नरम दल: Difference between revisions

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==गरम दल और नरम दल==
==गरम दल और नरम दल==
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==बाहरी कड़ियाँ==
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*[http://webvarta.com/script_detail.php?script_id=7612&catid=2 गुलाम भारत में ‘गरम दल‘ के स्तंभ बिपिन चंद्र पाल]
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*[https://www.prabhasakshi.com/ShowArticle.aspx?ArticleId=121022-104857-320010 नरम से गरम दल के नेता कैसे बने विट्ठलभाई]
*[https://www.prabhasakshi.com/ShowArticle.aspx?ArticleId=121022-104857-320010 नरम से गरम दल के नेता कैसे बने विट्ठलभाई]
*[http://www.sharingadda.com/view.aspx?id=503&fid=15 वन्दे मातरम Vs जन गण मन]
*[http://www.sharingadda.com/view.aspx?id=503&fid=15 वन्दे मातरम Vs जन गण मन]

Latest revision as of 14:04, 6 April 2015

नरम दल की शुरुआत भारत की आज़ादी से पूर्व कांग्रेस पार्टी के दो खेमों में विभाजित होने के कारण हुई। जिसमें एक खेमे के समर्थक बाल गंगाधर तिलक थे और दुसरे खेमे में मोती लाल नेहरू थे। मतभेद था सरकार बनाने को लेकर। मोती लाल नेहरू चाहते थे कि स्वतंत्र भारत की सरकार अंग्रेजों के साथ कोई संयोजक सरकार बने। जबकि गंगाधर तिलक कहते थे कि अंग्रेज़ों के साथ मिलकर सरकार बनाना तो भारत के लोगों को धोखा देना है। इस मतभेद के कारण लोकमान्य तिलक कांग्रेस से निकल गए और उन्होंने गरम दल बनाया। और इस तरह कांग्रेस के दो हिस्से हो गए एक नरम दल और एक गरम दल[1]

गरम दल और नरम दल

गरम दल के नेता थे लोकमान्य तिलक जैसे क्रन्तिकारी। वे हर जगह वन्दे मातरम गाया करते थे। और नरम दल के नेता थे मोती लाल नेहरू।[2] लेकिन नरम दल वाले ज्यादातर अंग्रेज़ों के साथ रहते थे। उनके साथ रहना, उनको सुनना, उनकी बैठकों में शामिल होना। हर समय अंग्रेज़ों से समझौते में रहते थे। वन्दे मातरम से अंग्रेज़ों को बहुत चिढ़ होती थी। नरम दल वाले गरम दल को चिढ़ाने के लिए 1911 में लिखा गया गीत "जन गण मन" गाया करते थे और गरम दल वाले "वन्दे मातरम"। नरम दल वाले अंग्रेज़ों के समर्थक थे और अंग्रेज़ों को ये गीत पसंद नहीं था तो अंग्रेज़ों के कहने पर नरम दल वालों ने उस समय एक हवा उड़ा दी कि मुसलमानों को वन्दे मातरम नहीं गाना चाहिए क्यों कि इसमें बुतपरस्ती (मूर्ति पूजा) है। मुसलमान मूर्ति पूजा के कट्टर विरोधी है। उस समय मुस्लिम लीग भी बन गई थी जिसके प्रमुख मोहम्मद अली जिन्ना थे।[1]

दोनों दलों का विलय

कांग्रेस का लखनऊ अधिवेशन अम्बिकाचरण मजूमदार की अध्यक्षता में 1916 ई. में लखनऊ में सम्पन्न हुआ। इस अधिवेशन में ही गरम दल तथा नरम दल, जिनके आपसी मतभेदों के कारण कांग्रेस का दो भागों में विभाजन हो गया था, उन्हें फिर एक साथ लाया गया। लखनऊ अधिवेशन में 'स्वराज्य प्राप्ति' का भी प्रस्ताव पारित किया गया। कांग्रेस ने 'मुस्लिम लीग' द्वारा की जा रही साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व की मांग को भी स्वीकार कर लिया।


  1. REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 वन्दे मातरम Vs जन गण मन (हिंदी) घर बैठे समाज सेवा के तरीके (ब्लॉग)। अभिगमन तिथि: 11 दिसम्बर, 2012।
  2. गांधीजी उस समय तक कांग्रेस की आजीवन सदस्यता से इस्तीफा दे चुके थे, वो किसी तरफ नहीं थे, लेकिन गाँधी जी दोनों पक्ष के लिए आदरणीय थे क्योंकि गाँधी जी देश के लोगों के आदरणीय थे

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख