महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 23 श्लोक 84-98

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त्रयोविंश (23) अध्याय: द्रोण पर्व (संशप्‍तकवध पर्व )

महाभारत: द्रोण पर्व: त्रयोविंश अध्याय: श्लोक 84-98 का हिन्दी अनुवाद

महातेजस्‍वी कुरूराज पाण्‍डुनन्‍दन युधिष्ठिर की सुवर्णमयी ध्‍वजा को मैने चन्‍द्रमा तथा ग्रहणो के चिन्‍ह से सुशोभित देखा है। इस ध्‍वजा में नन्‍द-उपनन्‍द नामक दो विशाल एवं दिव्‍य मृंदग लगे हुए है । वे यन्‍त्र के द्वारा बिना बजाये बजते हैं और सुन्‍दर शब्‍द का विस्‍तार करके सबका हर्ष बढ़ाते है। नकुल की विशाल ध्‍वजा शरभ के चिन्‍ह से युक्‍त तथा पृष्‍ठभाग में सुवर्णमयी है । हमने देखा, वह अत्‍यन्‍त भयंकर रूप से उनके रथपर फहराती और सबको भयभीत करती थी। सहदेव की ध्‍वजा में घटा और पताका के साथ चॉदी के बने सुन्‍दर हंस का चिन्‍ह था । वह दुर्धर्ष ध्‍वज शत्रुओं का शोक बढ़ानेवाला था। क्रमश: धर्म, वायु, इन्‍द्र तथा महात्‍मा अश्विनी कुमारों की प्रतिमाऍ पाँचों द्रौपदीपुत्रों के ध्‍वजों की शोभा बढ़ाती थी। राजन ! कुमार अभिमन्‍यु के रथ का श्रेष्‍ठ ध्‍वज तपाये हुए सुवर्ण से निर्मित होने के कारण अत्‍यन्‍त प्रकाशमान था । उसमें सुवर्णमय शार्गपक्षी का चिन्‍ह था। राजेन्‍द्र ! राक्षस घटोत्‍कच की ध्‍वजा में गीध शोभा पाता था । पूर्वकाल में रावण के रथ की भॉति उसके रथ में भी इच्‍छानुसार चलनेवाले घोड़े जुते हुए थे। राजन ! धर्मराज युधिष्ठिर के पास महेन्‍द्र का दिया हुआ दिव्‍य धनुष शोभा पाता था । इसी प्रकार भीमसेन के पास वायु देवता का दिया हुआ दिव्‍य धनुष था। तीनों लोकों की रक्षा के लिये ब्रह्माजीने आयुधकी सृष्टि की थी, वह कभी जीर्ण न होने वाला दिव्‍य गाण्‍डीव धनुष अर्जुन को प्राप्‍त हुआ था। नकुल को वैष्‍णव तथा सहदेव को अश्विनी कुमार सम्‍बन्‍धी धनुष प्राप्‍त था तथा घटोत्‍कच के पास पौलस्‍त्‍य नामक भयानक दिव्‍य धनुष विदमान था। भरतनन्‍दन ! पाँचों द्रौपदी पुत्रों के दिव्‍य धनुष रत्‍न क्रमश: रूद्र, अग्नि, कुबेर, यम तथा भगवान शंकर से सम्‍बन्‍ध रखनेवाले थे। रोहिणीनन्‍दन बलराम ने जो रूद सम्‍बन्‍धी श्रेष्‍ठ धनुष प्राप्‍त किया था, उसे उन्‍होंने संतुष्‍ट होकर महामना सुभद्राकुमार अभिमन्‍यु को दे दिया था। ये तथा और भी बहुत सी राजाओंकी सुवर्ण भूषित ध्‍वजाऍ वहां दिखायी देती थी, जो शत्रुओं का शोक बढ़ानेवाली थी। महाराज ! उस समय वीर पुरुषों से भरी हुई द्रोणाचार्य की वह ध्‍वजाविशिष्‍ट सेना पटमें अकित किये हुए चित्र के समान प्रतीत होती थी। राजन ! उस समय युद्धस्‍थल में द्रोणाचार्य पर आक्रमण करनेवाले वीरों के नाम और गोत्र उसी प्रकार सुनायी पड़ते थे, जैसे स्‍वयंवर में सुने जाते हैं।

इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्‍तर्गत संशप्‍तकवधपर्व में अश्र और ध्‍वज आदि का वर्णन विषयक तेईसवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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