जैसलमेर की कशीदाकारी: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replace - "|language=हिन्दी" to "|language=हिन्दी")
m (Text replace - "==टीका टिप्पणी और संदर्भ==" to "{{संदर्भ ग्रंथ}} ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==")
Line 16: Line 16:
|शोध=
|शोध=
}}
}}
{{संदर्भ ग्रंथ}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>

Revision as of 09:16, 21 March 2011

thumb|कशीदाकारी करती महिला

  • जैसलमेर में दूर-दराज गाँवों में ग्रमीण महिलाओं द्वारा कपड़े पर कशीदाकारी का कार्य बड़ी बारीकी से किया जाता है। बारीक सुई से एक-एक टांका निकालकर विभिन्न रंगों के धागों एवं ज़री से किया जाने वाला यह कशीदाकारी कार्य पुश्तैनी है।
  • यह कशीदाकारी जीविकोपार्जन के लिए ही नहीं, वरन स्वयं के पहनावे को आर्कषक बनाने तथा सौंदर्य में वृद्धि के लिए भी आवश्यक है, पीढ़ी-दर-पीढ़ी महिलाएँ यह कार्य करती आई हैं। यह कार्य ग्रामीणांचलों की महिलाओं की विशेष अभिरुचि का प्रतीक है जिसके लिए वे पारिवारिक कार्यों से अधिकतम समय निकालती हैं।[1]
  • जैसलमेर की कशीदाकारी महिलाओं द्वारा अपने सांस्कृतिक धरोहर को बनाए रखते हुए जीवन-यापन का माध्यम भी है। यह कार्य सामान्यतः वस्त्र बेचने के उद्देश्य से नहीं किया जाता होगा, परन्तु अब पर्यटन के विकास एवं विस्तार के कारण इसकी माँग काफ़ी बढ़ गई है। ऐसे कशीदाकारी वस्त्रों की माँग विदेशों में खासकर बढ़ी है। इससे राजस्थानी संस्कृति विदेशों में घर करती जा रही है।
  • कशीदाकारी के लिए राली में विभिन्न रंगों के वस्त्रों के छोटे-छोटे टुकड़े काट लिए जाते हैं। इन टुकड़ों को सुई से जोड़ा जाता है। चौकोर टुकड़ों को इस प्रकार काटा जाता है कि यह स्वतः ही डिजाइन बनती जाती है। बाद में बारीकी से सुई से सिलाई की जाती है। दूसरा चौखाना त्रिकोण कपड़े को जोड़-जोड़ कर तैयार किया जाता है। इसी क्रम में राली की चारों ओर की टुकडियों को जोड़कर किनारी बनाई जाती है।
  • बिछाने की वस्तु को लोक भाषा में 'राली' कहते हैं। इसमें कशीदाकारी का काम बारीकी से किया जा सकता है। तकियों के कवर में कांच के टुकड़ों का जमाव बड़ी सूझबूझ और बारीकी से किया जाता है।
  • कंचुली राजस्थानी महिलाओं का पुराना, प्रचलित एवं विशेष पहनावा है। कंचुली के कशीदे के बीच-बीच में काँच के टुकड़े जड़े जाते हैं। 'कंचुली' या 'कांचली' लोक भाषा का शब्द है जिसे शहरों में या सामान्यतः 'चोली' के रूप में जाना जाता है। यहाँ के वस्त्रों में नारी सौंदर्य की सुरक्षा-कसावट के लिए कांचुली को आवश्यक माना जाता है।
  • कशीदाकारी के कपड़े के बटुए को 'खलीची' के नाम से जाना जाता है। बटुए के दोनों ओर बारीकी से किया गया ज़री का कार्य बडा मनोहारी लगता है। इसमें भी टुकड़ों का जुड़ाव होता है। ऐसी 'खलीचियां' भी होती है जिन पर पीली एवं सफ़ेद ज़री का कशीदा होता है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जैसलमेर की कशीदाकारी (हिन्दी) (एचटीएम)। । अभिगमन तिथि: 28 अक्टूबर, 2010

संबंधित लेख