महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 19 श्लोक 19-39

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 11:16, 30 August 2015 by व्यवस्थापन (talk | contribs) (1 अवतरण)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

एकोनविंश (19) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: एकोनविंश अध्याय: श्लोक 19-39 का हिन्दी अनुवाद

तदनन्तर आपके सैनिक रथियों में श्रेष्ठ अर्जुन पर टूट पडत्रे । वे विभिन्नजनपदों के अधिपति थे और अपने दलबल के साथ कुपित होकर चढ़ आये थे। रथों,घोड़ों और हाथियों के सवार तथा पैदल सैनिक उन्हें मार डालने की इच्छा से नाना प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों का प्रहार करते हुए शीघ्रता पूर्वक धावा बोलने लगे। परतु अर्जुन रूपी वायु ने संशप्तक सैनिक स्पी महामेघों द्वारा की हुई अस्त्र-शस्त्रों की उस महावृष्टि को तीखे बाणोँ द्वारा छिन्न-भिन्न कर डाला। अर्जुन हाथी,घोड़े,रथ और पैदल-समूहों से युक्त तथा महान् अस्त्र-शस्त्रों के प्रवाह सये परिपूर्ण उस सैन्य-समुद्र को अपने अस्त्र-शस्त्र रूपी पुल के द्वारा सहसा पार कर जाना चाहते थे । उस समय भगवान श्रीकृष्ण ने उनसे कहा- ‘निष्पाप पार्थ ! यह क्या खिलवाड़ कर रहे हो,इन संशप्तकों का संहार करके कर्ण के वध का शीघ्रता पूर्वक प्रयत्न करो ‘। तब श्रीकृण से ‘बहुत अच्छा ‘कहकर अर्जुन ने दैत्यों का वध करने वाले इन्द्र के समान उस समय शेष संशप्तक-सेना को अस्त्र-शस्त्रों से छिन्न-भिन्न करके उसका बलपूर्वक विनाश करने लगे। उस समय रण भूमि में किसी ने यह नहीं देखा के अर्जुन कब बाण लेते,कब उनका संधान करते अथवा कब उन्हें छोड़ते हैं,केवल उनके द्वारा शीघ्रता पूर्वक मारे गये मनुष्य ही दृष्टिगोचर होते थे। ‘आश्चर्य है ‘ऐसा कहकर भगवान श्रीकृष्ण ने घोड़ों को आगे बढ़ाया । हंस तथा चन्द्र-किरणों के समान श्वेत वर्ण वाले वे घोड़े शत्रु सेना में उसी प्रकार घुस गये,जैसे हंस तालाब में प्रवेश करते हैं। जब इस प्रकार जनसंहार होने लगाा,उस समय रणभूमि की ओर देखते हुए भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से इस प्रकार बोले-। -पार्थ ! दुर्योधन के कारण यह भूमण्डल के भूपालों तथा भरतवंशियों की सेना का महाभयंकर एवं महान् संग्राम हो रहा है। ‘भरतनन्दन ! देखो,बड़े-बड़े धनुर्धरों के ये सुवर्ण जटित पृष्ठ भाग वाले धनुष ? आभूषण और तरकस पड़े हुए हैं। ‘सुनहरी पाँखों से युक्त झुकी हुई गाँठ वाले ये बाण तथा तेल में धोकर साफ किये हुए नाराच धनुष से छूटकर सर्पों के समान पड़े हुए हैं,इनपर दृष्टिपात करो। ‘भारत ! देखो,ये सुवर्णभूषित कवकचत्र तोमर चारों ओर बिखरे पड़े हैं और ये फेंकी हुई ढालें हैं,जिनके पृष्ठभाग पर सोना जड़ा हुआ था। ‘सोने के बने हुए प्राप्त,सुवर्णभूषित शक्तियाँ,सोने के पत्रों से जड़ी हुई विशाल गदाएँ,स्वर्णमयी ऋष्टि,सुवर्णभूषित पट्टिश तथा स्वर्णचित्रित दंडों के साथ बहुत से फरसे फेंके पड़े हैं,इन पर दृष्टिपात करो। ‘देखो,ये परिघ,भिन्दिपाल,भुशुण्डी,कुणप,लोहे के बने हुए भाले तथा भारी-भारी मुसल पड़े हुए हैं। ‘विजय की अभिलाषा,रखने वाले वेगशाली वीर सैनिक हाथों में नाना प्रकार के अस्त्र-शस्त्र लिये प्राणशून्य हो गये हैं तो भी जीवित से दिखाई देते। ‘देखो,ये सहस्त्रों योद्धा हाथी,घोड़ों और रथों से कुचल गये हैं। गदाओं के आघात से इनके अंग चूर-चूर हो गये हैं और मुसलों की मार से मस्तक फट गये हैं। ‘शत्रुसूदन अर्जुन ! बाण,शक्ति,ऋष्टि,तोमर,खंग,पट्टिश,प्रास,नखर और लगुडों की मार से हाथी,घोड़े और मनुष्यों के शरीर के कई टुकड़े हो गये हैं । वे सब-के-सब खून से लथपथ हो प्राणशून्य होकर पड़े हैं और उनके द्वारा सारी रणभूमि पट गयी है। ‘भारत ! बाजूबंद और सुन्दर आभूषणों से विभूषित,चन्दन से चर्चित,दस्ताने और केयूरों से सुशोभित कटी भुजाओें द्वारा रणभूमि की अद्भुत शोभा हो रही है।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः