महाभारत शल्य पर्व अध्याय 5 श्लोक 36-52

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पञ्चम (5) अध्याय: शल्य पर्व (ह्रदप्रवेश पर्व)

महाभारत: शल्य पर्व: पञ्चम अध्याय: श्लोक 36-52 का हिन्दी अनुवाद

जिसके आचरण श्रेष्ठ हैं जो युद्ध से कभी पीछे नहीं हटते, अपनी प्रतिज्ञा को सत्य कर दिखाते और यज्ञोंद्वारा यजन करने वाले हैं तथा जिन्होंने शस्त्र की धारा में अवभृथस्नान किया है, उन समस्त बुद्धिमान् पुरुषों का निश्चय ही स्वर्ग में निवास होता है। निश्चय ही युद्ध में प्राण देने वालों की ओर अप्सराएँ बड़ी प्रसन्नता से निहारा करती हैं। पितृगण उन्हें अवय ही देवताओं की सभा में सम्मानित होते देखते हैं। वे स्वर्ग में अप्सराओं से घिरकर आनंदित होते देखे जाते हैं। देवता तथा युद्ध में पीठ न दिखाने वाले शूरवीर जिस मार्ग से जाते हैं, क्या उसी मार्ग पर अब हम लोग भी वृद्ध पितामह, बुद्धिमान् आचार्य द्रोण, जयद्रथ, कर्ण तथा दुःशासन के साथ आरूढ़ होंगे? कितने ही वीर नरेश मेरी विजय के लिये यथाशक्ति चेष्टा करते हुए बाणों से क्षत-विक्षत हो मारे जाकर रक्तरंजित शरीर से संग्रामभूमि में सो रहे हैं। उत्तम अस्त्रों के ज्ञाता और शस्त्रोंक्त विधि से यज्ञ करने वाले अन्रू शूरवीर यथोचित रीति से युद्ध में प्राणों का परित्याग करके इन्द्रलोक में प्रतिष्ठित हो रहे हैं। उन वीरों ने स्वयं ही जिस मार्ग का निर्माण किया है, वह पुनः बडे़ वेग से सद्रतिको जानेवाले बहुसंख्यक वीरों द्वारा दुर्गम हो जाय (अर्थात इतने अधिक वीर उस मार्ग से यात्रा करें कि भीड़ के मारे उसपर चलना कठिन हो जाये)। जो शूरवीर मेरे लिये मारे गये हैं, उनके उस उपकार का निरन्तर स्मरण करता हुआ उस ऋण को उतारने की चेष्टा में संलग्न होकर मैं राज्य में मन नहीं लगा सकता। इस प्रकार राजा दुर्योधन की कही हुई बात सुनकर सब क्षत्रियों ने बहुत अच्छा, बहुत अच्छा कहकर उसका आदर किया और उसे भी धन्यवाद दिया। सबने अपनी पराजय का शोक छोड़कर मन-ही-मन पराक्रम करने का निश्चय किया। युद्ध करने के विषय में सबका पक्का विचार हो गया और सबके हृदय में उत्साह भर गया। तत्पश्चात् सब योद्धाओं ने अपने-अपने वाहनों को विश्राम दे युद्ध का अभिनन्दन किया और आठ कोस से कुछ कम दूरी पर जाकर डेरा डाला। आकाश के नीचे हिमालय के शिखर की सुन्दर, पवित्र एवं वृक्षरहित चैरस भूमि पर अरूणसलिला सरस्वती के निकट जाकर उन सबने स्नान और जलपान किया। राजन् ! वे कालपे्ररित समस्त क्षत्रिय आपके पुत्रद्वारा उत्साह देने पर एक दूसरे के द्वारा मन को स्थिर करके पुनः रणभूमि की ओर लौटे।

इस प्रकार श्रीमहाभारत शल्यपर्व में दुर्योधन का वाक्यविषयक पाँचवाँ अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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