महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 5 श्लोक 22-44

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पञ्चम (5) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: प्रथम अध्याय: श्लोक 22-44 का हिन्दी अनुवाद

जो महारथी भीमसेन के साथ भी कई बार युद्ध कर चुका था, ढाल और तलवार लेकर शत्रुओं का भय बढ़ाने वाला वह मद्रराज का शूरवीर तेजस्वी पुत्र सुभद्रा कुमार अभिमन्यु के द्वारा मार डाला गया। जो समर भूमि में कर्ण के समान ही पराक्रमी था, शीघ्रता पूर्वक अस्त्र चलाने वाला, सुदृढ़ बल - विक्रम से सम्पन्न और महान् तेजस्वी था, वह कर्ण पुत्र वृषसेन अभिमन्यु का वध सुनकर की हुई अपनी प्रतिज्ञा को याद रखने वाले अर्जुन के साथ भिड़कर कर्ण के देखते देखते उनके द्वारा यमलोक पहुँा दिया गया। जो पाण्डवों से सदा वैर बाँधे रखता था , उस राजा श्रतायु को कुन्ती कुमार अर्जुन ने उसकी शत्रुता का स्मरण कराकर मा डाला। माननीय नरेश ! शल्य का पराक्रमी पुत्र रुक्मरथ, जो सहदेव का ममेरा भाई था, युद्ध में सहदेव के ही हाथ से मारा गया। बूढ़े राजा भगीरथ और केकय नरेश बृहद्रथ ये दोनों अत्यनत बलवान् और पराक्रमी वीर थे, जो युद्ध में पराक्रम दिखाते हुए मारे गये। राजन् ! भगदत्त के विद्वान् और महाबली पुत्र को युद्ध में बाज की तरह झपटने वाले नकुल ने मार गिराया ।
आपके पितामह बाह्लीक भी महान् बल - पराक्रम से सम्पन्न थे। वे भीमसेन के हाथ से बाह्लीक योद्धाओं सहित मारे गये। राजन् ! जरासंध के महाबलवान् पुत्र मगध वासी जयत्सेन को महामना सुभद्रा कुमार ने युद्ध में मार डाला। नरेश्वर ! आपके पुत्र दुर्मुख और महारथी दुःसह ये दोनों अपने को शूरवीर मानने वाले योद्धा थे, जो भीमसेन की गदा से मारे गये। इसी प्रकार दुर्मर्षण, दुर्विषह और महारथी दुर्जय दुष्कर कर्म करके यमराज के लोक में जा पहुँचे हैं। युद्ध दुर्मद कलिंग और वृषक ये दोनों भाई भी दुष्कर पराक्रम प्रकट करके यमलोक के अतिथि हो चुके हैं। आपके मन्त्री परम पराक्रमी शूरवीर वृषवर्मा भीमसेन के द्वारा बल पूर्वक यमलोक पहुँचा दिये गये। इसी प्रकार इस हजार हाथियों के समान बलशाली महान् राजा पौरव को समरांगण में पाण्डु कुमार सव्यसाची अर्जुन ने मार डाला।
महाराज ! प्रहार कुशल दो हजार वसाति लोग और पराक्रमी शूरसेन - ये सबके सब युद्ध में मार डाले गये हैं। रण में उन्मत्त रथी शिवि - ये सब कलिंग राज सहित मारे गये हैं। जो सदा गोकुल में पले हैं, युद्ध में अत्यन्त कुपित होकर लड़ते हैं और जिन्होंने कभी युद्ध में पीठ दिखाना नहीं सीखा है, वे गोपाल भी अर्जुन के हाथ से मारे जा चुके हैं। संशप्तगणों की कई हजार श्रेणियाँ थीं। वे सभी अर्जुन का सामना करके यमराज के लोक में चले गये। महाराज ! आपके दोनों साले राजा वृषक और अचल जो आपके लिये अत्यन्त पराक्रम प्रकट करते थे, अर्जुन के द्वारा मार डाले गये। जो महान् धनुर्धर तथा नाम और कर्म से भी उग्रकर्मा थे, उन महाबाहु शल्वराज को भीमसेन ने मार गिराया। महाराज ! मित्र के लिये रण भूमि में पराक्रम प्रकट करने वाले ओघवान् और बृहन्त - ये दोनों एक साथ यमलोक को प्रस्थान कर चुके हैं। प्रजानाथ ! नरेश्वर ! इसी प्रकार रथियों में श्रेष्ठ क्षेमधूर्ति को भी युद्ध स्थल में भीमसेन ने अपनी गदा से मार डाला। राजन् ! महाधनुर्धर महाबली जलसंध रण भूमि में शत्रु सेना का महान् संहार करके अन्त में सात्यकि के हाथ से मारे गये।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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