महाभारत शल्य पर्व अध्याय 8 श्लोक 23-45

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अष्टम (8) अध्याय: शल्य पर्व (ह्रदप्रवेश पर्व)

महाभारत: शल्य पर्व: अष्टम अध्याय: श्लोक 23-45 का हिन्दी अनुवाद


राजाधिराज ! शल्य के रथ पर बैठा हुआ उनका सारथि उस रथ की शोभा बढ़ा रहा था। उस रथ से घिरे हुए शत्रु सूदन शूरवीर राजा शल्य आपके पुत्रों का भय दूर करते हुए युद्ध के लिये खडे़ हो गये। प्रस्थानकाल में कवचधारी मद्रराज शल्य उस सैन्यव्यूह के मुखस्थान में थे। उनके साथ मद्रदेशीय वीर तथा कर्ण के दुर्जय पुत्र भी । व्यूह के वमाभाग में त्रिगतों से घिरा हुआ कृतवर्मा खड़ा था। दक्षिण पार्श्‍व में शकों और यवनों की सेना के साथ कृपाचार्य थे और पृष्ठभाग में काम्बोजों से घिरकर अश्वत्थामा खड़ा था। मध्यभाग में कुरूकुल के प्रमुख वीरों द्वारा सुरक्षित दुर्योधन और घुड़सवारों की विशाल सेना से घिरा हुआ शकुनि भी था। उसके साथ महारथी उलूक भी सम्पूर्ण सेनासहित युद्ध के लिये आगे बढ़ रहा था। महाराज ! शत्रुओं का दमन करनेवाले महाधनुर्धर पाण्डव भी सेना का व्यूह बनाकर तीन भागों में विभक्त हो आपकी सेना पर चढ़ आये। (उन तीनों अध्यक्ष थे-) धृष्‍टधुम्न, शिखण्डी और महारथी सात्यकि । इन लोगों ने युद्धस्थल में शल्य की सेना का वध करने के लिये उसपर धावा बोल दिया। अपनी सेना से घिरे हुए भरतश्रेष्ठ राजा युधिष्ठिर शल्य को मार डालने की इच्छा से उनपर ही आक्रमण किया। शत्रुसेना का संहार करनेवाले अर्जुन महाधनुर्धर कृतवर्मा और संशप्तकगणों पर बडे़ वेग से आक्रमण किया।। राजेन्द्र ! भीमसेन और महारथी सोमकगणों ने युद्ध में शत्रुओं का संहार करने की इच्छा से कृपाचार्य पर धावा बोल दिया। सेनासहित माद्रीकुमार नकुल और सहदेव युद्धस्थल में अपनी सेना के साथ खडे़ हुए महारथी शकुनि और उलूक का सामना करने के लिये उपस्थित थे।। इसी प्रकार रणभूमि में नाना प्रकार के अस्त्र-शस्त्र लिये क्रोध में भरे हुए आपके पक्ष के इस हजार योद्धा पाण्डवों का सामना करने लगे।

धृतराष्ट्र ने पूछा-संजय ! महाधनुर्धर भीष्म, द्रोण तथा महारथी कर्ण के मारे जाने पर जब युद्धस्थल में कौरव और पाण्डव योद्धा थोडे़-से ही बच गये थे और कुन्ती के पुत्र अत्यन्त कुपित होकर पराक्रम दिखाने लगे थे, उस समय मेरे और शत्रुओं के पक्ष में कितनी सेना शेष रह गयी थी ? संजय ने कहा-राजन् ! हम और हमारे शत्रु जिस प्रकार युद्ध के लिये उपस्थित हुए और उस समय संग्राम में हमलोगों के पास जितनी सेना शेष रह गयी थी, वह सब बताता हूँ, सुनिये। भरतश्रेष्ठ ! आपके पक्ष में ग्यारह हजार रथ, दस हजार सात सौ हाथी, दो लाख घोडे़ तथा तीन करोड़ पैदल-इतनी सेना शेष रह गयी थी। भारत ! उस युद्ध में पाण्डवों के पास छह हजार रथ, छह हजार हाथी, दस हजार घोडे़ और दो करोड़ पैदल-इतनी सेना शेष रह गयी थी। भरतश्रेष्ठ ! ये ही सैनिक युद्ध के लिये उपस्थित हुए थे। राजेन्द्र ! इस प्रकार सेना का विभाग करके विजय की अभिलाषा से क्रोध में भरे हुए आपके सैनिक मद्रराज शल्य के अधीन हो पाण्डवों पर चढ़ आये। इसी प्रकार समरांगण में विजय से सुशोभित होने वाले शूरवीर पुरुषसिंह पाण्डव और यशस्वी पांचाल वीर आपकी सेना के समीन आ पहुँचे। फिर तो परस्पर प्रहार करते हुए आपके और शत्रु-पक्ष के सैनिकों में अत्यन्त भयानक घोर युद्ध छिड़ गया।

इस प्रकार श्रीमहाभारत शल्यपर्व में व्यूह-निर्माणविषयक आठवाँ अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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