महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 2 श्लोक 26-37

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 13:18, 6 September 2017 by व्यवस्थापन (talk | contribs) (Text replacement - "करनेवाली" to "करने वाली")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

द्वितीय (2) अध्याय: द्रोण पर्व ( द्रोणाभिषेक पर्व)

महाभारत: द्रोण पर्व: द्वितीय अध्याय: श्लोक 26-37 का हिन्दी अनुवाद

सूतपुत्र ! तुम शीध्र ही मेरे लिये श्रेष्‍ठ एवं शीध्रगामी घोड़े ले आओ, जो श्‍वेत बादलोंके समान उज्‍ज्‍वल तथा मन्‍त्रपूत जलसे नहाये हुए हों, शरीरसे हष्‍टपुष्‍ट हों और जिन्‍हें सोने के आभूषणों से सजाया गया हो। उन्‍ही घोड़ों से जुता हुआ सुन्‍दर रथ शीघ्र ले आओ, जो सोने की मालाओं से अलंकृत, सूर्य और चन्‍द्रमा के समान प्रकाशित होने वाले विचित्र रत्‍नों से जटित तथा युद्धोपयोगी सामग्रियों से सम्‍पन्‍न हो । विचित्र एवं वेगशाली धनुष, उत्‍तम प्रत्‍यचा, कवच, बाणोंसे भरे हुए विशाल तरकस और शरीर के आवरण इन सबको लेकर शीघ्र तैयार हो जाओ । वीर ! रणयात्रा की सारी आवश्‍यक सामग्री, दही से भरे हुए कांस्‍य और सुवर्ण के पात्र आदि सब कुछ शीघ्र ले आओ । यह सब लाने के पश्‍चात मेरे गले में माला पहनाकर विजय यात्रा के लिये तुम लोग तुरंत नगाड़े बजवा दो । सूत ! यह सब कार्य करके तुम शीघ्र ही रथ लेकर उस स्‍थानपर चलो, जहां किरीटधारी अर्जुन, भीमसेन, धर्मपुत्र युधिष्ठिर तथा नकुल-सहदेव खड़े है । वहां युद्धस्‍थल में उनसे भिड़कर या तो उन्‍हीं को मार जाऊँगा । जिस सेना में सत्‍यधृति राजा युधिष्ठिर खड़े हो, भीमसेन, अर्जुन, वासुदेव, सात्‍यकि तथा सृजय मौजूद हों, उस सेना को मैं राजाओं के लिये अजेय मानता हूं । तथापि मैं समरभूमिमें सावधानरहकर युद्ध करूँगा और यदि सबका संहार करने वाली मृत्‍यु स्‍वयं आकर अर्जुन की रक्षा करे तो भी मैं युद्ध के मैदान में उनका सामना करके उन्‍हे मार डालूँगा अथवा स्‍वयं ही भीष्‍मके मार्ग से यमराज का दर्शन करने के लिये चला जाऊँगा । अब ऐसा तो नहीं हो सकता कि मैं उन शूरवीरों के बीचमें न जाऊँ । इस विषय में मैं इतना ही कहता हूं कि जो मित्रद्रोही हों, जिनकी स्‍वामी भक्ति दुर्बल हो तथा जिनके मन में पाप भरा हो; ऐसे लोग मेरे साथ न रहे ।

संजय कहते है- राजन ! ऐसा कहकर कर्ण वायु के समान वेगशाली उत्‍तम घोड़ों से जुते हुए, कूबर और पताका से युक्‍त, सुवर्णभूषित, सुन्‍दर, समृद्धिशाली, सुदृढ़ तथा श्रेष्‍ठ रथ पर आरूढ़ हो युद्ध में विजय पाने के लिये चल दिया । उस समय देवगणों से इन्‍द्र की भॉति समस्‍त कौरवों से पूजित हो रथियों में श्रेष्‍ठ, भयंकर धनुर्धर, महामनस्‍वी कर्ण युद्ध के उस मैदान मे गया, जहॉ भरतशिरोमणि भीष्‍म का देहावसान हुआ था । सुवर्ण, मुक्‍ता, मणि तथा रत्‍नों की मालासे अलंकृत सुन्‍दर ध्‍वजा से सुशोभित, उत्‍तम घोड़ों से जुते हुए तथा मेघ के समान गंभीर घोष करने वाले रथ के द्वारा अमित तेजस्‍वी कर्ण विशाल सेना साथ लिये युद्धभूमि की और चल दिया । अग्निके समान तेजस्‍वी अपने सुन्‍दर रथपर बैठा हुआ अग्नि सदृश कान्तिमान्, सुन्‍दर एवं धनुर्धर महारथी अधिरथ पुत्र कर्ण विमान में विराजमान देवराज इन्‍द्र के समान सुशोभित हुआ ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्‍तर्गत द्रोणाभिषेकपर्वमें कर्ण की रणयात्राविषयक दूसरा अध्‍याय पूरा हुआ ।


'

« पीछे आगे »


टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः