महाभारत आश्वमेधिक पर्व अध्याय 16 श्लोक 39-46

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षोडश (16) अध्‍याय: आश्वमेधिक पर्व (अनुगीता पर्व)

महाभारत: आश्वमेधिक पर्व: षोडश अध्याय: श्लोक 39-46 का हिन्दी अनुवाद

इस लोक में अनुभव के पश्चात् मैंने इस मार्ग का अवलम्बन किया है और अब परमात्मा की कृपा से मुझे यह उत्तम सिद्धि प्राप्त हुई है। अब मैं पुन: इस संसार में नहीं जाऊँगा। जबतक यह सृष्टि कायम रहेगी और जबतक मेरी मुक्ति नहीं हो जाएगी, तब तक मैं अपनी और दूसरे प्राणियों की शुभगतिका अवलोकन करूँगा। द्विजश्रेष्ठ! इस प्रकार मुझे यह उत्तम सिद्धी मिली है। इसके बाद मैं उत्तम लोक में जाऊँगा। फिर उससे भी परम उत्कृष्ट सत्यलोक में जा पहुँचूँगा और क्रमश: अव्यक्त ब्रह्मपद (मोक्ष) को प्राप्त कर लूँगा। इसमें तुम्हें संशय नहीं करना चाहिये। काम-क्रोध आदि शत्रुओं को संताप देने वाला काश्यप! अब मैं पुन: इस मर्त्यलोक में नहीं आऊँगा। महाप्राज्ञ! मैं तुम्हारे ऊपर बहुत प्रसन्न हूँ। बोलों, तुम्हारा कौन-सा प्रिय कार्य करूँ? तुम जिस वस्तु को पाने की इच्छा से मेरे पास आये हो, उसके प्राप्त होने का यह समय आ गया है। तुम्हारे आने का उद्देश्य क्या है, इसें मंै जानता हूँ और शीघ्र ही यहाँ से चला जाऊँगा। इसलिये मैने स्वयं तुम्हें प्रश्न करने के लिये प्रेरिता किया है। विद्धन! तुम्हारे उत्तम आचरण से मुझे बड़ा संतोष है। तुम अपने कल्याण की बात पूछो। मैं तुम्हारे अभीष्ट प्रश्न का उत्तर दूँगा। काश्यप! मैं तुम्हारी बुद्धि की सराहना करता और उसे बहुत आदर देता हूँ। तुमने मुझे पहचान लिया है, इसीसे कहता हूँ कि बड़े बुद्धिमान हो।

इसी प्रकार श्रीमहाभारत आश्वमेधिक पर्व के अन्तर्गत अनुगीता पर्व में सोलहवाँ अभ्यास पूरा हुआ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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