद्ध के मैदान में आये। जिनके रंग कमलपत्र के समान थे, वे उत्‍तम घोड़े रोचमान के पुत्र हेमवर्ण को रणभूमि में ले गये। युद्ध करने में समर्थ, कल्‍याणमय कार्य करनेवाले, सरकण्‍डे के समान श्‍वेतगौर पीठवाले, श्‍वेत अण्‍डकोशधारी तथा मुर्गी के अण्‍डे के समान सफेद घोड़े दण्‍डकेतु को युद्ध स्‍थल में ले गये। भगवान श्रीकृष्‍ण के हाथोंसे जब युद्ध में पाण्‍डय देशके राजा तथा वर्तमान नरेश के पिता मारे गये, पाडय राजाधानी का फाटक तोड़-फोड दिया गया और सारे बन्‍धु-बान्‍धव भाग गये, उस समय जितने भीष्‍म, द्रोण, परशुराम तथा कृपाचार्य से अस्‍त्रविद्या सीखकर उसमें रूक्‍मी,कर्ण, अर्जुन और श्रीकृष्‍ण की समानता प्राप्‍त कर ली; फिर दारका को नष्‍ट करने और सारी पृथ्‍वीपर विजयपाने का संकल्‍प किया; यह देख विदवान् सुहृदोंने हित की कामना रखकर जिसे वैसा दु:साहस करनेसे रोक दिया और अब जो वैरभाव को छोड़कर अपने राज्‍यका शासन कर रहा है और जिसके रथपर सागर के चिन्‍ह से युक्‍त ध्‍वजा फहराती हैं, पराक्रमरूपी धन का आश्रय लेनेवाले उस बलवान राजा पाण्‍डय ने अपने दिव्‍य धनुष की टंकार करते हुए वैदूर्यमणि की जालीसे आच्‍छादित तथा चन्‍द्रकिरणों के समान श्‍वेत घोड़ों द्वारा द्रोणाचार्य पर धावा किया। वासक पुष्‍पों के समान रंगवाले घोड़े राजा पाण्‍डय के पीछे चलनेवाले एक लाख चालीस हजार श्रेष्‍ठ रथोंका भार वहन कर रहे थे। अनेक प्रकार के रंगरूप से युक्‍त विभिन्‍न आकृति और मुखवाले घोड़े रथ के पहिये के चिन्‍ह से युक्‍त ध्‍वजावाले वीर घटोत्‍कच को रणभूमि में ले गये। जो एकत्र हुए सम्‍पूर्ण भरतवंशियों के मतों का परित्‍याग करके अपने सम्‍पूर्ण मनोरथों को छोड़कर केवल भक्तिभाव से युधिष्ठिर के पक्ष में चले गये, उन लाल नेत्र और विशाल भुजावाले राजा वृहन्‍त को, जो सुवर्णमय रथ पर बैठे हुए थे, अरटदेश के महापराक्रमी, विशालकाय और सुनहरे रंगवाले घोड़े रणभूमि में ले गये। धर्म के ज्ञाता तथा सेना के मध्‍यभाग मे विदमान नृपश्रेष्‍ठ युधिष्ठिर को चारो ओर से घेरकर सुवर्ण के समान रंगवाले श्रेष्‍ठ घोड़े उनके साथ-साथ चल रहे थे। अन्‍य भिन्‍न–भिन्‍न प्रकार के वर्णो से युक्‍त सुन्‍दर अश्रों का आश्रय ले प्रभद्रक नामवाले देवताओं जैसे रूपवान् बहुसंख्‍यक प्रभद्रकगण युद्ध के लिये लौट पड़े। राजेन्‍द्र ! भीमसेन सहित पूरी सावधानी से युद्ध के लिये उघत हुए ये सुवर्णमय ध्‍वजवाले राजालोग इन्‍द्रसहित देवताओं के समान दृष्टिगोचर होते थे। वहां एकत्रहुए उन सब राजाओं की अपेक्षा धृष्‍टधुम्न की अधिक शोभा हो रही थी और समस्‍त सेनाओं से ऊपर उठकर भरदाजनन्‍दन द्रोणाचार्य सुशोभित हो रहे थे। महाराज ! काले मृगचर्य और कमण्‍डलुके चिन्‍ह से युक्‍त उनका सुवर्णमय सुन्‍दर ध्‍वज अत्‍यन्‍त शोभा पा रहा था। वैदूर्यमणिमय नेत्रों से सुशोभित महासिंह के चिन्‍ह से युक्‍त भीमसेन की चमकीली ध्‍वजा फहराती हुई बड़ी शोभा पा रही थी । उसे मैने देखा था।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः