बिहारिनदेव: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
(''''बिहारिनदेव''' हरिदासी संप्रदाय के कवि और प्रतिष्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(No difference)
|
Latest revision as of 11:21, 1 August 2020
बिहारिनदेव हरिदासी संप्रदाय के कवि और प्रतिष्ठित आचार्य थे। इन्हें विट्ठल विपुलदेव का शिष्य माना गया है। विट्ठल विपुलदेव की मृत्यु विक्रम संवत 1632 में हो गई थी जिसके बाद बिहारिनदेव को आचार्य गद्दी पर बैठाया गया।
- बिहारिनदेव का जन्म शूरध्वज ब्राह्मण कुल में हुआ था। इनके पिता मित्रसेन अकबर के राज्य-सम्बन्धी कार्यकर्ताओं में प्रतिष्ठित व्यक्ति थे।
- शील-स्वभाव के कारण मृत्यु के उपरान्त बिहारिनदेव को भी अपने पिता का सम्मानित पद प्राप्त हो गया था, किन्तु ये स्वभाव से विरक्त थे, अतः युवावस्था में ही घर छोड़कर वृन्दावन आ गये और वहीं भजन भाव में लीन होकर रहने लगे।
- इनकी रस-नीति, विरक्ति और शील-स्वभाव का वर्णन केवल हरिदासी सम्प्रदाय के भक्त कवियों ने ही नहीं, अपितु अन्य सम्प्रदाय के भक्तों ने भी क्या है।
- बिहारिनदेव का महत्व अपने सम्प्रदाय में अत्यधिक है। हरिदासी सम्प्रदाय के यही प्रथम आचार्य हैं, जिन्होंने संप्रदाय के उपासना सम्बन्धी सिद्धांतों को विशद रूप से प्रस्तुत किया था।
- रस-रीति की तीव्र अनुभूति के कारण बिहारिनदेव के प्रतिपादित सिद्धान्त बहुत स्पष्ट हैं। इसीलिए सहजगम्य हैं।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख