महाभारत शल्य पर्व अध्याय 18 श्लोक 1-21

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अष्टादश (18) अध्याय: शल्य पर्व (ह्रदप्रवेश पर्व)

महाभारत: शल्य पर्व: अष्टादश अध्याय: श्लोक 1-21 का हिन्दी अनुवाद

मद्रराज के अनुचरों का वध और कौरव सेना का पलायन

संजय कहते हैं- राजन् ! मद्रराज शल्य के मारे जाने पर उनके अनुगामी सात सौ वीर रथी विशाल कौरव सेना से निकल पडे़। उस समय दुर्योधन पर्वताकार हाथी पर आरूढ़ हो सिर पर छत्र धारण किये चामरों से वीजित होता हुआ वहाँ आया और न जाओ, न जाओ ऐसा कहकर उन मद्रदेशीय वीरों को रोकने लगा; परन्तु दुर्योधन के बारंबार रोकने पर भी वे वीर योद्धा युधिष्ठिर के वध की इच्छा से पाण्डवों की सेना में जा घुसे । महाराज ! उन शूरवीरों ने युद्ध करने का दृढ़ निश्चय कर लिया था, अतः धनुष की गम्भीर टंकार करके पाण्डवों के साथ संग्राम आरम्भ कर दिया । शल्य मारे गये और मद्रराज का प्रिय करने में लगे हुए मद्रदेशीय महारथियों ने धर्मपुत्र युधिष्ठिर को पीड़ित कर रखा है; यह सुनकर कुन्तीपुत्र महारथी अर्जुन गाण्डीव धनुष की टंकार करते और रथ के गम्भीर घोष से सम्पूर्ण दिशाओं को परिपूर्ण करते हुए वहाँ आ पहुंचे । तदनन्तर अर्जुन, भीमसेन, माद्रीपुत्र पाण्डुकुमार नकुल, सहदेव, पुरुषसिंह सात्यकि, द्रौपदी के पाँचों पुत्र, धृष्‍टधुम्न, शिखण्डी, पांचाल और सोमक वीर- इन सब ने युधिष्ठिर की रक्षा के लिये उन्हें चारों ओर से घेर लिया । युधिष्ठिर को सब ओर से घेरकर खडे़ हुए पुरुषप्रवर पाण्डव उन सेना को उसी प्रकार क्षुब्ध करने लगे, जैसे मगर समुद्र को । जैसे महावायु (आँधी) वृक्षों को हिला देती है, उसी प्रकार पाण्डव वीरों ने आपके सैनिकों को कम्पित कर दिया। राजन् ! जैसे पूर्वी हवा महानदी गंगा को क्षुब्ध कर देती है, उसी प्रकार उन सैनिकों ने पाण्डवों की सेना में भी हलचल मचा दी । वे बहुसंख्यक महामनस्वी मद्रमहारथी विशाल पाण्डव सेना को मथकर जोर-जोर से पुकार-पुकारकर कहने लगे कहाँ है वह राजा युधिष्ठिर ? अथवा उसके वे शूरवीर भाई ? वे सब यहाँ दिखायी क्यों नहीं देते ? । धृष्‍टधुम्न, सात्यकि, द्रौपदी के सभी पुत्र, महापराक्रमी पांचाल और महारथी शिखण्डी-ये सब कहाँ हैं ? । ऐसी बाते कहते हुए उन मद्रराज के अनुगामी वीर योद्धाओं को द्रौपदी के महारथी पुत्रों और सात्यकि ने मारना आरम्भ किया । समरांगण में आपके वे सैनिक शत्रुओं द्वारा मारा जाने लगे। कुछ योद्धा छिन्न-भिन्न हुए रथ के पहियों और कुछ कटे हुए विशाल ध्वजों के साथ ही धराशायी होते दिखायी देने लगे । राजन् ! भरतनन्दन ! वे योद्धा युद्ध में सब ओर फैले हुए पाण्डवों को देखकर आपके पुत्र के मना करने पर भी वेगपूर्वक आगे बढ़ गये । दुर्योधन ने उन वीरों को सान्वना देते हुए बहुत मना किया, किंतु वहाँ किन्हीं महारथियों ने उनकी इस आज्ञा का पालन नहीं किया । महाराज ! तब प्रवचनपटु गान्धारराजपूत्र शकुनि ने दुर्योधन से यह बात कही- । भारत ! हमलोगों के देखते-देखते मद्रदेश की यह सेना क्यों मारी जाती है ? तुम्हारे रहते ऐसा कदापि नहीं होना चाहिये । यह शपथ ली जा चुकी है कि हम सब लोग एक साथ होकर लडे़ । नरेश्वर ! ऐसी दशा शत्रुओं को अपनी सेना का संहार करते देखकर भी तुम क्‍योंकि सहन करते हो ? दुर्योधन ने कहा- मैंने पहले ही इन्हें बहुत मना किया था, परन्तु इन लोगों ने मेरी बात नहीं मानी और पाण्डवसेना में घुसकर ये प्रायः सब-के-सब मारे गये ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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