राजस्थानी लोककला: Difference between revisions

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लोककला के अन्तर्गत [[वाद्य यंत्र]], लोक संगीत और नाट्य का हवाला देना भी आवश्यक है। यह सभी सांस्कृतिक इतिहास की अमूल्य धरोहरें हैं जो इतिहास का अमूल्य अंग हैं। बीसवीं [[सदी]] के पूर्वार्द्ध तक [[राजस्थान]] में लोगों का मनोरंजन का साधन लोक नाट्य व नृत्य रहे थे। रास-लीला जैसे नाट्यों के अतिरिक्त प्रदेश में ख्याल, रम्मत, रासधारी, नृत्य, भवाई, ढाला-मारु, तुर्रा-कलंगी या माच तथा आदिवासी [[गवरी नृत्य|गवरी]] या गौरी नृत्य नाट्य, [[घूमर नृत्य|घूमर]], [[अग्नि नृत्य]], कोटा का [[चकरी नृत्य]], डीडवाणा पोकरण के [[तेराताली नृत्य]], [[मारवाड़]] की कच्ची घोड़ी का नृत्य, पाबूजी की फड़ तथा [[कठपुतली]] प्रदर्शन के नाम उल्लेखनीय हैं। पाबूजी की फड़ चित्रांकित पर्दे के सहारे प्रदर्शनात्मक विधि द्वारा गाया जाने वाला गेय-नाट्य है। लोक बादणें में नगाड़ा ढ़ोल-ढ़ोलक, मादल, [[रावण हत्था]], पूंगी, बसली, [[सारंगी]], तदूरा, तासा, थाली, [[झाँझ]] पत्तर तथा खड़ताल आदि हैं।
लोककला के अन्तर्गत [[वाद्य यंत्र]], लोक संगीत और नाट्य का हवाला देना भी आवश्यक है। यह सभी सांस्कृतिक इतिहास की अमूल्य धरोहरें हैं जो इतिहास का अमूल्य अंग हैं। बीसवीं [[सदी]] के पूर्वार्द्ध तक [[राजस्थान]] में लोगों का मनोरंजन का साधन लोक नाट्य व नृत्य रहे थे। रास-लीला जैसे नाट्यों के अतिरिक्त प्रदेश में ख्याल, रम्मत, रासधारी, नृत्य, [[भवाई नृत्य|भवाई]], ढाला-मारु, तुर्रा-कलंगी या माच तथा आदिवासी [[गवरी नृत्य|गवरी]] या गौरी नृत्य नाट्य, [[घूमर नृत्य|घूमर]], [[अग्नि नृत्य]], कोटा का [[चकरी नृत्य]], डीडवाणा पोकरण के [[तेराताली नृत्य]], [[मारवाड़]] की [[कच्ची घोड़ी नृत्य|कच्ची घोड़ी]] का नृत्य, [[पाबूजी की फड़]] तथा [[कठपुतली]] प्रदर्शन के नाम उल्लेखनीय हैं। पाबूजी की फड़ चित्रांकित पर्दे के सहारे प्रदर्शनात्मक विधि द्वारा गाया जाने वाला गेय-नाट्य है। लोक बादणें में नगाड़ा ढ़ोल-ढ़ोलक, मादल, [[रावण हत्था]], पूंगी, बसली, [[सारंगी]], तदूरा, तासा, थाली, [[झाँझ]] पत्तर तथा खड़ताल आदि हैं।
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Latest revision as of 12:45, 5 March 2015

[[चित्र:Ghoomar-Dance.jpg|thumb|250px|घूमर नृत्य, राजस्थान
Ghoomar Dance, Rajasthan]] लोककला के अन्तर्गत वाद्य यंत्र, लोक संगीत और नाट्य का हवाला देना भी आवश्यक है। यह सभी सांस्कृतिक इतिहास की अमूल्य धरोहरें हैं जो इतिहास का अमूल्य अंग हैं। बीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध तक राजस्थान में लोगों का मनोरंजन का साधन लोक नाट्य व नृत्य रहे थे। रास-लीला जैसे नाट्यों के अतिरिक्त प्रदेश में ख्याल, रम्मत, रासधारी, नृत्य, भवाई, ढाला-मारु, तुर्रा-कलंगी या माच तथा आदिवासी गवरी या गौरी नृत्य नाट्य, घूमर, अग्नि नृत्य, कोटा का चकरी नृत्य, डीडवाणा पोकरण के तेराताली नृत्य, मारवाड़ की कच्ची घोड़ी का नृत्य, पाबूजी की फड़ तथा कठपुतली प्रदर्शन के नाम उल्लेखनीय हैं। पाबूजी की फड़ चित्रांकित पर्दे के सहारे प्रदर्शनात्मक विधि द्वारा गाया जाने वाला गेय-नाट्य है। लोक बादणें में नगाड़ा ढ़ोल-ढ़ोलक, मादल, रावण हत्था, पूंगी, बसली, सारंगी, तदूरा, तासा, थाली, झाँझ पत्तर तथा खड़ताल आदि हैं।

कठपुतली
  1. REDIRECTसाँचा:मुख्य

राजस्थान की कठपुतली काफ़ी प्रसिद्ध है। यहाँ धागे से बांधकर कठपुतली नचाई जाती है। लकड़ी और कपड़े से बनीं और मध्यकालीन राजस्थानी पोशाक पहने इन कठपुतलियों द्वारा इतिहास के प्रेम प्रसंग दर्शाए जाते हैं। अमरसिंह राठौर का चरित्र काफ़ी लोकप्रिया है, क्योंकि इसमें युद्ध और नृत्य दिखाने की भरपूर संभावनाएँ हैं। इसके साथ एक सीटी-जिसे बोली कहते हैं- जिसे तेज धुन बजाई जाती है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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