हीमोग्लोबिन: Difference between revisions

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ऑक्सीजन को सही जगह तक पहुँचाने के बाद, हीमोग्लोबिन अपना आकार एक बार फिर बदल लेता है। हीमोग्लोबिन से मात्र इतनी ही जगह खुलती है कि ऑक्सीजन बाहर निकल जाए और फिर यह जगह बन्द हो जाती है। ऐसा इसलिए होता है कि ऑक्सीजन का कोई अणु अंदर न आ सके। वापसी यात्रा में हीमोग्लोबिन कार्बन डाइऑक्साइड को उठा ले जाता है। इसके बाद, लाल रक्‍त कोशिकाएँ दोबारा फेफड़ों में पहुँचती हैं, जहाँ हीमोग्लोबिन, कार्बन डाइऑक्साइड को छोड़कर फिर से जीवन कायम रखने वाली ऑक्सीजन को एकत्र करता है। एक लाल रक्‍त कोशिका करीब 120 दिन तक जिंदा रहती है। इस दौरान हज़ारों बार फेफड़ों से लेकर ऊतकों तक उनका सफर जारी रहता है।
ऑक्सीजन को सही जगह तक पहुँचाने के बाद, हीमोग्लोबिन अपना आकार एक बार फिर बदल लेता है। हीमोग्लोबिन से मात्र इतनी ही जगह खुलती है कि ऑक्सीजन बाहर निकल जाए और फिर यह जगह बन्द हो जाती है। ऐसा इसलिए होता है कि ऑक्सीजन का कोई अणु अंदर न आ सके। वापसी यात्रा में हीमोग्लोबिन कार्बन डाइऑक्साइड को उठा ले जाता है। इसके बाद, लाल रक्‍त कोशिकाएँ दोबारा फेफड़ों में पहुँचती हैं, जहाँ हीमोग्लोबिन, कार्बन डाइऑक्साइड को छोड़कर फिर से जीवन कायम रखने वाली ऑक्सीजन को एकत्र करता है। एक लाल रक्‍त कोशिका करीब 120 दिन तक जिंदा रहती है। इस दौरान हज़ारों बार फेफड़ों से लेकर ऊतकों तक उनका सफर जारी रहता है।
==कमी के लक्षण==
==कमी के लक्षण==
स्वस्थ पुरूष के शरीर में 13-16 व महिला में 12-14 मिलिग्राम प्रति डेसिलीटर हीमोग्लोबिन होना चाहिए। हाथ-पांव में सूजन, एकाग्रता का अभाव, जल्दी थकना व सांस फूलना आदि शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी के लक्षण हैं।
स्वस्थ पुरुष के शरीर में 13-16 व महिला में 12-14 मिलिग्राम प्रति डेसिलीटर हीमोग्लोबिन होना चाहिए। हाथ-पांव में सूजन, एकाग्रता का अभाव, जल्दी थकना व सांस फूलना आदि शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी के लक्षण हैं।


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Latest revision as of 07:41, 3 January 2016

हीमोग्लोबिन (अंग्रेज़ी: Hemoglobin) एक प्रकार का प्रोटीन होता है, जिसमें आयरन उपस्थित रहता है। यह ऑक्सीजन को शरीर के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में पहुंचाता है। इसे संक्षिप्त रूप से 'एचबी' या 'एचजीबी' भी कहा जाता है। रक्त में मौजूद हीमोग्लोबिन फेफड़ों या गिलों से शरीर के शेष भाग को[1] ऑक्सीजन का परिवहन करता है, जहाँ वह कोशिकाओं के प्रयोग के लिये ऑक्सीजन को मुक्त कर देता है।

  • यह पृष्ठवंशियों की लाल रक्त कोशिकाओं और कुछ अपृष्ठवंशियों के ऊतकों में पाया जाने वाला लौह युक्त ऑक्सीजन का परिवहन करने वाला धातु प्रोटीन है।
  • स्तनधारियों में लाल रक्त कोशिकाओं के शुष्क भाग का लगभग 97 प्रतिशत और कुल भाग[2] का लगभग 35 प्रतिशत प्रोटीन से निर्मित होता है।
  • हीमोग्लोबिन लाल रक्त कोशिकाओं और उनको उत्पन्न करने वाली प्रोजेनिटर रेखाओं के बाहर भी पाई जाती है।
  • कुछ अन्य कोशिकाओं में जो हीमोग्लोबिन युक्त होती हैं, सबस्टैंशिया नाइग्रा के ए9 डोपमिनर्जिक न्यूरान, मैक्रोफैज, अल्वियोलार कोशिकाएं और गुर्दों की मेसैंजियल कोशिकाएं शामिल हैं। इन ऊतकों में हीमोग्लोबिन की भूमिका ऑक्सीजन के परिवहन की जगह एंटीआक्सीडैंट और लौह चयापचय के नियंत्रक के रूप में होती है।

