महाभारत वन पर्व अध्याय 26 श्लोक 18-22

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 14:46, 6 July 2017 by व्यवस्थापन (talk | contribs) (Text replacement - "विद्वान " to "विद्वान् ")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

षड्-विंश (26) अध्‍याय: वन पर्व (अरण्‍यपर्व)

महाभारत: वन पर्व: षड्-विंश अध्याय: श्लोक 18-22 का हिन्दी अनुवाद

‘बुद्धिमान पुरुष को चाहिये कि वह अप्राप्त की प्राप्ति और प्राप्त की वुद्धि के लिये ब्राह्मणों से बुद्धि ग्रहण करे। राजन ! अप्राप्त की प्राप्ति और प्राप्ति की वुद्धि के लिये यथायोग उपाय बताने के निमित्त तुम अपने यहाँ यशस्वी, बहुश्रुत एवं वेदज्ञ विद्वान् ब्राह्मणों को बसाओ। युधिष्ठिर ! ब्राह्मणों के प्रति तुम्हारे हृदय में सदा उत्तम भाव है, इसीलिये सब लोकों में तुम्हारा यश विख्यात एवं प्रकाशित है।'

वैशम्पायनजी कहते हैं- जनमेजय ! तदनन्तर युधिष्ठिर की बढ़ाई करने पर उन सब ब्राह्मणों ने बक का आदर सत्कार किया और उन सब ब्राह्मणों का चित्त प्रसन्न हो गया। द्वैपायन व्यास, नारद, परशुराम, पृथुश्रवा, इन्द्रद्युम्न, भालुकि, कृतचेता, सहस्त्रपात्, कर्णश्रवा, मुंज, लवणाश्वए काश्यप, हारीत, स्थूणकर्ण, अग्निवेश्य, शौनक, कृतवाक, सुवाक, बृहदश्व, ऊध्र्वरेता, वृषामित्र, सुहोत्र, तथा होत्रवाहन-ये सब ब्रह्मर्षि तथा राजर्षिगण और दूसरे कठोर व्रत का पालन करने वाले बहुत-से ब्राह्मण अजातशत्रु युधिष्ठिर का उसी प्रकार आदर करते थे, जैसे महर्षि लोग देवराज इन्द्र का।


इस प्रकार श्रीमहाभारत वन पर्व में अर्जुनाभिगमनपर्व में द्वैतवनप्रवेशविषयक छब्बीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः