सांख्य सूत्र वृत्ति: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
शिल्पी गोयल (talk | contribs) No edit summary |
||
(3 intermediate revisions by one other user not shown) | |||
Line 2: | Line 2: | ||
*अनिरुद्ध [[सांख्य दर्शन]] को अनियतपादार्थवादी कहते हैं<ref>सां. सू. 1/45, 46 पर अनिरुद्धवृत्ति</ref>। अनियतपादार्थवादी का यदि यह आशय है कि तत्त्वों की संख्या नियत नहीं है, तो अनिरुद्ध का यह मत उचित नहीं प्रतीत होता, क्योंकि सांख्य में 25 तत्त्व 60 पदार्थ आदि नियत गणना तो प्रचलित है हि। यदि पदार्थों के स्वरूप की अनियतता से आशय है तो यह सांख्य विरुद्ध नहीं होगा, क्योंकि सत्व रजस तमस के अभिनव, आश्रय, मिथुन, जनन विधि से अनेकश: पदार्थ रचना संभव है और इसका नियत संख्या या स्वरूप बताया नहीं जा सकता। इसके अतिरिक्त अनिरुद्धवृत्ति की एक विशेषता यह भी हे कि उसमें सूक्ष्म या लिंग शरीर 18 तत्त्वों का (सप्तदश+एकम्) माना गया है। फिर भोग और प्रमा दोनों को ही अनिरुद्ध बुद्धि में स्वीकार करते हैं। | *अनिरुद्ध [[सांख्य दर्शन]] को अनियतपादार्थवादी कहते हैं<ref>सां. सू. 1/45, 46 पर अनिरुद्धवृत्ति</ref>। अनियतपादार्थवादी का यदि यह आशय है कि तत्त्वों की संख्या नियत नहीं है, तो अनिरुद्ध का यह मत उचित नहीं प्रतीत होता, क्योंकि सांख्य में 25 तत्त्व 60 पदार्थ आदि नियत गणना तो प्रचलित है हि। यदि पदार्थों के स्वरूप की अनियतता से आशय है तो यह सांख्य विरुद्ध नहीं होगा, क्योंकि सत्व रजस तमस के अभिनव, आश्रय, मिथुन, जनन विधि से अनेकश: पदार्थ रचना संभव है और इसका नियत संख्या या स्वरूप बताया नहीं जा सकता। इसके अतिरिक्त अनिरुद्धवृत्ति की एक विशेषता यह भी हे कि उसमें सूक्ष्म या लिंग शरीर 18 तत्त्वों का (सप्तदश+एकम्) माना गया है। फिर भोग और प्रमा दोनों को ही अनिरुद्ध बुद्धि में स्वीकार करते हैं। | ||
*अनिरुद्ध द्वारा स्वीकृत सूत्र पाठ विज्ञानभिक्षु के स्वीकृत पाठों से अनेक स्थलों पर भिन्न हैं। अनिरुद्धवृत्ति<ref>सूत्र 1/109</ref> में 'सौक्ष्म्यादनुलपब्धि' है, जब भिक्षुभाष्य में 'सौक्ष्यम्यातदनुपलिब्धि' पाठ है। यद्यपि अर्थ दृष्ट्या इससे कोई प्रभाव नहीं पड़ता तथापित ईश्वरकृष्ण की 8वीं कारिका के आधार पर 'सौक्ष्द्वम्यात्तदनुपलब्धि' का प्रचलन हो गया- ऐसा कहा जा सकता है। ध्यातव्य है कि सूत्र 1/124 में अनिरुद्धवृत्ति के अनुसार 'अव्यापि' शब्द नहीं मिलता न ही उसका अनिरुद्ध द्वारा अर्थ किया गया, जबकि विज्ञानभिक्षु के सूत्रभाष्य में न केवल 'अव्यापि' शब्द सूत्रगत है अपि तु भिक्षु ने कारिका को उद्धृत करते हुए 'अव्यापि' का अर्थ भी किया है। इसी तरह सूत्र 3/73 में अनिरुद्धवृत्ति में 'रूपै:सप्तभि... विमोच्यत्येकेन रूपेण' पाठ है जबकि भिक्षुकृत पाठ कारिका 