महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 25 श्लोक 20-36

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पञ्चविंश (25) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: पञ्चविंश अध्याय: श्लोक 20-36 का हिन्दी अनुवाद

भरतनन्दन् ! सुतसोम ने अपने पिता के अत्यन्त बैरी याकुनि को सामने देखकर उसे कई हजार बाणों से आच्छादित कर दिया। परंतु शकुनि ने तुरंत ही दूसरे बाणों द्वारा सुतसोम के बाणों को काट डाला। वह शीघ्रता पूर्वक अस्त्र चलाने वाला,विचित्र युद्ध में कुशल और युद्ध स्थल में विजय श्री से सुशोभित होने वाला था। उसने समरा्रगण में अपने तीखे बाणों से सुतसोम के बाणों का निवारण करके अत्यन्त कुपित हो तीन बाणों द्वारा सुतसोम को भी घायल कर दिया। महाराज ! आपके साले ने सुतसोम के घोड़ों को तथा ध्वज और सारथि को भी अपने बाणों से तिल-तिल करके काट डाला;इससे सब लोग हर्ष सूचक कोलाहल करने लगे। मान्यवर ! घोड़े,रथ और ध्वज के नष्ट हो जाने पर धनुर्धर सुतसोम अपने हाथ में श्रेष्ठ धनुष लिये रथ से उतर कर धरती पर खडत्रा हो गया। फिर उसने शिला पर तेज किये हुए सुवर्णमय पंख वाले बहुत से बाण छोड़े। उन बाणों द्वारा समरभूमि में उसने आपके साले के रथ को ढक दिया। उसके बाण समूह टिड्डी दलों के समान जान पड़ते थे। उन्हें अपने रथ के समीप देखकर भी महारथी सुबल पुत्र शकुनि के मन में तनिक भी व्यथा नहीं हुई। उस महायशस्वी वीर ने अपने बाण समूहों द्वारा सुतसोम के सारे बाणों को पूर्णतया मथ डाला। सुतसोम जो वहाँ पैदल होकर भी रथ पर बैठे हुए शकुनि के साथ युद्ध कर रहा था। उसके इस अविश्वसनीय और अद्भुत कर्म को देखकर वहाँ खड़े हुए समस्त योद्धा तथा आकाश में स्थित हुए सिद्ध गण भी बहुत संतुष्ट हुए। राजन् ! उस समय शकुनि ने अत्यन्त वेगाशाली और झुकी हुई गाँठ वाले तीखे भल्लों द्वारा सुतसोम के धनुष,तरकस तथा अनय सब उपकरणों को भी नष्ट कर दिया। रथ तो नष्ट हो ही चुका था,जब धनुष भी कट गया,तब सुतसोम ने वैदूर्य मणि तथा नील कमल के समान श्याम रंग वाले,हाथी के दाँत की बनी हुई मूठ से युक्त खंग को ऊपर उठाकर बडत्रे जोर से गर्जना की। बुद्धिमान सुतसोम के उस निर्मल आकाश के समान कान्ति वाले ख्रग को घुमाया जाता देख शकुनि ने उसे अपने लिए कालदण्ड के समान माना। महाराज ! सुतसोम शिक्षा और बल दोनों से सम्पन्न था,वह खंग लेकर सहसा उसके चैदह मण्डल ( पैंतरे ) दिखाता हुआ रण भूमि में सब ओर विचरने लगा। उसने युद्ध स्थल में भ्रान्त,उद्भ्रान्त,आबिद्ध,आप्लुत,प्लुत,सूत,सम्पात और समुदीर्ण आदि गतियों को दिखाया[1]। तब पराक्रमी सुबल पुत्र ने सुतसोम पर बहुत से बाण चलाये। परंतु उसने अपने उत्तम खंग से निकट आते ही उन सब बाणों को काट गिराया। महाराज ! इससे शत्रुओं का संहार करने वाले सुबल पुत्र शकुनि को बड़ा क्रोध हुआ। उसने सुतसोम पर विषधर सर्पों के समान बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी। परंतु गरुड़ के तुल्य पराक्रमी सुतसोम ने अपने शिक्षा और बल के अनुसार युद्ध में फुर्ती दिखाते हुए खंग से उन सब बाणों के टुकड़े-टुकड़े कर डाले। राजन् ! सुतसोम जब अपनी चमकीली तलवार को मण्डलाकार घुमा रहा था,उसी समय शकुनि ने तीखे क्षुरप्र से उनके टुकड़े कर दिये।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भ्रान्त,उद्भ्रान्त आदि सात गतियों को अनुलो और विलोम क्रम से दिखाने पर उसके चैदह भेद हो जाते हैं।भ्रान्त और उद्भ्रान्त आदिकी व्याख्या पहले पृष्ठ 3696 में की जा चुकी है।

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