महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 23 श्लोक 1-15

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त्रयोविंश (23) अध्‍याय: उद्योग पर्व (सेनोद्योग पर्व)

महाभारत: उद्योग पर्व: त्रयोविंश अध्याय: श्लोक 1-15 का हिन्दी अनुवाद


संजय का युधिष्ठर से मिलकर उनकी कुशल पूछना एवं युधिष्ठर का संजय से कौरव का कुशल समाचार पूछते हुए उसमे सारगर्भित प्रश्न करना

वैशम्पायन जी कहते है - जनमेजय ! राजा धृतराष्ट्र की बात सुनकर संजय अमित तेजस्वी पाण्डवों से मिलने के लिये उपलब्ध गया । वहां पहले कुन्ती पुत्र राजा युधिष्ठर के पास जाकर सूतपूत्र संजय ने उन्हे प्रणाम किया और उनसे बातचीत प्रारम्भ की । गवल्णनन्दन सूतपूत्र संजय प्रयत्न होकर अजात शत्रु राजा युधिष्ठर से कहा - राजन ! बडे सौभाग्य की बात है कि आज मै देवराज इन्द्र के समान आपको अपने सहायकों के साथ स्वस्थ एवं सकुशल देख रहा हूँ । ‘ वृद्ध एवं बद्धिमान अम्बिकानन्दन महाराज धृतराष्ट्र ने आपका कुशल समाचार पूछा है भीमसेन, पाण्डव प्रवर अर्जुन तथा दोनों माद्रीकुमार नकुल सहदेव कुशल से तो है न । ‘ सत्य का पालन करने वाली वीर पत्नी दुप्रद कुमारी राज पुत्री मनस्विनी कृष्णा अपने पुत्रोसहित कुशलपूर्वक है न । भारत ! इनके बिना आप जिन जिन के कल्याण की इच्छा रखते है तथा जिन अभीष्ट भोगो को बनाये रखना चाहते है, वे आत्मीय जन तथा धन वैभव वाहन आदि भोगो प्रकरण सकुशल है न । युधिष्ठर बोले - गवल्गणकुमार संजय ! तुम्हारा स्वागत है । तुम्हे देखकर हमे बडी प्रसन्नता हुई है । विद्वन् ! मै अपने भाइयोसहित कुशल से हूँ तथा तुम्हे अपने अरोग्य सूचना दे रहा है । सूत ! कुरूकुल के वृद्ध पुरुष भरतनन्दन महाराज धृतराष्ट्र यह कुशल समाचार दीर्घकाल के बाद सुनकर और प्रेमपूर्वक तुम्हें भी देखकर मै यह अनुभव करता हूँ कि आज मुझे साक्षात् महाराज धृतराष्ट्र का ही दर्शन हुआ है । तात मनस्वी, परम ज्ञानी तथा समस्त धर्मो के ज्ञान से सम्पन्न हमारे बूढे पितामह कुरूवंशी भीष्म जी तो कुशल से है न । हम लोगों पर उनका स्नेह भाव तो पूर्वत् बना हुआ है ।संजय ! क्या अपने पुत्रो सहित विचित्रवीर्यनन्दन महामना राजा धृतराष्ट्र सकुशल है ? प्रतीप के विद्वान् पुत्र महाराजबाहीक तो कुशलता पूूर्वक है न । तात ! सोमदŸा, भूरिश्रवा, सत्यप्रतिज्ञ शल, पुत्र सहित द्रोणाचार्य और विप्रश्रेष्ठ कृपाचार्य - ये महाधनुर्धर वीर स्वस्थ तो है न । संजय ! क्या पृथ्वी के धनुर्धर, जो परम बुद्विमान, समस्त शास्त्रो के ज्ञान से उज्जवल तथा भूमण्डल के धनुर्धरो में प्रधान है, कौरवों से स्नेह -भाव रखते है । तात ! जिनके राष्ट्र में दर्शनीय, शीलवान् तथा महाधनुर्धर द्रोणपुत्र अश्वत्थामा निवास करता है, उन कौरवों के बीच क्या पूर्वोŸा धनुर्धर विद्वान् आदर पाते है ? क्या ये कौरव भी नीरोग है । तात ! क्या राजा धृतराष्ट्र की वैश्यजातीय पत्नी के पुत्र महाज्ञानी राजकुमार युयुत्सु सकुशल है । संजय ! मूढ दुर्योधन सदा जिसकी आज्ञाके अधीन रहता है, वह मन्त्री कर्ण भी कुशलपूर्वक है न । सूत! भरतवंशियो की मताए, बड़ी बूढ़ी स्त्रियां, रसोई बनाने वाली सेविकाए, दासियां, बहुएं, पुत्र भानजे, बहिने और पुत्रियो के पुत्र- ये सभी निष्कपट भाव से रहते है न । तात ! क्या राजा दुर्योधन पहले की भांति बाह्मणों को जीविका देने में यथोचित रिति से तत्पर रहता है ? संजय ! मैने बाह्मणो की वृŸिा के रूप मंे जो गांव आदि दिये थे, उन्हे वह छीनता तो नहीं है ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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