महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 99 श्लोक 1-17

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नवनवतितम (99) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)

महाभारत: द्रोण पर्व: नवनवतितम अध्याय: श्लोक 1-17 का हिन्दी अनुवाद

अर्जुन के द्वारा तीव्र गति से कौरव सेना में प्रवेश, विन्‍द और अनुविन्‍द का वध तथा अद्भुत जलाशाय का निर्माण

संजय कहते हैं- राजन्। जब द्रोणाचार्य का पाण्‍डवों के साथ युद्व हो रहा था और सूर्य अस्‍ताचल के शिखर की ओर ढल चुक थे, समय धूल से आवृत होने के कारण दिवाकर की रश्मियां मन्‍द दिखायी देने लगी थी। योद्धाओं में से कोई तो खड़े थे, कोई युद्ध करते थे, कोई भागकर पुन: पीछे लौटते थे, और कोई विजयी हो रहे थे। इस प्रकार उन सब लोगों का वह दिन धीरे-धीरे बीतता चला जा रहा था। विजय की अभिलाषा रखने वाली वे समस्‍त सेनाएं जब युद्ध में इस प्रकार अनुरक्‍त हो रही थीं, तब अर्जुन और श्री कृष्‍ण सिन्‍धुराज जयद्रथ को प्राप्‍त करने के लिये ही आगे बढ़ते चले गये। कुन्‍तीकुमार अर्जुन अपने तीखे बाणों द्वारा वहां रथ के जाने योग्‍य रास्‍ता बना लेते थे, जिससे श्री कृष्‍ण रथ लिये आगे बढ़ जाते थे। प्रजानाथ । महामना पाण्‍डुनन्‍दन अर्जुन का रथ जहां-जहां जाता था, वहीं-वहीं आप की सेना में दरार पड़ जाती थी। दशार्हवंशी परम पराक्रमी भगवान श्री कृष्‍ण उत्‍तम, मध्‍यम और अधम तीनों प्रकार के मण्‍डल दिखाते हुए अपनी उत्‍तम रथ शिक्षा का प्रदर्शन करते थे। अर्जुन के बाणों पर उनका नाम अक्‍डि़त था। उन पर पानी चढ़ाया गया था । वे कालाग्रि के समान भयंकर, तांत में बंधे हुए, सुन्‍दर पंखवाले, मोटे तथा दूर तक जाने वाले थे। उनमें से कुछ तो बांस के बने हुए थे और कुछ लोहे के । वे सभी भयंकर थे और नाना प्रकार के शत्रुओं का संहार करते हुए पक्षियों के साथ उड़कर युद्धस्‍थल में प्राणियों का रक्‍त पीते थे। रथ पर बैठै हुए अर्जुन अपने आगे एक कोस की दूरी तक जिन बाणों को फेंकते थे, वे बाण उनके शत्रुओं का जब तक संहार करते, तब तक उनका रथ एक कोस और निकल जाता था। उस समय भगवान हृषी केश अच्‍छी प्रकार से रथ का भार वहन करने वाले गरुड़ एवं वायु के समान वेगशाली घोड़ों द्वारा सम्‍पूर्ण जगत् को आश्रर्यचकित करते हुए आगे बढ़ रहे थे। प्रजानाथ। सूर्य, इन्‍द्र, रद्र तथा कुबेर का भी रथ वैसी तीव्र गति से नहीं चलता था, जैसे अर्जुन का चलता था। राजन् समरभूमि में दूसरे किसी का रथ पहले कभी उस प्रकार तीव्र-गति से नहीं चला था, जैसे अर्जुन का रथ मन की अभिलाषा के अनुरुप शीघ्र गति से चलता था। महाराज। भरतनन्‍दन । शत्रुवीरों का संहार करने वाले भगवान श्री कृष्‍ण ने रणभूमि में सेना के भीतर प्रवेश करके अपने घोड़ों को तीव्र वेग से हांका। तदनन्‍तर रथियों के समूह के मध्‍य भाग में पहुंचकर भुख और प्यास से पीडि़त हुए वे उत्‍तम घोडे़ बडी़ कठिनाई से उस रथ का भार वहन कर पाते थे। युद्धकुशल योद्धाओं ने बहुत-से शस्‍त्रों द्वारा उन्‍हें अनेक बार घायल कर दिया और वे क्षत विक्षत हो बारंबार विचित्र मण्‍डलाकार गति से विचरण करते रहे। रण-भूमि में सहस्‍त्रों पर्वताकार हाथी, घोडे़, रथ और पैदल मनुष्‍य मरे पडे़ थे। उन सबको अर्जुन के घोडे़ उपर ही उपर लांघ जाते थे राजन् वे वायु समान वेगशाली अश्‍व उस युद्ध स्‍थल में अधिक परिश्रम से थक जाने के कारण मन्‍दगति से चलने लगे ।। नरेश्रवर । इसी बीच में अवन्तीके वीर राजकुमार दोनों भाई विन्‍द और अनुविन्‍द थके हुए घोड़ों वाले पाण्‍डुनन्‍दन अर्जुन का सामना करने के लिये अपनी सेना के साथ आये।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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