रचना

हीमोग्लोबिन अणु हाइड्रोजन, कार्बन, नाइट्रोजन, सल्फर और ऑक्सीजन के करीब 10,000 परमाणुओं से मिलकर बना होता है और ये सभी परमाणु बड़ी तरतीब से आयरन के चारों परमाणुओं के आस-पास रखे होते हैं। लेकिन आयरन के इन चार परमाणुओं को इतने सारे परमाणुओं की ज़रूरत क्यों होती है? आमतौर पर जब परमाणु में इलेक्ट्रॉन की संख्या बढ़ती या घटती है, तो वह आयन बन जाता है। हिमोग्लोबीन में आयरन के परमाणु, आयन के रूप में होते हैं और उन्हें काबू में रखना ज़रूरी होता है। क्योंकि अगर इन्हें यूँ ही छोड़ दिया जाए तो ये आयन, कोशिका को नुकसान पहुँचा सकते हैं। ये चार आयन, चार सख्त तश्तरी के बीच जड़े होते हैं। ये चारों तश्तरियाँ हीमोग्लोबिन अणु में इस तरह सावधानी से बिठायी हुई होती हैं कि ऑक्सीजन के अणु तो आयन तक पहुँच पाते हैं, लेकिन जल के अणु इस तक नहीं पहुँचते। यही वजह है कि आयन में ज़ंग नहीं लगता।

कार्य प्रणाली

हीमोग्लोबिन अणु का सफर तब शुरू होता है, जब लाल रक्त कोशिकाएँ फेफड़ों के ऐलविओलाइ पर पहुँचती हैं। साँस लेने पर ऑक्सीजन के ढेरों अणु फेफड़ों में पहुँचते हैं। यह छोटे-छोटे अणु लाल रक्त कोशिका में पहुँचते हैं। हीमोग्लोबिन के अंदर आयरन के परमाणु होते हैं और ऑक्सीजन के अणु उनसे जा चिपकते हैं। हीमोग्लोबिन में पाया जाने वाला आयरन स्वयं ऑक्सीजन से नहीं जुड़ता या छुटता। अगर आयरन के परमाणु, आयन के रूप में मौजूद न होते, तो हीमोग्लोबिन अणु किसी काम का नहीं होता। आयन बखूबी हीमोग्लोबिन में जड़े होते हैं, इसलिए ये रक्त की नलियों से होते हुए ऑक्सीजन को ऊतकों तक आसानी से पहुँचाते हैं। जैसे ही लाल रक्त कोशिकाएँ धमनियों से होकर रक्त की छोटी-छोटी नलियों में आती हैं, तो कोशिका के आस-पास का तापमान बदल जाता है। फेफड़ों के मुकाबले नलियों में तापमान गरम होता है। साथ ही, नलियों में ऑक्सीजन की कमी होती है और कार्बन डाइऑक्साइड से बनने वाले अम्ल की मात्रा ज़्यादा होती है। ये बदलाव हीमोग्लोबिन के लिए एक संकेत होता है कि उन्हें अब ऑक्सीजन को मुक्त करना है।[3]

ऑक्सीजन को सही जगह तक पहुँचाने के बाद, हीमोग्लोबिन अपना आकार एक बार फिर बदल लेता है। हीमोग्लोबिन से मात्र इतनी ही जगह खुलती है कि ऑक्सीजन बाहर निकल जाए और फिर यह जगह बन्द हो जाती है। ऐसा इसलिए होता है कि ऑक्सीजन का कोई अणु अंदर न आ सके। वापसी यात्रा में हीमोग्लोबिन कार्बन डाइऑक्साइड को उठा ले जाता है। इसके बाद, लाल रक्‍त कोशिकाएँ दोबारा फेफड़ों में पहुँचती हैं, जहाँ हीमोग्लोबिन, कार्बन डाइऑक्साइड को छोड़कर फिर से जीवन कायम रखने वाली ऑक्सीजन को एकत्र करता है। एक लाल रक्‍त कोशिका करीब 120 दिन तक जिंदा रहती है। इस दौरान हज़ारों बार फेफड़ों से लेकर ऊतकों तक उनका सफर जारी रहता है।

कमी के लक्षण

स्वस्थ पुरुष के शरीर में 13-16 व महिला में 12-14 मिलिग्राम प्रति डेसिलीटर हीमोग्लोबिन होना चाहिए। हाथ-पांव में सूजन, एकाग्रता का अभाव, जल्दी थकना व सांस फूलना आदि शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी के लक्षण हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऊतकों को
  2. जल सहित
  3. हीमोग्लोबिन एक गजब की कारीगरी (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 13 दिसम्बर, 2014।

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