अपरा विद्या: Difference between revisions

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अत: उपनिषदों का स्पष्ट मंतव्य है कि अपरा विद्या का अभ्यास करना चाहिए, जिससे इसी जन्म में, इसी शरीर से [[आत्मा]] का साक्षात्कार हो जाए।<ref>केन 2/23</ref>
अत: उपनिषदों का स्पष्ट मंतव्य है कि अपरा विद्या का अभ्यास करना चाहिए, जिससे इसी जन्म में, इसी शरीर से [[आत्मा]] का साक्षात्कार हो जाए।<ref>केन 2/23</ref>
*[[यूनानी]] तत्वज्ञ भी इसी प्रकार का भेद<ref>दोक्सा तथा एपिस्टेमी</ref> मानते थे, जिनमें से प्रथम साधारण विचार का तथा द्वितीय सत्य क संकेतक माना जाता था।
*[[यूनानी]] तत्वज्ञ भी इसी प्रकार का भेद<ref>दोक्सा तथा एपिस्टेमी</ref> मानते थे, जिनमें से प्रथम साधारण विचार का तथा द्वितीय सत्य क संकेतक माना जाता था।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक= नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=137 |url=}}</ref>


*'अपरा विद्या' वह है, जिसके द्वारा परलोक यानी स्वर्गादि लोकों के सुख, साधनों के बारे में जाना जा सकता है, इन्हीं विद्याओं के जरिए इन्हें पाने के मार्ग भी पता किए जाते हैं। ये सुख और साधन कैसे रचे जाते हैं? इन्हें कैसे इस लोक में पाया जा सकता है? इनका मानव जीवन में क्या महत्व है? ऐसी सभी बातें पता चलती हैं। इसे ही 'अपरा विद्या' कहते हैं। इसमें चारों [[वेद]]- [[ऋग्वेद]], [[सामवेद]], [[यजुर्वेद]] और [[अथर्ववेद]] भी शामिल हैं।<ref>{{cite web |url= http://religion.bhaskar.com/article/granth--what-are-the-apara-vidhya-1751860.html|title= क्या होती हैं अपरा विद्याएँ|accessmonthday= 06 अगस्त|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= दैनिक भास्कर|language= हिन्दी}}</ref> इनके अतिरिक्त-
*'अपरा विद्या' वह है, जिसके द्वारा परलोक यानी स्वर्गादि लोकों के सुख, साधनों के बारे में जाना जा सकता है, इन्हीं विद्याओं के जरिए इन्हें पाने के मार्ग भी पता किए जाते हैं। ये सुख और साधन कैसे रचे जाते हैं? इन्हें कैसे इस लोक में पाया जा सकता है? इनका मानव जीवन में क्या महत्व है? ऐसी सभी बातें पता चलती हैं। इसे ही 'अपरा विद्या' कहते हैं। इसमें चारों [[वेद]]- [[ऋग्वेद]], [[सामवेद]], [[यजुर्वेद]] और [[अथर्ववेद]] भी शामिल हैं।<ref>{{cite web |url= http://religion.bhaskar.com/article/granth--what-are-the-apara-vidhya-1751860.html|title= क्या होती हैं अपरा विद्याएँ|accessmonthday= 06 अगस्त|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= दैनिक भास्कर|language= हिन्दी}}</ref> इनके अतिरिक्त-


#वेदों का पाठ करने की विद्या को 'शिक्षा'
#[[वेद|वेदों]] का पाठ करने की विद्या को 'शिक्षा'
#[[यज्ञ]] की विधियों की विद्या यानी 'कल्प'
#[[यज्ञ]] की विधियों की विद्या यानी 'कल्प'
#शब्द प्रयोग और शब्द बोध की विद्या यानी 'व्याकरण'
#शब्द प्रयोग और शब्द बोध की विद्या यानी '[[व्याकरण]]'
#वैदिक शब्द कोष के ज्ञान यानी कि 'निरुक्त'
#वैदिक शब्द कोष के ज्ञान यानी कि '[[निरुक्तम|निरुक्त]]'
#वैदिक छंदों के भेद को बताने वाली विद्या छन्द
#वैदिक छंदों के भेद को बताने वाली विद्या [[छन्द]]
#नक्षत्रों की स्थिति का ज्ञान कराने की विद्या ज्योतिष भी अपरा विद्या में शामिल है।
#नक्षत्रों की स्थिति का ज्ञान कराने की विद्या ज्योतिष भी अपरा विद्या में शामिल है।


