पिनाकी चन्द्र घोष

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पिनाकी चन्द्र घोष (अंग्रेज़ी: Pinaki Chandra Ghose, जन्म- 28 मई, 1952, कोलकाता, पश्चिम बंगाल) भारत के प्रथम लोकपाल हैं। उन्होंने 19 मार्च, 2011 से लोकपाल का कार्यभार सम्भाला है। वे भारतीय सर्वोच्च न्यायालय के भूतपूर्व न्यायधीश हैं। पिनाकी चन्द्र घोष 2017 से राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य हैं। वे सर्वोच्च न्यायालय से 27 मई, 2017 को सेवानिवृत्त हुए थे। उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के तौर पर 8 मार्च, 2013 को पदभार ग्रहण किया था। वह पूर्व में कोलकाता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश और आन्ध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रहे हैं। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश घोष की पीठ ने जुलाई 2015 में तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता को आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में नोटिस जारी किया था।

परिचय

पिनाकी चन्द्र घोष का जन्म 28 मई, सन 1952 को कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में हुआ था। वह अपने परिवार के पांचवी पीढ़ी के ऐसे सदस्य हैं जो कि वकील हैं, यह परिवार जोरासांको के दीवान बरनासी घोष का परिवार है। ये कलकत्ता शहर के उत्तरी प्रान्तों का एक प्रसिद्ध परिवार है। इसलिए कहा जाता है कि वे एक वकील परिवार से संबंध रखते हैं। इनके पिता स्वर्गीय संभु चंद्र घोष कोलकाता हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रह चुके थे। इसलिए इन्हें भी बचपन से ही वकालत करने के लिए प्रेरित किया जाता रहा। हारा चंद्र घोष, सन 1867 में कलकत्ता में सदर दिवानी अदालत के पहले भारतीय मुख्य न्यायाधीश बने थे। वे भी इन्हीं के परिवार के एक सदस्य थे।[1]

शिक्षा

पिनाकी चन्द्र घोष ने अपनी शुरुआती स्कूल की पढ़ाई कोलकाता के स्थानीय स्कूल से की। इसके बाद उन्होंने कोलकाता के सेंट जेवियर्स कॉलेज से वाणिज्य विषय में स्नातक पूरा कर डिग्री हासिल की। फिर कोलकाता विश्वविद्यालय से कानून और अटोर्नी एट लॉ की डिग्री प्राप्त की। फिर सन 1976 में बार काउंसिल ऑफ़ वेस्ट बंगाल के साथ एक वकील के रूप में खुद को नामांकित किया। वकालत में उनके विशेष क्षेत्र नागरिक, कंपनी से जुड़े, मध्यस्थता और संविधान एवं इसी तरह के कुछ अन्य क्षेत्र थे।

कॅरियर

वकालत करते-करते पिनाकी चन्द्र घोष को सन 1997 में जाकर कोलकाता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदभार संभालने का मौका मिला। उन्होंने इस पद पर कई सालों तक कार्य किया। उन्होंने जनवरी, 2007 में अंडमान और निकोबार राज्य कानूनी सेवा ऑथोरिटी के कार्यकारी अध्यक्ष और फिर इसी साल अगस्त में पश्चिम बंगाल राज्य कानूनी सेवा ऑथोरिटी के कार्यकारी अध्यक्ष का पद संभाला। इससे पहले जनवरी, 2005 तक वह भारतीय कानून संस्थान (कलकत्ता चैप्टर) से जुड़े हुए थे। मई 2012 तक उन्होंने इसके कोषाध्यक्ष के रूप में कार्य किया। उस दौरान घोष जी नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ कॉलरा और एंतेरिक डिजीज कोलकाता के इंस्टिट्यूशनल एथिक्स समिति के अध्यक्ष भी थे।

इसके बाद इसी साल पिनाकी चन्द्र घोष हैदराबाद स्थित उच्च न्यायालय के न्यायिक न्यायालय में स्थानांतरित हो गए। वहां पर वे मुख्य न्यायाधीश बने। जब घोष जी उच्च न्यायालय में कार्यरत थे, उनका प्रदर्शन बेहतर रहा और उन्हें एक साल के अंदर ही यानि मार्च 2013 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय में प्रमुख जज का पद हासिल हुआ। फिर सर्वोच्च न्यायालय में उनका यह कार्यकाल मई, सन 2017 तक चला। इसके बाद वे रिटायर्ड हो गए। एक न्यायधीश के रूप में रिटायर्ड होने के बाद घोष जी राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग में उसके एक सदस्य के रूप में शामिल हो गए। 19 मार्च, 2019 को उन्हें भारत का पहला लोकपाल बनाया गया, जो कि भ्रष्टाचार के विरोध के लिए कार्य करता है।[1]

लोकपाल

साल 2013 में संसद के दोनों सदनों में लोकपाल बिल पास कराया गया। फिर इसके 6 साल बाद भारत के पहले लोकपाल की नियुक्ति हुई। पिनाकी चन्द्र घोष का नाम भारत के पहले लोकपाल के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली चयन समिति में लिया गया था, जिसे राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा मंजूरी दी गई। इस समिति में 5 लोग शामिल थे। इसके साथ ही राष्ट्रपति भवन में लोकपाल जो कि भ्रष्टाचार विरोधी ओम्बड्समैन है, के अन्य 8 सदस्यों की भी नियुक्ति हुई, जिनमें नॉन जुडिशल सदस्य के रूप में पूर्व सशस्त्र सीमा बल प्रमुख अर्चना रामासुंदरम, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्य सचिव दिनेश कुमार जैन, महेंद्र सिंह और इन्द्रजीत प्रसाद गौतम शामिल हैं। जुडिशल सदस्य के रूप में जस्टिस दिलीप बी भोसले, प्रदीप कुमार मोहांटी, अभिलाषा कुमारी और अजय कुमार त्रिपाठी आदि शामिल हैं।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 पिनाकी चंद्र घोष का जीवन परिचय (हिंदी) deepawali.co.in। अभिगमन तिथि: 01 जुलाई, 2021।

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