महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 92 श्लोक 38-58

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द्विनवतितम (92) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)

महाभारत: द्रोण पर्व: द्विनवतितम अध्याय: श्लोक 38-58 का हिन्दी अनुवाद

राजन् । उस समय राजा श्रुतायुध पाण्‍डुकुमार अर्जुन के उस पराक्रम को न सह सके। अत: उन्‍होंने अर्जुन को सतहत्‍तर बाण मारे। तब अर्जुन ने उनका धनुष काटकर उनके तरकस के भी टुकड़े-टुकड़े कर दिये। फिर कुपित हो झुकी हुई गांठ वाले सात बाणों द्वारा उनकी छाती पर प्रहार किया। फिर तो राजा श्रुतायुध ने क्रोध से अचेत होकर दुसरा धनुष हाथ में लिया और इन्‍द्रकुमार अर्जुन की भुजाओं तथा वक्ष:स्‍थल में नौ बाण मारे। भारत। यह देख शत्रुदमन अर्जुन ने मुस्‍कराते हुए ही श्रुतायुध को कई हजार बाण मारकर पीडि़त कर दिया। साथ ही उन महारथी एवं महाबली वीर ने उनके घोडों और सारथि को भी शीघ्रतापूर्वक मार डाला और सत्‍तर नाराचों से श्रुतायुध को भी घायल कर दिया। घोड़ों के मारे जाने पर पराक्रमी राजा श्रुतायुध उस रथ को छोड़कर हाथ में गदा ले समराड़ण्‍ में अर्जुन पर टूट पड़े। वीर राजा श्रुतायुध वरुण के पुत्र थे। शीतसलिला महानदी पर्णाशा उनकी माता थी। राजन् । उनकी माता पर्णाशा अपने पुत्र के लिये वरुण से बोली-‘प्रभो। मेरा यह पुत्र संसार में शत्रुओं के लिये अवध्‍य हो’।तब वरुण ने प्रसन्‍न होकर कहा-‘मैं इसके लिये हित-कारक वर के रुप में यह दिव्‍य अस्‍त्र प्रदान करता हूं, जिसके द्वारा तुम्‍हारा यह पुत्र अवध्‍य होगा। ‘सरिताओं में श्रेष्‍ठ पर्णाशे। मनुष्‍य किसी प्रकार भी अमर नहीं हो सकता। जिन लोगों ने यहां जन्‍म लिया है, उनकी मृत्‍यु अवश्‍यम्‍भावी है। ‘तुम्‍हारा यह पुत्र इस अस्‍त्र के प्रभाव से रण क्षैत्र में शत्रुओं-के लिये सदा ही दुर्धर्ष होगा। अत: तुम्‍हारी मानसिक चिन्‍ता निवृत हो जानी चाहिये’। ऐसा कहकर वरुण देव ने श्रुतायुध को मन्‍त्रोप देश पूर्वक वह गदा प्रदान की, जिसे पाकर वे सम्‍पूर्ण जगत् में दुर्जय वीर माने जाते थे। गदा देकर भगवान वरुण ने उन से पुन: कहा-‘वत्‍स। जो युद्ध न कर रहा हो, उस पर इस गदा का प्रहार न करना; अन्‍यथा यह तुम्‍हारे उपर ही आकर गिरेगी। शत्तिशाली पुत्र । यह गदा प्रतिकूल आचारण करने वाले प्रयोत्‍ता पुरुष-को भी मार सकती है,। परंतु काल आ जाने पर श्रुतायुध ने वरुण देव के उक्‍त आदेश का पालन नहीं किया। उन्‍होंने उस वीरघातिनी गदा के द्वारा भगवान श्री कृष्‍ण को चोट पहुंचायी। पराक्रमी श्री कृष्‍ण ने अपने हष्‍ट–पुष्‍ट कंधे पर उस गदा का आघात सह लिया। परंतु जैसे वायु विन्‍ध्‍यपर्वत को नहीं हिला सकती है, उसी प्रकार वह गदा श्री कृष्‍ण को कम्पित न कर सकी। जैसे दोषयुत्‍त आभिचारिक क्रिया से उत्‍पन्‍न हुई कृत्‍या उसका प्रयोग करने वाले यजमान का ही नाश कर देती है, उसी प्रकार उस गदा ने लौटकर वहां खड़े हुए अमर्षशील वीर श्रुतायुध को मार डाला। वीर श्रुतायुध का वध करके वह गदा धरती पर जा गिरी। लौटी हुई उस गदा को और उसके द्वारा मारे गये वीर श्रुतायुध को देखकर वहां आपकी सेनाओं में महान् हाहाकार मच गया। नरेश्रवर। शत्रुदमन श्रुतायुध को अपने ही अस्‍त्र से मारा गया देख यह बात ध्‍यान में आयी कि श्रुतायुध ने युद्ध न करने वाले श्री कृष्‍ण पर गदा चलायी है। इसीलिये उस गदा ने उन्‍हीं का वध किया है। वरुण देव ने जैसा कहा था, युद्ध भूमि में श्रुतायुध की उसी प्रकार मृत्‍यु हुई। वे सम्‍पूर्ण धनुर्धरों के देखते-देखते प्राण-शून्‍य होकर पृथ्‍वी पर गिर पड़े।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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