वीवीपैट सिस्टम: Difference between revisions

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सशक्त चुनाव प्रणाली से लोकतंत्र मजबूत होता है। लोकतांत्रिक देश में चुनाव से सरकार बनती है। सही सरकार चुनी जाए इसके लिए ज़रूरी है ज़्यादा से ज़्यादा मतदान हो। जब मतदान की बात आती है तो पारदर्शिता का ध्यान रखा जाता है और यह भी बहुत जरूरी भी है। इसी बात को देखते हुए चुनावी प्रक्रिया में बदलाव होते रहते हैं। पहले जहां बैलेट पेपर के द्वारा मतदान होता था, उसके बाद अब उसके स्थान पर [[इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन]] (EVM) ने ले ली है। [[ईवीएम]] के प्रयोग के पीछे मतगणना में लगने वाले समय को कम करने और बैलेट से भरी मत पेटियों के रखरखाव में होने वाले खर्च को बचाना भी था, लेकिन ईवीएम की पारदर्शिता पर भी सवाल उठने लगे, जिसे देखते हुए [[चुनाव आयोग]] '''वोटर वेरिएफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल''' अर्थात VVPAT का कॉन्सेप्ट लेकर आया, जिसके द्वारा मतदाता को यह पता चलता है कि जिस प्रत्याशी के लिए ईवीएम में उसने बटन दबाया है, वोट उसे ही मिला है। इस जानकारी के लिए ईवीएम से वीवीपैट मशीन भी जुड़ी होती है।
==कार्य पद्धति==
==कार्य पद्धति==
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चुनावी प्रक्रिया को सरल और पारदर्शी बनाने और ईवीएम पर उठने वाले सवालों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया था। जिसके बाद '''भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड''' (BHEL) और '''इलेक्ट्रॉनिक कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड''' (ECIL) ने यह मशीन 2013 में बनाई थी। यही दोनों भारतीय कंपनियां ईवीएम भी बनाती हैं।
चुनावी प्रक्रिया को सरल और पारदर्शी बनाने और ईवीएम पर उठने वाले सवालों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया था। जिसके बाद '''भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड''' (BHEL) और '''इलेक्ट्रॉनिक कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड''' (ECIL) ने यह मशीन 2013 में बनाई थी। यही दोनों भारतीय कंपनियां ईवीएम भी बनाती हैं।
==वीवीपैट का विचार==
==वीवीपैट का विचार==
बात सन [[1890]] की है। [[अमेरिका]] में मतदाता को यह पता नहीं चलता था कि उसका दिया गया वोट सही प्रत्याशी को गया है या नहीं। इसी को लेकर [[1897]] में '''होरेशियो रोजर्स''' ने निरीक्षण किया था, जिसमें उन्होंने पाया था कि डायरेक्ट वोटिंग मशीन प्रणाली से मतदाता के पास कोई प्रूफ नहीं रहता था कि उसका दिया गया वोट कहां गया। साल गुजरा और अगले ही साल [[1899]] में '''जोसेफ ग्रे''' ने एक ऐसा तरीका बताया जिसमें मशीन से वोटिंग के वक्त एक टिकट निकले जिसे बैलेट बॉक्स में डालने से पहले मतदाता खुद देख सके। हालांकि वोट अब भी मशीन से ही डाले जा रहे थे, लेकिन एक टिकट मिलने का साधन उन्होंने सुझाया था। वोटिंग मशीन में सुधार होते गया है और ईवीएम तक पहुंच गया लेकिन पर्ची के सुधार की गुंजाइश अभी थी।
