महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 75 श्लोक 16-31

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पंचसप्‍ततितम (75) अध्याय: द्रोण पर्व ( प्रतिज्ञा पर्व )

महाभारत: द्रोण पर्व:पंचसप्‍ततितम अध्याय: श्लोक 16-31 का हिन्दी अनुवाद

‘जयद्रथ के ऐसा कहने पर दुर्योधन अपना सिर नीचे किये मन ही मन बहुत दुखी हो गया और तुम्‍हारी उस प्रतिज्ञा को सुनकर उसे बडी भारी चिन्‍ता हो गयी ।‘दुर्योधन को उद्विग्‍न चित्‍त देखकर सिंधुराज जयद्रथ ने व्‍यंग्‍य करते हुए कोमल वाणी में अपने हित की बातइस प्रकार कही - ।‘राजन! आपकी सेना में किसी भी ऐसे पराक्रमी धनुर्धर को नहीं देखता, जो उस महाययुद्ध में अपने अस्‍त्र द्वारा अर्जुन के अस्‍त्र का निवारण कर सके । ‘श्रीकृष्‍ण के साथ आकर गाण्‍डीव धनुष का संचालन करते हुए अर्जुन के सामने कौन खडा हो सकता है ? साक्षात्‍ इन्‍द्र भी तो उसका सामना नहीं कर सकते ।‘मैंने सुना है कि पूर्वकाल में हिमालय पर्वत पर पैदल अर्जुन ने महापराक्रमी भगवान्‍ महेश्‍वर के साथ भी युद्ध किया था ।‘देवराज इन्‍द्र की आज्ञा पाकर उसने एकमात्र रथ की सहायता से हिरण्‍यपुरवासी सहस्‍त्रों दानवों का संहार कर डाला था । ‘मेरा तो ऐसा विश्‍वास है कि परम बुद्धिमान वसुदेव नन्‍दन श्रीकृष्‍ण के साथ रहकर कुन्‍ती कुमार अर्जुन देवताओं सहित तीनों लोकों को नष्‍ट कर सकता है ।‘इसलिये मैं यहां से चले जाने की अनुमति चाहता हूँ । अथवा यदि आप ठीक समझे तो पुत्र सहित वीर महामना द्रोणाचार्य के द्वारा मैं अपनी रक्षा का आश्‍वासन चाहता हूँ’ । ‘अर्जुन ! तब राजा दुर्योधन ने स्‍वयं ही आचार्य द्रोण से जयद्रथ की रक्षा के लिये बडी प्रार्थना की है । अत: उसकी रक्षा का पूरा प्रबन्‍ध कर लिया गया है ।‘कुल के युद्ध में कर्ण, भूरिश्रवा, अश्‍वत्‍थामा, दुर्जय वीर वृषसेन, कृपाचार्य और मद्रराज शल्‍य ये – छ: महारथी उसके आगे रहेंगे ।‘द्रोणाचार्य ने ऐसा व्‍यूह बनाया है, जिसका अगला आधा भाग शकट के आकार का है और पिछला कमल के समान । कमलव्‍यूह के मध्‍य की कर्णिका के बीच सूची व्‍यूह के पार्श्‍व भाग में युद्ध दुर्मद सिंधुराज जयद्रथ खडा होगा और अन्‍यान्‍य वीर उसकी रक्षा करते रहेंगे । ‘पार्थ ! ये पूर्व निश्चित छ: महारथी धनुष, बाण, पराक्रम, प्राणशक्ति तथा मनोवल में अत्‍यन्‍त असह्य माने गये हैं । इन छ: महारथियों को जीते बिना जयद्रथ को प्राप्‍त करना असम्‍भव है ।‘पुरुषसिंह ! पहले तुम इन छ: महारथियों में एक-एक के बल-पराक्रम का विचार करो । फिर जब ये छ- एक साथ होंगे, उस समय इन्‍हें सुगमता से नहीं जीता जा सकता ।‘अब मैं पुन: अपने हित का ध्‍यान रखते हुए कार्य की सिद्धि के लिये मंत्रज्ञ म‍ंत्रियों और हितैषी सुहृदों के साथ सलाह करूँगा’।

इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोण पर्व के अन्‍तर्गत प्रतिज्ञा पर्व में श्रीकृष्‍णवाक्‍य विषयक पहत्‍तरवां अध्‍याय पूरा हुआ ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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