आलवार: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replace - "==टीका टिप्पणी और संदर्भ==" to "{{संदर्भ ग्रंथ}} ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==")
No edit summary
Line 1: Line 1:
*आलवार, [[वैष्णव सम्प्रदाय]] के सन्त थे, जिन्होंने ईसा की सातवीं आठवी शताब्दी में दक्षिण [[भारत]] में भक्तिमार्ग का प्रचार किया।  
'''आलवार''' [[वैष्णव सम्प्रदाय]] के [[सन्त]] थे, जिन्होंने ईसा की सातवीं-आठवी शताब्दी में [[दक्षिण भारत]] में '[[भक्तिमार्ग]]' का प्रचार किया। इन सन्तों में नाथमुनि, यामुनाचार्य और [[रामानुजाचार्य]] आदि प्रमुख थे। रामानुज ने '[[विशिष्टाद्वैत दर्शन|विशिष्टाद्वैत सिद्धान्त]]' का प्रतिपादन किया था, जो [[शंकराचार्य]] के '[[अद्वैतवाद]]' का संशोधित रूप था।
*इन सन्तों में नाथमुनि, यामुनाचार्य और [[रामानुजाचार्य]] प्रमुख थे।  
==धर्म रक्षक==
*रामानुज ने विशिष्टद्वैत सिद्धान्त का प्रतिपादन किया, जो [[शंकराचार्य]] के अद्वैतवाद का संशोधित रूप था।
जब कभी भी [[भारत]] में विदेशियों के प्रभाव से [[धर्म]] के लिए ख़तरा उत्पन्न हुआ, तब-तब अनेक सन्तों ने लोक मानस में [[धर्म]] की पवित्र धारा बहाकर उसकी रक्षा करने का प्रयत्न किया। दक्षिण भारत के आलवार सन्तों की भी यही भूमिका रही है। 'आलवार' का अर्थ होता है कि "जिसने अध्यात्म-ज्ञान रूपी [[समुद्र]] में गोता लगाया हो।" आलवार संत '[[गीता]]' की सजीव मूर्ति थे। वे [[उपनिषद|उपनिषदों]] के उपदेश के जीते जागते उदाहरण थे।<ref name="mcc">{{cite web |url=http://www.livehindustan.com/news/editorial/guestcolumn/article1-story-57-62-75659.html |title=आलवार सन्त|accessmonthday=19 मई|accessyear=2012|last=देवसरे|first=डॉक्टर हरिकृष्ण|authorlink= |format= |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref>
====संख्या====
आलवार सन्तों की संख्या 12 मानी गई है। उन्होंने भगवान [[नारायण]], [[श्रीराम]] और [[श्रीकृष्ण]] आदि के गुणों का वर्णन करने वाले हज़ारों पदों की रचना की थी। इन पदों को सुनकर व गाकर आज भी लोग [[भक्ति रस]] में डूब जाते हैं। आलवार संत प्रचार और लोकप्रियता से दूर ही रहते थे। ये इतने सरल और सीधे स्वभाव के संत होते थे कि न तो किसी को दुख पहुंचाते थे और न ही किसी से कुछ अपेक्षा करते थे।<ref name="mcc"/>


{{प्रचार}}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}}
{{लेख प्रगति
|आधार=
|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1
|माध्यमिक=
|पूर्णता=
|शोध=
}}
{{संदर्भ ग्रंथ}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{भारत के संत}}
{{भारत के संत}}
__INDEX__
[[Category:हिन्दू धर्म प्रवर्तक और संत]]
[[Category:हिन्दू धर्म प्रवर्तक और संत]]
[[Category:धर्म प्रवर्तक और संत]]
[[Category:धर्म प्रवर्तक और संत]]
[[Category:हिन्दू धर्म कोश]]
[[Category:हिन्दू धर्म कोश]][[Category:हिन्दू धर्म]]
__INDEX__
__NOTOC__

Revision as of 13:31, 19 May 2012

आलवार वैष्णव सम्प्रदाय के सन्त थे, जिन्होंने ईसा की सातवीं-आठवी शताब्दी में दक्षिण भारत में 'भक्तिमार्ग' का प्रचार किया। इन सन्तों में नाथमुनि, यामुनाचार्य और रामानुजाचार्य आदि प्रमुख थे। रामानुज ने 'विशिष्टाद्वैत सिद्धान्त' का प्रतिपादन किया था, जो शंकराचार्य के 'अद्वैतवाद' का संशोधित रूप था।

धर्म रक्षक

जब कभी भी भारत में विदेशियों के प्रभाव से धर्म के लिए ख़तरा उत्पन्न हुआ, तब-तब अनेक सन्तों ने लोक मानस में धर्म की पवित्र धारा बहाकर उसकी रक्षा करने का प्रयत्न किया। दक्षिण भारत के आलवार सन्तों की भी यही भूमिका रही है। 'आलवार' का अर्थ होता है कि "जिसने अध्यात्म-ज्ञान रूपी समुद्र में गोता लगाया हो।" आलवार संत 'गीता' की सजीव मूर्ति थे। वे उपनिषदों के उपदेश के जीते जागते उदाहरण थे।[1]

संख्या

आलवार सन्तों की संख्या 12 मानी गई है। उन्होंने भगवान नारायण, श्रीराम और श्रीकृष्ण आदि के गुणों का वर्णन करने वाले हज़ारों पदों की रचना की थी। इन पदों को सुनकर व गाकर आज भी लोग भक्ति रस में डूब जाते हैं। आलवार संत प्रचार और लोकप्रियता से दूर ही रहते थे। ये इतने सरल और सीधे स्वभाव के संत होते थे कि न तो किसी को दुख पहुंचाते थे और न ही किसी से कुछ अपेक्षा करते थे।[1]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 देवसरे, डॉक्टर हरिकृष्ण। आलवार सन्त (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 19 मई, 2012।

संबंधित लेख