सन [[1890]] में [[अमेरिका]] में मतदाता को यह पता नहीं चलता था कि उसका दिया गया वोट सही प्रत्याशी को गया है या नहीं। इसी को लेकर [[1897]] में '''होरेशियो रोजर्स''' ने निरीक्षण किया था, जिसमें उन्होंने पाया था कि डायरेक्ट वोटिंग मशीन प्रणाली से मतदाता के पास कोई प्रूफ नहीं रहता था कि उसका दिया गया वोट कहां गया। साल गुजरा और अगले ही साल [[1899]] में '''जोसेफ ग्रे''' ने एक ऐसा तरीका बताया जिसमें मशीन से वोटिंग के वक्त एक टिकट निकले जिसे बैलेट बॉक्स में डालने से पहले मतदाता खुद देख सके। हालांकि वोट अब भी मशीन से ही डाले जा रहे थे, लेकिन एक टिकट मिलने का साधन उन्होंने सुझाया था। वोटिंग मशीन में सुधार होते गया है और ईवीएम तक पहुंच गया लेकिन पर्ची के सुधार की गुंजाइश अभी थी।
;1990
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*ईवीएम में होनी वाली गड़बड़ी को रोकने के लिए कंप्यूटर सिक्योरिटी प्रफेशनल '''ब्रूस स्नायर''' (Bruce Schneier) ने 1990 के दशक में फिर से आवाज बुलंद थी। उन्होंने ही वीवीपैट की मांग की।  
*ईवीएम में होनी वाली गड़बड़ी को रोकने के लिए कंप्यूटर सिक्योरिटी प्रफेशनल '''ब्रूस स्नायर''' (Bruce Schneier) ने 1990 के दशक में फिर से आवाज बुलंद थी। उन्होंने ही वीवीपैट की मांग की।  
*[[1992]] में अमरेकी कम्प्यूटर साइंटिस्ट '''रेबेका मरक्यूरी''' ने जोसेफ ग्रे के आइडिया को दोहराया।  
*[[1992]] में अमरेकी कम्प्यूटर साइंटिस्ट '''रेबेका मरक्यूरी''' ने जोसेफ ग्रे के आइडिया को दोहराया।  
*सन [[2000]] में मरक्यूरी ने ही मरक्यूरी मैथड पर पीएचडी की। इसमें उन्होंने मशीन से निकलने वाली वीवीपैट और मतदाता के बीच कांच की दीवार का आइडिया भी दिया जिससे वोटर इस पर्ची को अपने साथ न ले जा सकें।
*सन [[2000]] में मरक्यूरी ने ही मरक्यूरी मैथड पर पीएचडी की। इसमें उन्होंने मशीन से निकलने वाली वीवीपैट और मतदाता के बीच कांच की दीवार का आइडिया भी दिया जिससे वोटर इस पर्ची को अपने साथ न ले जा सकें।
==पहली बार वीवीपैट काप्रयोग==
==पहली बार वीवीपैट का प्रयोग==
इसका इस्तेमाल कैलिफोर्निया के सार्कमेंटो शहर में हुए चुनाव में [[2002]] में हो चुका था। इस वीवीपैट वाली मशीन को '''एवांते इंटनेशनल टेक्नोलॉजी''' ने बनाया था। अमेरिका में 27 राज्यों में वीवीपैट का इस्तेमाल आम चुनावों में होता है जबकि 18 राज्य इसे सिर्फ लोकल और विधानसभा चुनाव में ही अपनाते है। जबकि 5 ऐसे राज्य हैं जो वीवीपैट को नहीं अपनाते हैं।
इसका इस्तेमाल कैलिफोर्निया के सार्कमेंटो शहर में हुए चुनाव में [[2002]] में हो चुका था। इस वीवीपैट वाली मशीन को '''एवांते इंटनेशनल टेक्नोलॉजी''' ने बनाया था। अमेरिका में 27 राज्यों में वीवीपैट का इस्तेमाल आम चुनावों में होता है जबकि 18 राज्य इसे सिर्फ लोकल और विधानसभा चुनाव में ही अपनाते है। जबकि 5 ऐसे राज्य हैं जो वीवीपैट को नहीं अपनाते हैं।
==भारत और वीवीपैट==
==भारत और वीवीपैट==

Latest revision as of 02:32, 23 May 2019

वीवीपैट सिस्टम
विवरण वोटर वेरिएफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल
स्थापना 2002
अधिकार क्षेत्र भारत
मुख्यालय नई दिल्ली
विशेष सन 1890 में अमेरिका में मतदाता को यह पता नहीं चलता था कि उसका दिया गया वोट सही प्रत्याशी को गया है या नहीं। इसी को लेकर 1897 में होरेशियो रोजर्स ने निरीक्षण किया था, जिसमें उन्होंने पाया था कि डायरेक्ट वोटिंग मशीन प्रणाली से मतदाता के पास कोई प्रूफ नहीं रहता था कि उसका दिया गया वोट कहां गया।
अन्य जानकारी भारत में सबसे पहले वीवीपैट का प्रयोग नगालैंड के चुनाव में 2013 में हुआ था।

सशक्त चुनाव प्रणाली से लोकतंत्र मजबूत होता है। लोकतांत्रिक देश में चुनाव से सरकार बनती है। सही सरकार चुनी जाए इसके लिए ज़रूरी है ज़्यादा से ज़्यादा मतदान हो। जब मतदान की बात आती है तो पारदर्शिता का ध्यान रखा जाता है और यह भी बहुत जरूरी भी है। इसी बात को देखते हुए चुनावी प्रक्रिया में बदलाव होते रहते हैं। पहले जहां बैलेट पेपर के द्वारा मतदान होता था, उसके बाद अब उसके स्थान पर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) ने ले ली है। ईवीएम के प्रयोग के पीछे मतगणना में लगने वाले समय को कम करने और बैलेट से भरी मत पेटियों के रखरखाव में होने वाले खर्च को बचाना भी था, लेकिन ईवीएम की पारदर्शिता पर भी सवाल उठने लगे, जिसे देखते हुए चुनाव आयोग वोटर वेरिएफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल अर्थात VVPAT का कॉन्सेप्ट लेकर आया, जिसके द्वारा मतदाता को यह पता चलता है कि जिस प्रत्याशी के लिए ईवीएम में उसने बटन दबाया है, वोट उसे ही मिला है। इस जानकारी के लिए ईवीएम से वीवीपैट मशीन भी जुड़ी होती है।

कार्य पद्धति

VVPAT मशीन ईवीएम के साथ जुड़ी होती है। जब मतदाता इवीएम में किसी प्रत्याशी के नाम और चुनाव चिन्ह के सामने का बटन दबाता है तो वीवीपैट से एक पर्ची निकलती है। यह बताती है कि मतदाता ने जिस प्रत्याशी को वोट किया है, वोट उसे ही मिला है। वीवीपैट मशीन डायरेक्ट रिकॉर्डिंग इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग सिस्टम (DRE) के अंतर्गत काम करती है।

वीवीपैट पर्ची

मतदाता ने किस प्रत्याशी को वोट किया है यह वीवीपैट मशीन से निकलने वाली पर्ची में दिखता है। इस पर्ची में मतदाता को प्रत्याशी का चुनाव चिन्ह और नाम उसकी ओर से चुनी गई भाषा में दिखाई देगा। यह पर्ची 7 सेकेंड तक दिखती है फिर सीलबंद बॉक्स में गिर जाती है।

क्या होता है पर्ची का

वीवीपैट से निकलने वाली पर्ची 7 सेकेंड के बाद मशीन में ही गिर जाती है। यह मशीन पूरी तरह से पैक और लॉक होती है। अगर कोई सोचे कि ये पर्ची उसे मिल जाएगी तो ऐसा नहीं होगा केवल पोलिंग अधिकारी ही वीवीपैट की इस पर्ची तक पहुंच सकता है। गणना के दिन इन पर्चियों का मिलान इलेक्ट्रॉनिक वोटों से किया जा सकता है।

वोटों और पर्ची का मिलान

काउंटिंग के दिन वोटों की गिनती में किसी प्रकार के विवाद होने पर प्रत्याशी की मांग पर वोटों और पर्ची का मिलान किया जाता है। अब सवाल उठता है कि मिलान कैसे होता है? क्या एक-एक वोट गिना जाता है? तो जवाब आसान है। एक ईवीएम में जितने वोट पड़े हैं ये काउंटिंग के दिन मशीन की Result बटन दबाते ही पता चल जाता है कि किस कैंडिडेट को कितने वोट मिले हैं। इसी आधार वीवीपैट की पर्चियों की गिनती कर ली जाती है। इससे स्थिति साफ हो जाती है।

कितने बूथ पर होगा पर्चियों का मिलान

इससे पहले हुए चुनाव में हर विधानसभा क्षेत्र में सिर्फ 1 बूथ पर पर्चियों का मिलान होता था, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में 21 विपक्षी दलों ने याचिका दायर कर 50 फीसदी ईवीएम और वीवीपैट का मिलान करने की मांग की थी, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया है कि लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली सभी विधानसभाओं के 5 बूथों पर ईवीएम और वीवीपैट का मिलान किया जाए।

वीवीपैट मशीन का निर्माण

चुनावी प्रक्रिया को सरल और पारदर्शी बनाने और ईवीएम पर उठने वाले सवालों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया था। जिसके बाद भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BHEL) और इलेक्ट्रॉनिक कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ECIL) ने यह मशीन 2013 में बनाई थी। यही दोनों भारतीय कंपनियां ईवीएम भी बनाती हैं।

