महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 24 श्लोक 61-78

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 12:30, 19 July 2015 by व्यवस्थापन (talk | contribs) (Text replace - "{{महाभारत}}" to "{{सम्पूर्ण महाभारत}}")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

चतुर्विंश (24) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: चतुर्विंश अध्याय: श्लोक 61-78 का हिन्दी अनुवाद

दूसरे बहुत से गजराज कर्ण के नाराचों,शरों और तोमरों से सुत्रस्त हो जैसे पतंग आग में कूद पड़ते हैं,उसी प्रकार कर्ण के सम्मुख चले जाते थे। अन्य बहुत से बड़े-बड़े हाथी झरने बहाने वाले पर्वत के समान अपने अंगों से रक्त की धारा बहाते और आर्तनाद करते दिखाई देते थे। कितने ही घोड़ों के उनकी छाती को छिपाने वाले कवच कटकर गिर गये थे,बालबन्ध छिन्न-भिन्न हो गये थे,सोने,चाँदी और कांस्य के आभूषण नष्ट हो गये थे,दूसरे साज-बाज भी चैपट हो गये थे,उनके मुखों से लगाम भी निकल गये थे,चँवर,झूल और तरकस धराशायी हो गये थे तथा संग्राम भूमि में शोभा पाने वाले उनके शूरवीर सवार भी मारे जा चुके थे। ऐसी दशा में रण भूमि में भ्रान्त होकर भटकते हुए बहुत से उत्तम घोड़ों को हमने देखा था। भारत ! कवच और पगड़ी धारण करने वाले कितने ही घुड़सवारों को हमने प्रास,खंग और ऋष्टि आदि अस्त्र-शस्त्रों से रहित होकर मारा गया देखा। कितने ही कर्ण के बाणों की मार खाते हुए थरथर कँाप रहे थे टोर बहुत से अपने शरीर के विभिन्न अवयवों से रहित हो यत्र-तत्र मरे पड़े थे। वेगशाली घोड़ों से जुते हुए कितने ही सुवर्ण भूषित रथ सारथि और रथियों के मारे जाने से वेगपूर्वक दौड़ते दिखायी देते थे। भरतनन्दन् ! कितने ही रथों के धुरे और कूबर टूट गये थे,पहिये टूक-टूक हो गये थे,पताका और ध्वज खण्डित हो गये थे तथा ईषादण्ड और बन्धुरों के टुकड़े-टुकड़े हो गये थे। प्रजानाथ ! सूतपुत्र के तीखे बाणों से हताहत होकर बहुतेरे रथी वहाँ इधर-उधर भागते देखे गये। कितने ही रथी शस्त्रहीन होकर तथा दूसरे बहुत से सशस्त्र रहकर ही मारे गये। नक्षत्र समूहो के चिन्ह वाले कवचों से आच्छादित,उत्तम घंटों से सुशोभित तथा अनेक रंग की विचित्र ध्वजा-पताकाओं से अलंकृत हाथियों को हमने चारों ओर भागते देखा था। हमने यह भी देखा के कर्ण के धनुष से छूअे हुए बाणों द्वारा योद्धाओं के मस्तक,भुजाएँ और जँाघें कट-कटकर चारों ओर गिर रही हैं। कर्ण के बाणों से आहत हो तीखे बाणों से युद्ध करते हुए योद्धाओं में वहाँ अत्यन्त भयंकर और महान् संग्राम मच गया था। समरांगण में सृंजयों पर कर्ण के बाणों की मार पड़ रही थी,तो भी पतंग जैसे अग्नि पर टूट पड़ते हैं,उसी प्रकार वे कर्ण के ही सम्मुख बढ़ते जा रहे थे। महारथी कर्ण प्रलय काल के प्रचण्ड अग्नि के समान जहाँ-तहाँ पाण्डव-सेनाओं को दग्ध कर रहा था। उस समय क्षत्रिय लोग उसे छोड़कर दूर हट जाते थे पांचालों के जो वीर महारथी मरने से बच गये थे,उन्हें भागते देख तेजस्वी वीर कर्ण पीछे से उन पर बाणों की वर्षा करता हुआ उनकी ओर दौड़ा। उन योद्धाओं के कवच और ध्वज छिन्न-भिन्न हो गये थे। जैसे मध्यान्ह-काल का सूर्य सम्पूर्ण प्राणियों को अपनी किरणों द्वारा तपाता है,उसी प्रकार महाबली सूतपुत्र अपने बाणों से उन शत्रु-सैनिकों को सुतप्त करने लगा।

इस प्रकार श्रीमहाभारत में कर्ण पर्व में कर्ण का युद्ध विषयक चौबीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।



« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः