महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 100 श्लोक 21-37

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शततम (100) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)

महाभारत: द्रोण पर्व: शततम अध्याय: श्लोक 21-37 का हिन्दी अनुवाद

हम लोग चीखते-चिल्‍लाते तथा रोकने की चेष्‍टा करते ही रह गये: परंतु कुछ न हो सका। शत्रुओं को संताप देने वाले हमारे बल की अवहेलना करके एकमात्र रथ के द्वारा सम्‍पूर्ण राज मण्‍डली में अपना पराक्रम दिखाकर उसी प्रकार बेरोक टोक आगे बढ़ गये हैं, जैसे बालक खिलौनों से खेलता हुआ निकल जाता है। राजन् । पूर्व काल में जैसे देवासुर-संग्राम में जम्‍भासुर का वध करने की इच्‍छा वाले इन्‍द्र और भगवान विष्‍णु दानवों को तिनकों के समान तुच्‍छ मानते हुए आगे बढ़ गये थे (उसी प्रकार श्री कृष्‍ण और अर्जुन जयद्रथ को मारने के लिये बड़े वेग से अग्रसर हो रहे हैं उन दोनों को पुन: आगे बढ़ते देख दूसरे सैनिक बोल उठे-‘कौरवो । श्री कृष्‍ण और अर्जुन का वध करने के लिये तुम सब लोग शीघ्र चेष्‍टा करो। इस रणक्षैत्र में रथ पर बैठे हुए श्री कृष्‍ण हमारी अवहेलना करके हम सब धनुर्धरों के देखते-देखते जयद्रथ की ओर बढ़े जा रहे है’। राजन. । कुछ भूमिपाल समरागड़ण में श्री कृष्‍ण और अर्जुन का वह अत्‍यन्‍त अभ्‍दूत अद्यष्‍ट पूर्व कार्य देखकर आपस में इस प्रकार बातें करने लगे। ‘एकमात्र दुर्योधन के अपराध से राजा धृतराष्‍ट्र तथा उनकी सम्‍पूर्ण सेनाएं भारी वितत्ति में फंस गयी। सारा क्षत्रिय समाज और सम्‍पूर्ण पृथ्‍वी विनाश के द्वार पर जा पहुंची है । इस बात को राजा धृतराष्‍ट्र नहीं समझ रहे हैं’। भारत । इसी प्रकार वहां दूसरे क्षत्रिय निम्‍नाकडि़त बातें कहते थे-‘योग्‍य उपायको न जानने वाले और मिथ्‍या दृष्ट्रि रखने वाले राजा धृतराष्‍ट्र यम लोक में गये हुए सिन्‍धुराज जयद्रथ का जो और्ध्‍व दैहिक कृत्‍य है, उसका सम्‍पादन करें। तदनन्‍तर पानी पीकर हर्ष और उत्‍साह में भरे हुए घोड़ों द्वारा पाण्‍डुकुमार अर्जुन सिन्‍धुराज जयद्रथ की ओर बड़े वेग से बढ़ने लगे । उस समय सूर्य देव अस्‍ताचल के शिखर की ओर ढलते चले जा रहे थे । जैसे क्रोध में भरे हुए यमराज को रोकना असम्‍भव है, उसी प्रकार आगे प्रकार बढ़ते हुए समस्‍त शस्‍त्रधारियों में श्रेष्‍ठ महाबाहु अर्जुन को आप के सैनिक रोक न सके। जैसे सिंह मृगों के झुंड को खदेड़ता हुआ उन्‍हें मथ डालता है, उसी प्रकार शत्रुओं को संताप देने वाले पाण्‍डु कुमार अर्जुन आप की सेना को खदेड़-खदेड़कर मारने और मथने लगे। सेना के भीतर घुसते हुए श्री कृष्‍ण ने तीव्र वेग से अपने घोड़ों को आगे बढ़ाया और बगुलों के समान श्‍वेत रंगवाले अपने पाच्‍चजन्‍य शख्‍ड़को बड़े जोर से बजाया। वायु के समान वेग शाली अश्‍व इतनी तीव्राति तीव्र गति से रथ को लिये हुए भाग रहे थे कि कुन्‍तीकुमार अर्जुन द्वारा आगे की ओर फेंके हुए बाण उनके रथ के पीछे गिरते थे। तत्‍पश्रात् क्रोध में भरे हुए बहुत से नरेशों तथा अन्‍य क्ष्‍िात्रियों ने जयद्रथवध की इच्‍छा रखने वाले अर्जुन को चारों ओर से घेर लिया। सेनाओं के सहसा आक्रमण करने पर पुरुष श्रेष्‍ठ अर्जुन कुछ टहर गये । इसी समय उस महासमर में राजा दुर्योधन ने बड़ी उतावली के साथ उनका पीछा किया। हवा लगने से अर्जुन के रथ की पताका फहरा रही थी। उस रथ से मेघ की गर्जना के समान गम्‍भीर ध्‍वनि हो रही थी। और भयंकर रथ को देखकर सम्‍पूर्ण रथी विषाद ग्रस्‍त हो गये। उस समय सब ओर इतनी धूल उड़ रही थी कि सूर्य देव छिप गये। उस रणक्षेत्र में बाणों से पीडि़त हुए सैनिक श्री कृष्‍ण और अर्जुन की ओर आंख उठाकर देख भी नहीं सकते थे।

इस प्रकार श्री महाभारत द्रोणपर्व के अन्‍तर्गत जयद्रथवध पर्व में सेना विस्‍मय विषयक सौवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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