63 के समान 'विमोच्यत्येकरूपेण' है। ऐसा प्रतीत होता है कि सांख्यसूत्रों का प्राचीन पाठ अनिरुद्धवृत्त् में यथावत् रखा गया जबकि विज्ञानभिक्षु ने कारिका के आधार पर पाठ स्वीकार किया। साथ ही यह भी ध्यातव्य है कि अनिरुद्ध ने कारिकाओं को कहीं भी उद्धृत नहीं किया तथापि कहीं-कहीं कारिकागत शब्दों का उल्लेख अवश्य किया है यथा सूत्र 1/108 की वृत्ति में 'अतिसामीप्यात्' 'मनोऽनवस्थानात्' 'व्यवधानात्' आदि। जबकि विज्ञानभिक्षु ने प्राय: सभी समान प्रसंगों पर कारिकाओं को उद्धृत किया है। | *अनिरुद्ध द्वारा स्वीकृत सूत्र पाठ विज्ञानभिक्षु के स्वीकृत पाठों से अनेक स्थलों पर भिन्न हैं। अनिरुद्धवृत्ति<ref>सूत्र 1/109</ref> में 'सौक्ष्म्यादनुलपब्धि' है, जब भिक्षुभाष्य में 'सौक्ष्यम्यातदनुपलिब्धि' पाठ है। यद्यपि अर्थ दृष्ट्या इससे कोई प्रभाव नहीं पड़ता तथापित ईश्वरकृष्ण की 8वीं कारिका के आधार पर 'सौक्ष्द्वम्यात्तदनुपलब्धि' का प्रचलन हो गया- ऐसा कहा जा सकता है। ध्यातव्य है कि सूत्र 1/124 में अनिरुद्धवृत्ति के अनुसार 'अव्यापि' शब्द नहीं मिलता न ही उसका अनिरुद्ध द्वारा अर्थ किया गया, जबकि विज्ञानभिक्षु के सूत्रभाष्य में न केवल 'अव्यापि' शब्द सूत्रगत है अपि तु भिक्षु ने कारिका को उद्धृत करते हुए 'अव्यापि' का अर्थ भी किया है। इसी तरह सूत्र 3/73 में अनिरुद्धवृत्ति में 'रूपै:सप्तभि... विमोच्यत्येकेन रूपेण' पाठ है जबकि भिक्षुकृत पाठ कारिका 63 के समान 'विमोच्यत्येकरूपेण' है। ऐसा प्रतीत होता है कि सांख्यसूत्रों का प्राचीन पाठ अनिरुद्धवृत्त् में यथावत् रखा गया जबकि विज्ञानभिक्षु ने कारिका के आधार पर पाठ स्वीकार किया। साथ ही यह भी ध्यातव्य है कि अनिरुद्ध ने कारिकाओं को कहीं भी उद्धृत नहीं किया तथापि कहीं-कहीं कारिकागत शब्दों का उल्लेख अवश्य किया है यथा सूत्र 1/108 की वृत्ति में 'अतिसामीप्यात्' 'मनोऽनवस्थानात्' 'व्यवधानात्' आदि। जबकि विज्ञानभिक्षु ने प्राय: सभी समान प्रसंगों पर कारिकाओं को उद्धृत किया है। | ||
{{प्रचार}} | |||
{{संदर्भ ग्रंथ}} | |||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
== | ==संबंधित लेख== | ||
{{सांख्य दर्शन2}} | {{सांख्य दर्शन2}} | ||
{{सांख्य दर्शन}} | {{सांख्य दर्शन}} | ||
[[Category:दर्शन कोश]] | [[Category:दर्शन कोश]] | ||
[[Category:सांख्य | [[Category:सांख्य दर्शन]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ |
Latest revision as of 13:17, 20 June 2011
- कपिल प्रणीत सूत्रों की व्याख्या की यह पहली उपलब्ध पुस्तक है। इसका 'वृत्ति' नाम स्वयं रचयिता अनिरुद्ध द्वारा ही दिया गया है[1]। अनिरुद्ध सूत्रों को सांख्यप्रवचनसूत्र भी कहते हैं जिसे बाद के व्याख्याकारों, टीकाकारों ने भी स्वीकार किया। वृत्तिकार विज्ञानभिक्षु से पूर्ववर्ती है ऐसा प्राय: विद्वान स्वीकार करते हैं तथापि इनके काल के विषय में मतभेद है। सांख्यसूत्रों के व्याख्याचतुष्टय के सम्पादक जनार्दन शास्त्री पाण्डेय अनिरुद्ध का समय 11वीं शती स्वीकार करते हैं जैसा कि उदयवीर शास्त्री प्रतिपादित करते हैं प्राय: विद्वान् इसे 1500 ई. के आसपास का मानते हैं। रिचार्ड गार्बे सांख्यसूत्रवृत्ति के रचयिता को ज्योतिष ग्रन्थ 'भास्वतिकरण' के रचयिता भावसर्मन् पुत्र अनिरुद्ध से अभिन्न होने को भी संभावित समझते हैं जिनका जन्म 1464 ई. में माना जाता है।
- अनिरुद्ध सांख्य दर्शन को अनियतपादार्थवादी कहते हैं[2]। अनियतपादार्थवादी का यदि यह आशय है कि तत्त्वों की संख्या नियत नहीं है, तो अनिरुद्ध का यह मत उचित नहीं प्रतीत होता, क्योंकि सांख्य में 25 तत्त्व 60 पदार्थ आदि नियत गणना तो प्रचलित है हि। यदि पदार्थों के स्वरूप की अनियतता से आशय है तो यह सांख्य विरुद्ध नहीं होगा, क्योंकि सत्व रजस तमस के अभिनव, आश्रय, मिथुन, जनन विधि से अनेकश: पदार्थ रचना संभव है और इसका नियत संख्या या स्वरूप बताया नहीं जा सकता। इसके अतिरिक्त अनिरुद्धवृत्ति की एक विशेषता यह भी हे कि उसमें सूक्ष्म या लिंग शरीर 18 तत्त्वों का (सप्तदश+एकम्) माना गया है। फिर भोग और प्रमा दोनों को ही अनिरुद्ध बुद्धि में स्वीकार करते हैं।
- अनिरुद्ध द्वारा स्वीकृत सूत्र पाठ विज्ञानभिक्षु के स्वीकृत पाठों से अनेक स्थलों पर भिन्न हैं। अनिरुद्धवृत्ति[3] में 'सौक्ष्म्यादनुलपब्धि' है, जब भिक्षुभाष्य में 'सौक्ष्यम्यातदनुपलिब्धि' पाठ है। यद्यपि अर्थ दृष्ट्या इससे कोई प्रभाव नहीं पड़ता तथापित ईश्वरकृष्ण की 8वीं कारिका के आधार पर 'सौक्ष्द्वम्यात्तदनुपलब्धि' का प्रचलन हो गया- ऐसा कहा जा सकता है। ध्यातव्य है कि सूत्र 1/124 में अनिरुद्धवृत्ति के अनुसार 'अव्यापि' शब्द नहीं मिलता न ही उसका अनिरुद्ध द्वारा अर्थ किया गया, जबकि विज्ञानभिक्षु के सूत्रभाष्य में न केवल 'अव्यापि' शब्द सूत्रगत है अपि तु भिक्षु ने कारिका को उद्धृत करते हुए 'अव्यापि' का अर्थ भी किया है। इसी तरह सूत्र 3/73 में अनिरुद्धवृत्ति में 'रूपै:सप्तभि... विमोच्यत्येकेन रूपेण' पाठ है जबकि भिक्षुकृत पाठ कारिका 63 के समान 'विमोच्यत्येकरूपेण' है। ऐसा प्रतीत होता है कि सांख्यसूत्रों का प्राचीन पाठ अनिरुद्धवृत्त् में यथावत् रखा गया जबकि विज्ञानभिक्षु ने कारिका के आधार पर पाठ स्वीकार किया। साथ ही यह भी ध्यातव्य है कि अनिरुद्ध ने कारिकाओं को कहीं भी उद्धृत नहीं किया तथापि कहीं-कहीं कारिकागत शब्दों का उल्लेख अवश्य किया है यथा सूत्र 1/108 की वृत्ति में 'अतिसामीप्यात्' 'मनोऽनवस्थानात्' 'व्यवधानात्' आदि। जबकि विज्ञानभिक्षु ने प्राय: सभी समान प्रसंगों पर कारिकाओं को उद्धृत किया है।