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==संबंधित लेख==
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अपरा विद्या उपनिषद की दृष्टि में निम्न श्रेणी का ज्ञान मानी जाती है। धर्म ग्रंथों में वेदों से लेकर पुराणों तक इन विद्याओं के बारे में बहुत विस्तार से बताया गया है।

  1. 'परा विद्या' (श्रेष्ठ ज्ञान) - जिसके द्वारा अविनाशी ब्राह्मतत्व का ज्ञान प्राप्त होता है।[2]
  2. 'अपरा विद्या' - इसके अंतर्गत वेद तथा वेदांगों के ज्ञान की गणना की जाती है।
  • उपनिषद का आग्रह परा विद्या के उपार्जन पर ही है। ऋग्वेद आदि चारों वेदों तथा शिक्षा, व्याकरण आदि छहों अंगों के अनुशीलन का फल क्या है? केवल बाहरी, नश्वर, विनाशी वस्तुओं का ज्ञान, जो आत्मतत्व की जानकारी में किसी तरह सहायक नहीं होता।
  • छांदोग्य उपनिषद[3] में नारद-सनत्कुमार-संवाद में भी इसी पार्थक्य का विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है।
  • मंत्रविद नारद सकल शास्त्रों मे पंडित हैं, परंतु आत्मविद न होने से वे शोक ग्रस्त हैं।

मन्त्रविदेवास्मि नात्मवित्‌... रिति शोक-मात्मवित्‌।

अत: उपनिषदों का स्पष्ट मंतव्य है कि अपरा विद्या का अभ्यास करना चाहिए, जिससे इसी जन्म में, इसी शरीर से आत्मा का साक्षात्कार हो जाए।[4]

  • यूनानी तत्वज्ञ भी इसी प्रकार का भेद[5] मानते थे, जिनमें से प्रथम साधारण विचार का तथा द्वितीय सत्य क संकेतक माना जाता था।[6]
  • 'अपरा विद्या' वह है, जिसके द्वारा परलोक यानी स्वर्गादि लोकों के सुख, साधनों के बारे में जाना जा सकता है, इन्हीं विद्याओं के जरिए इन्हें पाने के मार्ग भी पता किए जाते हैं। ये सुख और साधन कैसे रचे जाते हैं? इन्हें कैसे इस लोक में पाया जा सकता है? इनका मानव जीवन में क्या महत्व है? ऐसी सभी बातें पता चलती हैं। इसे ही 'अपरा विद्या' कहते हैं। इसमें चारों वेद- ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद भी शामिल हैं।[7] इनके अतिरिक्त-
  1. वेदों का पाठ करने की विद्या को 'शिक्षा'
  2. यज्ञ की विधियों की विद्या यानी 'कल्प'
  3. शब्द प्रयोग और शब्द बोध की विद्या यानी 'व्याकरण'
  4. वैदिक शब्द कोष के ज्ञान यानी कि 'निरुक्त'
  5. वैदिक छंदों के भेद को बताने वाली विद्या छन्द
  6. नक्षत्रों की स्थिति का ज्ञान कराने की विद्या ज्योतिष भी अपरा विद्या में शामिल है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मुंडक उपनिषद 1/1/4
  2. सा परा, यदा तदक्षरमधिगम्यते
  3. छांदोग्य उपनिषद 7/1/2-3
  4. केन 2/23
  5. दोक्सा तथा एपिस्टेमी
  6. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 137 |
  7. क्या होती हैं अपरा विद्याएँ (हिन्दी) दैनिक भास्कर। अभिगमन तिथि: 06 अगस्त, 2014।

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