प्रकृति: Difference between revisions
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'''प्रकृति''' के दृारा ही समूचे [[ब्रह्माण्ड]] की रचना की गई है। ‘प्र’ का अर्थ है ‘प्रकृष्ट’ और ‘कृति’ से सृष्टि के अर्थ का बोध होता है। प्रकृति का मूल अर्थ यह ब्रह्माण्ड है। इस ब्रह्माण्ड के एक छोटे से, टुकड़े के रूप में, इस [[पृथ्वी]] का अस्तित्व है, जिस पृथ्वी पर मनुष्य का जन्म हुआ है। इस पृथ्वी के बगैर मानव जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है, इसलिए मनुष्य का पहला कर्तव्य होता है, इस [[धरती]] की रक्षा करना, जबकि मानव सबसे अधिक दोहन इसी पृथ्वी का करते हैं।<br /> | '''प्रकृति''' के दृारा ही समूचे [[ब्रह्माण्ड]] की रचना की गई है। ‘प्र’ का अर्थ है ‘प्रकृष्ट’ और ‘कृति’ से सृष्टि के अर्थ का बोध होता है। प्रकृति का मूल अर्थ यह ब्रह्माण्ड है। इस ब्रह्माण्ड के एक छोटे से, टुकड़े के रूप में, इस [[पृथ्वी]] का अस्तित्व है, जिस पृथ्वी पर मनुष्य का जन्म हुआ है। इस पृथ्वी के बगैर मानव जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है, इसलिए मनुष्य का पहला कर्तव्य होता है, इस [[धरती]] की रक्षा करना, जबकि मानव सबसे अधिक दोहन इसी पृथ्वी का करते हैं।<ref>{{cite web |url=http://vmjm.org/nature-hindi|title=प्रकृति|accessmonthday=13 मार्च|accessyear=2016|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=WASIMJEE.COM|language=हिन्दी}}</ref> | ||
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'''उदाहरण''': [[परमाणु]], जैविक, [[रसायन विज्ञान|रासयिनिक]] और अनेक प्रकार के बारूदों का प्रयोग इसी पृथ्वी पर करते हैं और अपने आप को इस धरती का शासक कहलाना पसंद करते हैं। जब की यह शासक वर्ग इस धरती का सबसे बड़ा शोषक वर्ग है। जबकि पूरा विश्व वाकिफ है, आज के ' ग्लोबल वार्मिंग ' से, जरा सोच कर देखें कि यह धरती एक है, [[ओजोन परत|ओजोन लेयर]] एक है, [[वायुमंडल]] एक है, हम कहीं भी इस पृथ्वी को दूषित करते हैं, तो उसका प्रभाव समूचे विश्व पर पड़ता है। | '''उदाहरण''': [[परमाणु]], जैविक, [[रसायन विज्ञान|रासयिनिक]] और अनेक प्रकार के बारूदों का प्रयोग इसी पृथ्वी पर करते हैं और अपने आप को इस धरती का शासक कहलाना पसंद करते हैं। जब की यह शासक वर्ग इस धरती का सबसे बड़ा शोषक वर्ग है। जबकि पूरा विश्व वाकिफ है, आज के ' ग्लोबल वार्मिंग ' से, जरा सोच कर देखें कि यह धरती एक है, [[ओजोन परत|ओजोन लेयर]] एक है, [[वायुमंडल]] एक है, हम कहीं भी इस पृथ्वी को दूषित करते हैं, तो उसका प्रभाव समूचे विश्व पर पड़ता है। | ||
==स्त्री और प्रकृति== | ==स्त्री और प्रकृति== |
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प्रकृति के दृारा ही समूचे ब्रह्माण्ड की रचना की गई है। ‘प्र’ का अर्थ है ‘प्रकृष्ट’ और ‘कृति’ से सृष्टि के अर्थ का बोध होता है। प्रकृति का मूल अर्थ यह ब्रह्माण्ड है। इस ब्रह्माण्ड के एक छोटे से, टुकड़े के रूप में, इस पृथ्वी का अस्तित्व है, जिस पृथ्वी पर मनुष्य का जन्म हुआ है। इस पृथ्वी के बगैर मानव जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है, इसलिए मनुष्य का पहला कर्तव्य होता है, इस धरती की रक्षा करना, जबकि मानव सबसे अधिक दोहन इसी पृथ्वी का करते हैं।[1]
