महाभारत वन पर्व अध्याय 16 श्लोक 16-33

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 07:33, 7 November 2017 by व्यवस्थापन (talk | contribs) (Text replacement - "पश्चात " to "पश्चात् ")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

षोडश (16) अध्‍याय: वन पर्व (अरण्‍यपर्व)

महाभारत: वन पर्व: षोडश अध्याय: श्लोक 16-33 का हिन्दी अनुवाद

महाराज ! चारुदेष्ण के साथ महारथी एवं महान् धनुर्धर विविन्ध्य नामक दानव शाल्व की आज्ञा से युद्ध कर रहा था । राजन ! तदनन्तर चारुदेष्ण और विविन्ध्य में वैसा ही भयंकर युद्ध होने लगा, जैसा पहले इन्द्र और वृत्तासुर में हुआ था।वे दोनों एक दूसरे पर कुपित हो बाणों से परस्पर आघात कर रहे थे और महाबली सिंहों की भाँति जोर-जोर से गर्जना करते थे। तदनन्तर रुक्मिणीनन्दन चारुदेष्ण ने अग्नि और सूर्य के समान तेजस्वी शत्रुनाशक बाण को महान् ( दिव्य ) अस्त्र से अभिमन्त्रित करके अपने धनुष पर संघान किया। राजन ! तत्पश्चात् मेरे उस महारथी पुत्र ने क्रोध में भरकर विविन्ध्य पर बाण चलाया। उसके लगते ही विविन्ध्य प्राणशून्य होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा। विविन्ध्य को मारा गया और सेना को तहस-नहस हुई देख शाल्व इच्छानुसार चलने वाले सौभ विमान द्वारा फिर वहाँ आया। महाबाहु नरेश्वर ! उस समय सौभ विमान पर बैठे हुए शाल्व को देखकर द्वारका की सारी सेना भय से व्याकुल हो उठी। महाराजा कुरुनन्दन ! तब प्रद्युम्न ने निकलकर आनर्तवासियों की उस सेना को धीरज बँधाया और इस प्रकार कहा-- ‘यादवों ! आप सब लोग( चुपचाप ) खड़े रहें और मेरे पराक्रम को देखें; मैं किस प्रकार युद्ध में राजा शाल्व के सहित सौभ विमान की गति को रोक देता हूँ। ‘यदुवंशियों ! मैं अपने धर्नुदंड से छूटे हुए लोहे के सर्पतुल्य बाणों द्वारा सौभपति शाल्व की सेना को अभी नष्ट किये देता हूँ। ‘आप धैर्य धारण करें, भयभीत न हों, सौभराज अभी नष्ट हो रहा है। दुष्टात्मा शाल्व मेरा सामना होते ही सौभ विमान सहित नष्ट हो जायेगा।' वीर पाण्डुनन्दन ! हर्ष में भरे हुए प्रद्युम्न को ऐसा कहने पर वह सारी सेना स्थिर हो पूर्ववत प्रसन्नता और उत्साह के साथ युद्ध करने लगी।

इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत अर्जुनाभिगमन पर्व में सौभवधोपाख्यानविषयक सोलहवाँ अध्याय पूरा हुआ।



« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः