महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 29 श्लोक 21-36

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एकोनत्रिंश (29) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: एकोनत्रिंश अध्याय: श्लोक 21-36 का हिन्दी अनुवाद

आपके पुत्र राजा दुर्योधन ने भी शिला पर तेज किये हुए सुवर्णमय पंख वाले पँाच पैने बाणों द्वारा युधिष्ठिर को घायल करके तुरंत बदला चुकाया। भारत ! इसके बाद राजा दुर्योधन ने सम्पूर्णतः लोहे की बनी हुई एक तीखी शक्ति चलायी,जो उस समय बड़ी भारी उल्का के समान प्रतीत हो रही थी। सहसा अपने ऊपर आती हुई उस शक्ति को धर्मराज युधिष्ठिर ने तीन तीखे बाणों से ततकाल काट डाला और दुर्योधन को भी पाँच बाणों से घायल कर दिया। सुवर्धमय दण्ड वाली यह शक्ति आकाश से गिरती हुई बड़ी भारी उत्का के समान महान् शब्द के साथ गिर पड़ी। उस समय वह अग्नि के तुल्य प्रकाशित हो रही थी। प्रजानाथ ! उस शक्ति को नष्ट हुई देख आपके पुत्र ने नौ तीखे भल्लों से युधिष्ठिर को गहरी चोट पहुँचायी। बलवान् शत्रु के द्वारा अत्यन्त घायल किये जाने पर शत्रुओं को संताप देने वाले महाबली युधिष्ठिर ने दुर्योधन को लक्ष्य करके एक बाण हाथ में लिया और उसे धनुष के मध्य भाग में रखा। महाराज ! तत्पश्चात् पराक्रमी युधिष्ठिर ने उस बाण को क्रोध पूर्वक चला दिया। उस बाण ने आपके महारथी पुत्र दुर्योधन को घायल करके उसे मूर्छित कर दिया और पृथ्वी को भी विदीर्ण कर डाला। उसके बाद क्रोध में भरे हुए दुर्योधन ने वेगपूर्वक गदा उठाकर कलह का अन्त कर देने की इच्छा से धर्मराज युधिष्ठिर पर आक्रमण किया। दण्डधारी यमराज के समान उसे गदा उठाये देख धर्मराज आपके उस पुत्र पर अत्यन्त वेगशालिनी महाशक्ति का प्रहार किया,जो प्रज्वलित हुई बड़ी भारी उल्का के समान देदीप्यमान हो रही थी। रथ पर बैठे हुए ही दुर्योधन का कवच फाड़कर वह शक्ति उसकी छाती में चुभ गई। इससे अत्यन्त उद्विग्नचित्त होकर दुर्योधन गिरा और मूर्छित हो गया। उस समय भीमसेन ने अपनी प्रतिज्ञा का विचार करते हुए युधिष्ठिर से कहा- ‘महाराज ! यह राजा दुर्योधन आपका वध्य नहीं है। ‘उनके ऐसा कहने पर राजा युधिष्ठिर उसके वध से निवृत्त हो गये। तब कृतवर्मा विपत्ति के समुद्र में डूबे हुए आपके पुत्र राजा दुर्योधन के पास तुरंत आकर उसकी रक्षा के लिये उद्यत हो गया। यह देख भीमसेन ने भी सुवर्ण पत्र जटित गदा हाथ में लेकर युद्ध स्थल में बड़े वेग से कृतवर्मा पर टूट पड़े। महाराज ! इस पेकार अपरान्ह के समय रण क्षेत्र में विजय चाहने वाले आपके योद्धाओं का शत्रुओं के साथ भीषण युद्ध होने लगा।

इस प्रकार श्रीमहाभारत में कर्णपर्व में तुमुल युद्ध विषयक उन्तीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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