यातुधान: Difference between revisions

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Latest revision as of 10:29, 21 March 2011

  • मनुष्येत्तर उपद्रवी योनियों में राक्षस मुख्य हैं, इनमें यातु (माया, छल-छद्म) अधिक था, इसलिए इनको यातुधान कहते थे।
  • ऋग्वेद में इन्हें यज्ञों में बाधा डालने वाला तथा पवित्रात्माओं को कष्ट पहुँचाने वाला कहा गया है।
  • इनके पास प्रभूत शक्ति होती है एवं रात को जब ये घूमते हैं (रात्रिचर) तो अपने क्रव्य (शिकार) को खाते हैं, ये बड़े ही घृणित आकार के होते थे।
  • यातुधान के पास में नाना रूप ग्रहण करने की सामर्थ्य होती है।
  • ऋग्वेद में राक्षस एवं यातुधान में अन्तर किया गया है, किन्तु परवर्त्ती साहित्य में दोनों पर्याय हैं। ये दोनों प्रारम्भिक अवस्था में यक्षों के समकक्ष थे।
  • रामायण-महाभारत की रचना के पश्चात् राक्षस अधिक प्रसिद्ध हुए। राक्षसों का राजा रावण, राम का प्रबल शत्रु था। महाभारत में भीम का पुत्र घटोत्कच राक्षस था। जो पाण्डवों की ओर से युद्ध में भाग लेता था।
  • विभीषण, रावण का भाई तथा भीमपुत्र घटोत्कच भले ही राक्षसों के उदाहरण हैं, जो कि यह सिद्ध करते हैं कि असुरों की तरह ही राक्षस भी सर्वथा भय की वस्तु नहीं होते थे।


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