महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 60 श्लोक 21-40

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षष्टितम (60) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: षष्टितम अध्याय: श्लोक 21-40 का हिन्दी अनुवाद

‘भरतश्रेष्ठर । वह कर्ण महाबली धृतराष्ट्रड पुत्रों को यह प्रेरणा दे रहा है कि तुम सब लोग मिलकर पाण्डु पुत्र युधिष्ठिर को मार डालो। ‘पार्थ। कौरव महारथी स्थूणाकर्ण, इन्द्रतजाल, पाशुपत तथा अन्यर प्रकार के शस्त्रप समूहों से राजा युधिष्ठिर को आच्छाणदित कर रहे हैं । ‘भारत। राजा युधिष्ठिर आतुर एवं सेवा के योग्यण कर दिये गये है; जैसा कि पाण्‍डवों सहित पाच्चाल उनके पीछे पीछे सेवा के लिये जा रहे हैं । ‘शीघ्रता के अवसर पर शीघ्रता करने वाले सम्पूचर्ण शस्त्र धारियों में श्रेष्ठक बलवान् पाण्डिव योद्धा युधिष्ठिर का ऐसी अवस्था में उद्धार करने के लिये उत्सुतक दिखायी देते हैं, मानो वे पाताल में डूब रहे हों । ‘पार्थ। राजा का ध्वज नहीं दिखायी देता है। कर्ण ने अपने बाणों द्वारा उसे काट डाला है। भरतनन्दकन । प्रभो। यह कार्य उसने नकुल-सहदेव, सात्यनकि, शिखण्डीा, धृष्टद्युम्ना, भीमसेन, शतानीक, समस्तप पाच्चाल-सैनिक तथा चेदिदेशीय योद्धाओं के देखते-देखते किया है ‘कुन्ती्नन्दचन। जैसे हाथी कमलों से भरी हुई पुष्कदरिणी को मथ डालता है, उसी प्रकार यह कर्ण रणभूमि में अपने बाणों द्वारा पाण्डसवसेना का विध्वंसस कर रहा है।
‘पाण्डुभनन्देन । ये तुम्हासरे रथी भागे जा रहे हैं। पार्थ। देखो, देखो, ये महारथी भी कैसे खिसके जा रहे हैं। ‘भारत। कर्ण के बाणों से मारे गये ये मतवाले हाथी आती नाद करते हुए दसों दिशाओं में भाग रह हैं। ‘कुन्ती कुमार। रणभूमि में शत्रुसूदन कर्ण के द्वारा खदेड़ा हुआ यह रथियों का समूह सब ओर पलायन कर रहा है। ‘ध्वभज धारण करने वाले रथियों में श्रेष्ठ अर्जुन। देखो, सूतपुत्र के रथ पर कैसी ध्वजा फहरा रही है हाथी की रस्सी़ के चिह्र से युक्त उसकी पताका रणभूमि में यत्र-तत्र कैसे विचरण कर रही है । ‘वह राधापुत्र कर्ण सैकड़ों बाणों की वर्षा करके तुम्हातरी सेना का संहार करता हुआ भीमसेन के रथ पर धावा कर रहा है। ‘जैसे देवराज इन्द्रक दैत्यों को खदेड़ते और मारते हैं, उसी प्रकार महासमर में कर्ण के द्वारा खदेड़े और मारे जाने वाले इन पाच्चाल महारथियों को देखो। ‘यह कर्ण रणभूमि में पाच्चालों, पाण्डथवों और सृंजयों को जीतकर अब तुम्हेंक परास्तक करने के लिये सारी दिशाओं में दृष्टि पात कर रहा है; ऐसा मेरा मत है। ‘अर्जुन। देखो, जैसे देवराज इन्द्रद शत्रुपर विजय पाकर देवसमूहों से घिरे हुए शोभा पाते हैं, उसी प्रकार यह कर्ण कौरवों के बीच में अपने धनुष को खींचता हुआ सुशोभित हो रहा है । ‘कर्ण का पराक्रम देखकर ये कौरवयोद्धा रणभूमि में पाण्डोवों और सृंजयों को सब ओर से डराते हुए जोर-जोर से गर्जना करते हैं। ‘मानद। यह राधापुत्र कर्ण महासमर में पाण्ड वसैनिकों को सर्वथा भयभीत करके अपनी सम्पूणर्ण सेनाओं से इस प्रकार कह रहा है। ‘कौरवो। तुम्हाेरा कल्या ण हो। दौड़ो और वेगपूर्वक धावा करो। आज युद्धस्थल में कोई सृंजय तुम्हारे हाथ से जिस प्रकार भी जीवित न छूटने पावे, सावधान होकर वैसा ही प्रयत्नज करो। हम सब लोग तुम्हारे पीछे-पीछे चलेंगे। ‘ऐसा कहकर यह कर्ण पीछे से बाण-वर्षा करता हुआ गया है। पार्थ। रणभूमि में श्वेपतच्छडत्र से विराजमान कर्ण को देखो। वह चन्द्रनमा से सुशोभित उदयाचल के समान जान पड़ता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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