वीवीपैट का विचार

सन 1890 में अमेरिका में मतदाता को यह पता नहीं चलता था कि उसका दिया गया वोट सही प्रत्याशी को गया है या नहीं। इसी को लेकर 1897 में होरेशियो रोजर्स ने निरीक्षण किया था, जिसमें उन्होंने पाया था कि डायरेक्ट वोटिंग मशीन प्रणाली से मतदाता के पास कोई प्रूफ नहीं रहता था कि उसका दिया गया वोट कहां गया। साल गुजरा और अगले ही साल 1899 में जोसेफ ग्रे ने एक ऐसा तरीका बताया जिसमें मशीन से वोटिंग के वक्त एक टिकट निकले जिसे बैलेट बॉक्स में डालने से पहले मतदाता खुद देख सके। हालांकि वोट अब भी मशीन से ही डाले जा रहे थे, लेकिन एक टिकट मिलने का साधन उन्होंने सुझाया था। वोटिंग मशीन में सुधार होते गया है और ईवीएम तक पहुंच गया लेकिन पर्ची के सुधार की गुंजाइश अभी थी।

1990
  • ईवीएम में होनी वाली गड़बड़ी को रोकने के लिए कंप्यूटर सिक्योरिटी प्रफेशनल ब्रूस स्नायर (Bruce Schneier) ने 1990 के दशक में फिर से आवाज बुलंद थी। उन्होंने ही वीवीपैट की मांग की।
  • 1992 में अमरेकी कम्प्यूटर साइंटिस्ट रेबेका मरक्यूरी ने जोसेफ ग्रे के आइडिया को दोहराया।
  • सन 2000 में मरक्यूरी ने ही मरक्यूरी मैथड पर पीएचडी की। इसमें उन्होंने मशीन से निकलने वाली वीवीपैट और मतदाता के बीच कांच की दीवार का आइडिया भी दिया जिससे वोटर इस पर्ची को अपने साथ न ले जा सकें।

पहली बार वीवीपैट का प्रयोग

इसका इस्तेमाल कैलिफोर्निया के सार्कमेंटो शहर में हुए चुनाव में 2002 में हो चुका था। इस वीवीपैट वाली मशीन को एवांते इंटनेशनल टेक्नोलॉजी ने बनाया था। अमेरिका में 27 राज्यों में वीवीपैट का इस्तेमाल आम चुनावों में होता है जबकि 18 राज्य इसे सिर्फ लोकल और विधानसभा चुनाव में ही अपनाते है। जबकि 5 ऐसे राज्य हैं जो वीवीपैट को नहीं अपनाते हैं।

भारत और वीवीपैट

सबसे पहले वीवीपैट का प्रयोग नगालैंड के चुनाव में 2013 में हुआ था। सितंबर में हुए राज्य के नॉकसेन विधानसभा सीट के लिए वीवीपैट लगी ईवीएम का इस्तेमाल हुआ था। इसी साल मिजोरम की 40 में से 10 विधानसभा सीटों पर मतदाताओं ने वीवीपैट लगी ईवीएम से अपने वोट डाले।

वीवीपैट का पूर्णत: प्रयोग

  • 2014 के लोकसभा चुनाव की 543 सीटों में सिर्फ 8 सीटों पर वीवीपैट का इस्तेमाल किया गया। ये सीटें थीं लखनऊ, गांधीनगर, बेंगलुरू दक्षिण, चेन्नई सेंट्रल, जादवपुर, रायपुर, पटना साहिब और मिजोरम
  • साल 2017 में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में आयोग ने 52,000 वीवीपैट का इस्तेमाल किया। जबकि गोवा के विधानसभा चुनाव की सभी सीटों पर वीवीपैट वाली ईवीएम का इस्तेमाल हुआ था।
  • 2019 लोकसभा चुनाव में हर बूथ पर ईवीएम के साथ वीवीपैट वाली मशीन लगी रहेगी, जिसमें से चुनाव आयोग 20625 ईवीएम पर लगी वीवीपैट का मिलान करेगा।

ईवीएम पर प्रतिबंध

इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों का इस्तेमाल कई देशों ने शुरू किया था। लेकिन सिक्योरिटी और एक्यूरेसी को लेकर इन मशीनों पर सवाल उठने की वजह से ये वापस बैलेट पेपर लौट चुके हैं। इसमें नीदरलैंडस, इटली ने बैन लगा दिया है, जबकि जर्मनी, इंग्लैंड और फ्रांस में कभी ईवीएम का इस्तेमाल नहीं हुआ। इतना ही नहीं अमेरिका जैसे देश के कई राज्यों में बिना पेपर ट्रेल वाली ईवीएम पर प्रतिबंध है।


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