उदाहरण: परमाणु, जैविक, रासयिनिक और अनेक प्रकार के बारूदों का प्रयोग इसी पृथ्वी पर करते हैं और अपने आप को इस धरती का शासक कहलाना पसंद करते हैं। जब की यह शासक वर्ग इस धरती का सबसे बड़ा शोषक वर्ग है। जबकि पूरा विश्व वाकिफ है, आज के ' ग्लोबल वार्मिंग ' से, जरा सोच कर देखें कि यह धरती एक है, ओजोन लेयर एक है, वायुमंडल एक है, हम कहीं भी इस पृथ्वी को दूषित करते हैं, तो उसका प्रभाव समूचे विश्व पर पड़ता है।
स्त्री और प्रकृति
प्रकृति का दूसरा रूप है, नारी। नारी के बगैर जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती, क्योंकि बच्चा जन्म से, पहले 9 महीने माँ की कोख में पलता है और बच्चा जब जन्म लेता है तो अपनी पहली भूख माँ की छाती से, दूध पी कर मिटाता है, वही बच्चा जब बड़ा होता है, तो जवानी में नारी से वासना की भूख मिटाता है, और जब वह प्रौढ़ा अवस्था में, जब असहाय हो जाता है, तो बहू या बेटी के रूप में स्त्री पर आश्रित हो जाता है। इसका अर्थ यह हुआ की मनुष्य का जीवन, प्रकृति (स्त्री) के बगैर संभव नहीं है, इसलिए हर मनुष्य का पहला कर्तव्य होता है कि वह स्त्री की इज्जत करे, उसकी रक्षा करे, और उससे मिलने वाली खुशियों का आदर करे। जबकि इसके ठीक विपरीत आज तक स्त्री और प्रकृति के साथ, अन्याय होता आ रहा है। जब तक हम स्त्री और प्रकृति का सम्मान नहीं करेंगे, हमे खुशियाँ प्राप्त नहीं हो सकती।
हमें समझना होगा की जीवन का सही रूप स्त्री और प्रकृति ही है। बगैर स्त्री के सहयोग से पुरुष पूर्ण नहीं हो सकता। मनुष्य को अपने बचपन में झांक कर देखना होगा कि अपने परिवेश और समाज से उसे क्या मिला, और आने वाली पीढ़ी को वो क्या देने जा रहा है। पुरुष वर्ग यह समझें की नारी सिर्फ भोग का विषय नहीं, अपितु हर हाल में गौरव का विषय है, नारी मन का सम्पूर्ण सम्मान और सहयोग पाने के लिए पुरुषों को पुरुषार्थ प्राप्त करने की आवश्यकता है। पुरुषार्थ दंभ और अहंकार से परे का साहस होता है, जो पुरुषों को पुरुषोचित व्यक्तित्व प्रदान करता है। बिना चरित्र निर्माण के पुरुष नारी के सम्मान के योग्य नहीं हो सकते।
सुरक्षा
पुरुष अपने पुरुषार्थ के बल पे, नारी और प्रकृति दोनों की सुरक्षा कर सकता है, बशर्ते पुरुष अपने, पुरुषार्थ को पहचाने। मैं विश्व मानव जागरण मंच के दृारा प्रश्न करना चाहता हूँ, विश्व के तमाम सत्ताशाहों से की अगर काले धन के बैकुंठ में बैठे भगवान से उनका नाता नहीं है, तो काले धन के पीछे बैठे उन भगवानों का नाम उजागर कर काला धन वापस ला कर दिखाएं, अन्यथा सम्पूर्ण विश्व मानव समाज, यह मान ले कि काले धन के देवता, यही सत्ताधारी लोग हैं, अगर अब भी विश्व की जनता इस राह पर कोई ठोस कदम नहीं उठाती है, तो वह दिन जल्द आएगा, जब विश्व अर्थ का जो बचा हुआ 5% सफ़ेद धन है, वह भी उस ब्लैक होल में, समाहित हो जायेगा। मानव क्लिनिंग के जरिये ये सत्ताधारी लोग अमर हो जायेंगे, मानव की जगह स्वचालित रोबोट्स ले लेंगे और अन्तरिक्ष में, स्काईलैब बना कर विश्व की सत्ता वहीं से, संचालित करेंगे। मानव पूर्ण रूप से इस तंत्र से बाहर और गुलाम होगा। आज के शिक्षित युवा वर्ग को, यह समझना होगा कि इस विश्व को हम विकास की राह पर ले चलें या विनाश की राह पर ?
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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