महाभारत स्‍त्री पर्व अध्याय 5 श्लोक 1-16

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 07:53, 6 February 2021 by आदित्य चौधरी (talk | contribs) (Text replacement - "निरुपण" to "निरूपण")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

पञ्चम (5) अध्याय: स्‍त्री पर्व (जलप्रदानिक पर्व )

महाभारत: स्‍त्री पर्व: पञ्चम अध्याय: श्लोक 1-16 का हिन्दी अनुवाद

गहन वन के दृष्‍टान्‍त से संसार के भयंकर स्‍वरुप का वर्णन

धृतराष्‍ट्र ने कहा–विदुर ! यह जो धर्म का गूढ़ स्‍वरुप है, वह बुद्धि से ही जाना जाता है; अत: तुम मुझसे सम्‍पूर्ण बुद्धिमार्ग का विस्‍तारपूर्वक वर्णन करो । विदुरजी ने कहा–राजन् ! मैं भगवान् स्‍वयम्‍भू को नमस्‍कार करके संसार रुप गहन वन के उस स्‍वरुप का वर्णन करता हूँ, जिसका निरूपण बड़े–बड़े महर्षि करते हैं । कहते हैं कि किसी विशाल दुर्गम वन में कोई ब्राह्मण यात्रा कर रहा था । वह वन के अत्‍यन्‍त दुर्गम प्रदेश में जा पहुँचा, जो हिंसक जन्‍तुओं से भरा हुआ था । जोर–जोर से गर्जना करने वाले सिंह, व्‍याघ्र, हा‍थी और रीछों के समुदायों ने उस स्‍थान को अत्‍यन्‍त भयानक बना दिया था । भीषण आकारवाले अत्‍यन्‍त भंयकर मांसभक्षी प्राणियों ने उस वन प्रान्‍तको चारों ओर से घेरकर ऐसा बना दिया था, जिसे देखकर यमराज भी भय से थर्रा उठे । शत्रुदमन नरेश! वह देखकर ब्राह्मण का हृदय अत्‍यन्‍तउद्विग्‍नहो उठा । उसे रोमाञ्च हो आया और मन में अन्‍य प्रकार के भी विकार उत्‍पन्न होने लगे । वह उस वन का अनुसरण करता इधर–उधर दौड़ता तथा सम्‍पूर्ण दिशाओं में ढूँढता फिरता था कि कहीं मुझे शरण मिले । वह उन हिंसक जन्‍तुओं का छिद्र देखता हुआ भय सेपीड़ित हो भागने लगा; परंतु न तो वहाँ से दूर निकल पाता था और न वे ही उसका पीछा छोड़ते थे। इतने ही में उसने देखा कि वह भयानक वन चारों ओर से जाल से ‍घिराहुआ है और एक बड़ी भयानक स्त्री ने अपनी दोनों भुजाओं से उसको आवेष्ठित कर रखा है । पर्वतों के समान ऊँचे और पाँच सिरवाले नागों तथा बड़े–बड़े गगनचुम्‍बी वृक्षों से वह विशाल वन व्‍याप्‍त हो रहा है । उस वन के भीतर एक कुआँ था, जो घासों से ढकी हुई सुदृड़ लताओं के द्वारा सब ओर से आच्‍छादित हो गया था । वह ब्राह्मणउस दिपेहुएकुएँ में गिर पड़ा; परंतु लताबेलों से व्‍याप्‍त होने के कारण वह उस में फँस कर नीचे नहीं गिरा,ऊँपर ही लटका रह गया । जैसे कटहल का विशाल फल वृन्‍त में बँधा हुआ लटकता रहता है, उसी प्रकार वह ब्राह्मण ऊपर को पैर और नीचे को सिर किये उस कुएँ में लटक गया । वहाँ भी उसके सामने पुन: दूसरा उपद्रव क्षड़ा हो गया । उसने कूप के भीतर एक महाबली महा नाग बैठा हुआ देखा तथा कुएँ के ऊपरी तटपरउउसके मुख बन्‍ध के पास एक ‍विशाल हाथी को खड़ादेखा, जिनके छ: मुँह थे। व‍ह सफेद और काले रंग का था तथा बारह पैरों से चला करता था । वह लताओं तथा वृक्षों से घिरे हुए उस कूप में क्रमश: बढ़ा आ रहा था । वह ब्राह्मण, जिस वृक्ष की शाखा पर लटका था, उसकी छोटी–छोटी अहनियों पर पहले से ही मधु के छत्तों से पैरा हुई अनेक रुपवाली, घोर एवं भयंकर मुधमक्खियाँ मधु को घेरकर बैठी हुई थी ।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः