कोंडापुर: Difference between revisions
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*तरह-तरह के [[मिट्टी]] के बर्तन भी, जिन पर सुंदर चित्रकारी हुई है, खुदाई में मिले हैं। चित्रों में धर्मचक्र, त्रिरत्न तथा कमल के चिन्ह उल्लेखनीय हैं। | *तरह-तरह के [[मिट्टी]] के बर्तन भी, जिन पर सुंदर चित्रकारी हुई है, खुदाई में मिले हैं। चित्रों में [[धर्मचक्र]], [[त्रिरत्न]] तथा [[कमल]] के चिन्ह उल्लेखनीय हैं। | ||
*इनके अतिरिक्त | *इनके अतिरिक्त मूल्यवान पत्थर, सीप, [[हाथी]] के दांत, शीशे, [[लोहा|लोहे]], [[ताँबा|ताँबे]] के [[आभूषण]], माला की गुरियाँ तथा हथियार आदि भी मिले हैं। | ||
*[[कुबेर]] तथा [[बोधिसत्व]] की [[मिट्टी]] की सुंदर प्रतिमाएँ भी प्राप्त हुई हैं। | *[[कुबेर]] तथा [[बोधिसत्व]] की [[मिट्टी]] की सुंदर प्रतिमाएँ भी प्राप्त हुई हैं। | ||
*पुरातत्वविदों का विचार है कि यहाँ से प्राप्त माला की गुरियाँ लगभग तीन सहस्त्र वर्ष प्राचीन हैं। | *पुरातत्वविदों का विचार है कि यहाँ से प्राप्त माला की गुरियाँ लगभग तीन सहस्त्र [[वर्ष]] प्राचीन हैं। | ||
*कोंडापुर को उसकी पुरातत्व-विषयक मूल्यवान तथा प्रचुर सामग्री के कारण "दक्षिण की तक्षशिला" भी कहते हैं। | *कोंडापुर को उसकी पुरातत्व-विषयक मूल्यवान तथा प्रचुर सामग्री के कारण "दक्षिण की तक्षशिला" भी कहते हैं। | ||
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कोंडापुर, मेदक ज़िला, आन्ध्र प्रदेश का ऐतिहासिक स्थान है। यह हैदराबाद से 43 मील (लगभग 68.8 कि.मी.) दूर है। यहाँ कई प्राचीन खंडहरों के टीले हैं। उत्खनन द्वारा बौद्ध स्तूप, चैत्य शालाएँ और भूमिगत कोष्ट तथा भट्टियाँ आदि प्रकाश में आई हैं। ये अवशेष आंध्र कालीन हैं।[1]
- रोम सम्राट आगस्टस (37 ई. पू.-16 ई.) की एक स्वर्णमुद्रा, एक दर्जन के लगभग चाँदी के, 50 ताँबे के, 100 टीन के और सैंकड़ों सीसे के सिक्के भी खंडहरों से प्राप्त हुए हैं।
- तरह-तरह के मिट्टी के बर्तन भी, जिन पर सुंदर चित्रकारी हुई है, खुदाई में मिले हैं। चित्रों में धर्मचक्र, त्रिरत्न तथा कमल के चिन्ह उल्लेखनीय हैं।
- इनके अतिरिक्त मूल्यवान पत्थर, सीप, हाथी के दांत, शीशे, लोहे, ताँबे के आभूषण, माला की गुरियाँ तथा हथियार आदि भी मिले हैं।
- कुबेर तथा बोधिसत्व की मिट्टी की सुंदर प्रतिमाएँ भी प्राप्त हुई हैं।
- पुरातत्वविदों का विचार है कि यहाँ से प्राप्त माला की गुरियाँ लगभग तीन सहस्त्र वर्ष प्राचीन हैं।
- कोंडापुर को उसकी पुरातत्व-विषयक मूल्यवान तथा प्रचुर सामग्री के कारण "दक्षिण की तक्षशिला" भी कहते हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 228 |