चरु: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
(''''चरु''' धार्मिक मान्‍यताओं के अनुसार माता दुर्गा क...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
No edit summary
 
(One intermediate revision by the same user not shown)
Line 1: Line 1:
'''चरु''' धार्मिक मान्‍यताओं के अनुसार माता [[दुर्गा]] के चरणों में बंधे एक बहुत बड़े घड़े को कहा गया है। इस घड़े का उद्गम पब्‍बर नदी से हुआ है। लोगों का यह मानना है कि जब पब्‍बर नदी में बाढ़ आती है तो यह घड़ा नदी की ओर हिलने लगता है। कहा जाता है कि हाटकोटी मंदिर की परीधि के ग्रामों में जब कोई विशाल उत्सव, यज्ञ, विवाह आदि का आयोजन किया जाता था तो हाटकोटी से चरु लाकर उसमें भोजन रखा जाता था। चरु में रखा भोजन बार-बार बांटने पर भी समाप्त नहीं होता था। यह सब दैविक कृपा का प्रसाद माना जाता था। चरु को अत्यंत पवित्रता के साथ रखा जाना आवश्यक होता था अन्यथा परिणाम उलटा हो जाता था। लोक मानस में चरु को भी देवी का बिंब माना जाता रहा है। शास्त्रीय दृष्टि से चरु को हवन या यज्ञ का अन्न भी कहा जाता है।
'''चरु''' धार्मिक मान्‍यताओं के अनुसार माता [[दुर्गा]] के चरणों में बंधे एक बहुत बड़े घड़े को कहा गया है। इस घड़े का उद्गम पब्‍बर नदी से हुआ है। लोगों का यह मानना है कि जब पब्‍बर नदी में बाढ़ आती है तो यह घड़ा नदी की ओर हिलने लगता है। कहा जाता है कि [[हिमाचल प्रदेश]] में स्थित हाटकोटी मंदिर की परीधि के ग्रामों में जब कोई विशाल उत्सव, यज्ञ, [[विवाह]] आदि का आयोजन किया जाता था तो हाटकोटी से चरु लाकर उसमें भोजन रखा जाता था। चरु में रखा भोजन बार-बार बांटने पर भी समाप्त नहीं होता था। यह सब दैविक कृपा का प्रसाद माना जाता था। चरु को अत्यंत पवित्रता के साथ रखा जाना आवश्यक होता था अन्यथा परिणाम उलटा हो जाता था। लोक मानस में चरु को भी देवी का बिंब माना जाता रहा है। शास्त्रीय दृष्टि से चरु को हवन या यज्ञ का अन्न भी कहा जाता है।
{{शब्द संदर्भ नया
{{शब्द संदर्भ नया
|अर्थ=यज्ञ/हवन में आहुति देने के लिए पकाया हुअा अन्न, हव्य अन्न, हविष्यान, हव्य अन्न को पकाने का मिट्टी का बर्तन, दूध, चावल और घी के मिश्रण से बनी खीर, चरागाह,
|अर्थ=[[यज्ञ]]/हवन में आहुति देने के लिए पकाया हुअा अन्न, हव्य अन्न, हविष्यान, हव्य अन्न को पकाने का मिट्टी का बर्तन, [[दूध]], [[चावल]] और [[घी]] के मिश्रण से बनी [[खीर]], चरागाह
|व्याकरण=[[पुल्लिंग]]
|व्याकरण=[[पुल्लिंग]]
|उदाहरण=
|उदाहरण=
|विशेष=चरुआ- मिट्टी का बर्तन जिसमें प्रसूता के पीने के लिए औषध मिला जला पकाया जाता है।  
|विशेष=चरुआ- [[मिट्टी]] का बर्तन जिसमें प्रसूता के पीने के लिए औषध मिला [[जल]] पकाया जाता है।  
|विलोम=
|विलोम=
|पर्यायवाची=
|पर्यायवाची=
Line 13: Line 13:
|सभी लेख=
|सभी लेख=
}}
}}
==बाहरी कड़ियाँ==
*[http://www.himshimlalive.com/?p=6838 हिमाचल के विख्‍यात मन्दिरों में से एक “माँ हाटकोटी”]

Latest revision as of 08:43, 31 December 2015

चरु धार्मिक मान्‍यताओं के अनुसार माता दुर्गा के चरणों में बंधे एक बहुत बड़े घड़े को कहा गया है। इस घड़े का उद्गम पब्‍बर नदी से हुआ है। लोगों का यह मानना है कि जब पब्‍बर नदी में बाढ़ आती है तो यह घड़ा नदी की ओर हिलने लगता है। कहा जाता है कि हिमाचल प्रदेश में स्थित हाटकोटी मंदिर की परीधि के ग्रामों में जब कोई विशाल उत्सव, यज्ञ, विवाह आदि का आयोजन किया जाता था तो हाटकोटी से चरु लाकर उसमें भोजन रखा जाता था। चरु में रखा भोजन बार-बार बांटने पर भी समाप्त नहीं होता था। यह सब दैविक कृपा का प्रसाद माना जाता था। चरु को अत्यंत पवित्रता के साथ रखा जाना आवश्यक होता था अन्यथा परिणाम उलटा हो जाता था। लोक मानस में चरु को भी देवी का बिंब माना जाता रहा है। शास्त्रीय दृष्टि से चरु को हवन या यज्ञ का अन्न भी कहा जाता है।


बाहरी कड़ियाँ