महाभारत आदि पर्व अध्याय 36 श्लोक 18-26

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षट्-त्रिंश (36 ) अध्‍याय: आदि पर्व (आस्तीक पर्व)

महाभारत: आदि पर्व: षट्-त्रिंश अध्‍याय: श्लोक 18-26 का हिन्दी अनुवाद

ब्रह्माजी बोले—शेष ! तुम्हारे इस इन्द्रिय संयम और मनोनिग्रह से मैं बहुत प्रसन्न हूँ। अब मेरी आज्ञा से प्रजा के हित के लिये यह कार्य, जिसे मैं बता रहा हूँ, तुम्हें करना चाहिये। शेषनाग ! पर्वत, वन, सागर, ग्राम, विहार और नगरों सहित यह समूची पृथ्वी प्रायः हिलती-डुलती रहती है। तुम इसे भली- भाँति धारण करके इस प्रकार स्थित रहो, जिससे यह पूर्णतः अचल हो जाये। शेषनाग ने कहा—प्रजापते ! आप वरदायक देवता, समस्त प्रजा के पालक, पृथ्वी के रक्षक, भूमिप्राणियों के स्वामी और सम्पूर्ण जगत् के अधिपति हैं। आप जैसी आज्ञा देते हैं, उसके अनुसार मैं इस पृथ्वी को इस तरह धारण करूँगा, जिससे यह हिले-डुले नहीं। आप इसे मेरे सिर पर रख दें। ब्रह्माजी ने कहा—नागराज शेष ! तुम पृथ्वी के नीचे चले जाओ। यह स्वयं तुम्हें वहाँ जाने के लिये मार्ग दे देगी। इस पृथ्वी को धारण कर लेने पर तुम्हारे द्वारा मेरा अत्यन्त प्रिय कार्य सम्पन्न हो जायेगा। उग्रश्रवाजी कहते हैं—नागराज वासुकि के बड़े भाई सर्व समर्थ भगवान शेष ने ‘बहुत अच्छा’ कहकर ब्रह्माजी की आज्ञा शिरोधार्य की ओैर पृथ्वी के विवर में प्रवेश करके समुद्र से घिरी हुई इस वसुधादेवी को उन्होंने सब ओर से पकड़कर सिर पर धारण कर लिया (तभी से यह पृथ्वी स्थिर हो गयी)। तदनन्तर ब्रह्माजी बोले—नागोत्तम ! तुम शेष हो, धर्म ही तुम्हारा आराध्य देव है, तुम अकेले अपने अनन्त फणों से इस सारी पृथ्वी को पकड़कर उसी प्रकार धारण करते हो, जैसे मैं अथवा इन्द्र। उग्रश्रवाजी कहते हैं—शौनक ! इस प्रकार प्रतापी नागर भगवान अनन्त अकेले ही ब्रह्माजी के आदेश से इस सारी पृथ्वी को धारण करते हुए भूमि के नीचे पाताल लोक में निवास करते हैं। तत्पश्चात् देवताओं में श्रेष्ठ भगवान पितामह ने शेषनाग के लिये विनतानन्दन गरूड़ को सहायक बना दिया। अनन्त नाग के जाने पर नागों ने महाबली वसुकि का नागराज के पद पर उसी प्रकार अभिषेक किया, जैसे देवताओं ने इन्द्र का देवराज के पद पर अभिषेक किया था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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