महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 83 श्लोक 1-28

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 07:29, 7 November 2017 by व्यवस्थापन (talk | contribs) (Text replacement - "पश्चात " to "पश्चात् ")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

व्यशीतितम (83) अध्याय: द्रोण पर्व ( प्रतिज्ञा पर्व )

महाभारत: द्रोण पर्व:व्यशीतितम अध्याय: श्लोक 1-28 का हिन्दी अनुवाद

अर्जुन की प्रतिज्ञा को सफल बनाने के लिये युधिष्ठिर की श्रीकृष्ण से प्रार्थना और श्रीकृष्ण का उन्हे आश्‍वासन देना संजय कहते है-राजन् तदनन्तर कुन्तीकुमार राजा युधिष्ठिर ने अत्यन्त प्रसन्न हो देवकीनन्दन जनार्दन का अभिनन्दन करके पूछा- मधुसूदन। क्या आपकी रात सुखपूर्वक बीती है1. अच्युत । क्या आपकी सम्पूर्ण ज्ञानेन्द्रियां प्रसन्न है। तब भगवान् श्रीकृष्ण ने भी उनसे समयोचित प्रश्‍न किये तत्पश्चात् सेवक ने आकर सूचना दी कि मन्त्री , सेना पति आदि उपस्थित है। उस समय महाराज की अनुमति पाकर विराट भीमसेन, धृष्टद्युम्न, सात्यकि, चेदिराज, धृष्टकेतु, महारथी द्रुपद, शिखण्डी, नकुल, सहदेव, चेकितान, केकयराजकुमार, कुरूवंशी युयुत्सु,पाचंलवीर उत्तमौजा, युघामन्यु, सुबाहु तथा द्रौपदी के पाचों पुत्र-इन सब लोगों को द्वारपाल भीतर ले आया। ये तथा और भी बहुत-से क्षत्रियशिरोमणि महात्मा युधिष्ठिर की सेवा में उपस्थित हुए और सुन्दर आसन पर बैठे। महाबली और महातेजस्वी महात्मा श्रीकृष्ण और सात्यकि ये दोनो वीर एक ही आसनपर बैठे थे।तब युधिष्ठिर ने उन सब लोगो के सुनते हुए कमलनयन भगवान् मधुसूदन को सम्बोधित करके कधुर वाणी में कहा-। प्रभो। जैसे देवता इन्द्र का आश्रय लेते है, उसी प्रकार हम लोग एकमात्र आपका लेकर युद्ध में विजय और शाश्रत सुख पाना चाहते हैं। श्रीकृष्ण । शत्रुओं ने जो हमारे राज्य का नाश करके हमारा तिरस्कार किया और भांति-भाति के क्लेश दिये, उन सबको आप अच्छी तरह जानते है। भक्तवत्सल सर्वेश्‍वर । मधुसूदन । हम सब लोगो का सुख और जीवन निर्वाह पूर्णरूप से आपके ही अधीन है।वार्ष्णेय। हमारा मन आप में ही लगा हुआ है। अतः आप ऐसा करें, जिससे अर्जुन की अभीष्‍ट प्रतिज्ञा सत्य होकर रहे। माधव। आज इस दु:ख और अपर्श के महासागर से पार होने की इच्छा वाले हम सब लोगो के लिये आप नौका बन जाइये। आप ही इस संकट से हमारा उद्धार कीजिये। श्रीकृष्ण । संग्राम में शत्रु वध के लिये उद्यत हुआ रथी भी वैसा कार्य नही कर पाता, जैसा कि प्रयत्न्नशील सारथि कर दिखाता है। महाबाहु जनार्दन। जैसे आप वृष्णिवंशियो को सम्पुर्ण आपत्तियो से बचाते है उसी प्रकार हमारी भी इस संकट से रक्षा कीजिये। शख्ड, चक्र और गदा धारण करने वाले परमेश्‍वर। नौका- रहित अगाध कौरव-सागर में निगग्र पाण्डवों का आप स्वयं ही नौका बनकर उद्धार कीजिये। शत्रुनाशक।सनातन देवदेवेश्वर। विष्णो। जिष्णो। हरे। कृष्‍ण। वैकुण्ठ। पुरुषोत्तम। आपको नमस्कार है। माधव। देव‍ॠषि नारद ने बताया है कि आप शार्डधनुष धारण करने वाले , सर्वोत्तम वरदायक,पुरातन ॠषि श्रेष्‍ठ नारायण , उनकी वह बात सत्‍य कर दिखाइये।उस राजसभा में धर्मराज युधिष्ठिर के ऐसा कहने पर उत्तम वक्ता कमलनयन भगवान् श्रीकृष्ण ने सजल मेघ के समान गम्भीर वाणी में उन्हे इसे इस प्रकार उत्तर दिया। श्रीकृष्ण बोले- राजन् देवताओं सहित सम्पुर्ण लोको में कोई भी वैसा धनुर्धर नही है। ,जैसे आपके भाई कुन्तीकुमार धनंजय है।।वे शक्तिशाली, अस्त्रज्ञान सम्पन्न, पराक्रमी, महाबली , युद्धकुशल, सदा अमर्षशील और मनुष्यों में परम तेजस्वी है। अर्जुन के कंधे वृष के समान सुपुष्‍ट है , भुजाएं बडी -बडी है।, उनकी चाल भी श्रेष्‍ठ सिंह के सहॄष है, वे महान् बलवान युवक और श्रीसम्पन्न हैं, अतः आपके शत्रुओ को अवश्‍य मार डालेगे। मै भी यही करूंगा,जिससे कुन्ती पुत्र अर्जुन दुर्योधन की सारी सेनाओं को उसी प्रकार जला डालेगे, जैसे आग ईधन-को जलाती है। आज सुभद्रा कुमार अभिमन्यु की हत्या करने वाले उस नीच पापी जयद्रथ को अर्जुन अपने बाणों द्वारा उस मार्ग पर डाल देगे, जहां जाने पर उस जीव को पुनः इस लोक में दर्शन नही होता । आज गीध, बाज, क्रोध मरे हुए गीदड तथा अन्य नरभक्षी जीव-जन्तु जयद्रथ का मांस खायेंगे।यदि इन्द्रसहित समपूर्ण देवता भी उसकी रक्षा के लिये आजे तथापि वह आज संग्राम में मारा जाकर यमराज की राजधानी अवश्य जा पहुंचेगा। राजन् आज विजयशील अर्जुन जयद्रथ को मारकर ही आपके पास आयेंगे, आप ऐश्वर्य से सम्पन्न रहकर शोक और चिन्ता को त्याग दीजिये।  



« पीछे आगे »


टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः