कबीर तूँ काहै डरै -कबीर
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कबीर तूँ काहै डरै, सिर परि हरि का हाथ। |
अर्थ सहित व्याख्या
कबीरदास कहते हैं कि हे मानव! प्रभु का संरक्षण हाथ तेरे ऊपर है, फिर तू क्यों विचलित होता है? जब तू हाथी पर सवार हो गया, तब क्यों भयभीत होता है? अब तो तू सुरक्षित है। तेरे पीछे चाहे लाख कुत्ते भूँकें, तुझे उनका भय नहीं करना चाहिए।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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