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भागलपुर शहर प्रमुख रेल और सड़क मार्गो से जुड़ा है।
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==कृषि और खनिज==
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यह कृषि उत्पादो और वस्त्रो का व्यापार केंद्र है। खाद्यान्न और तिलहन यहाँ पर उगाई जाने वाली प्रमुख फ़सलें है। चीनी मिट्टी, अग्निसह मिट्टी और अभ्रक के भंडार यहाँ पाए जाते हैं। इसके आसपास के क्षेत्र में जलोढ मैदान और दक्षिण में छोटा नागपुर पठार की वनाच्छादित अपरी भूमि है। गंगा और चंदन नदियों द्वारा इस क्षेत्र की सिंचाई होती है।
यह कृषि उत्पादो और वस्त्रो का व्यापार केंद्र है। खाद्यान्न और तिलहन यहाँ पर उगाई जाने वाली प्रमुख फ़सलें है। चीनी मिट्टी, अग्निसह मिट्टी और अभ्रक के भंडार यहाँ पाए जाते हैं। इसके आसपास के क्षेत्र में जलोढ मैदान और दक्षिण में [[छोटा नागपुर]] पठार की वनाच्छादित अपरी भूमि है। गंगा और चंदन नदियों द्वारा इस क्षेत्र की सिंचाई होती है।
 
==उद्योग और व्यापार==
==उद्योग और व्यापार==



Revision as of 07:58, 13 July 2011

भागलपुर शहर (भूतपूर्व सुजानगड), पूर्वी बिहार रज्य, पूवोत्तर भारत गंगा नदी के ठीक दक्षिण में भागलपुर संभाग का मुख्यालय है। बिहार के ऐतिहासिक नगरों में से एक है। बरारी की गुफाएं दर्शनीय हैं। विष्णु मन्दिर, शिव मन्दिर प्रसिद्ध है। यहाँ 'टसर रेशम' का उत्पादन होता है। गंगा के दाँए तट पर ऊँची भूमि पर भागलपुर एक ऐतिहासिक नगर है। यह अपनी तटीय स्थिति के कारण सदैव सामरिक महत्त्व का नगर रहा है। सावन के महीने में प्रतिवर्ष बिहार के विभिन्न भागों से लाखों तीर्थयात्री आकर, उत्तर की ओर बहने वाली पवित्र गंगा नदी के जल को लेकर, देवघर में स्थित वैद्यनाथ धाम जाकर शिव जी पर चढ़ाते हैं। नदी के बीच में अजगैबीनाथ का मन्दिर एक छोटी सी पहाड़ी पर स्थित है। इसका धार्मिक और प्राकृतिक दृश्य के चलते विशेष महत्त्व है। 1864 में भागलपुर को नगरपालिका के रूप में गठित किया गया।

इतिहास

भागलपुर शहर से 32 किलोमीटर दूर कहलगाँव में स्थित अंतीचक गाँव में प्राचीन बौद्ध विश्वविद्यालय, विक्रमशिला के अवशेष पाए जाते हैं। जिसका निर्माण पाल वंश के राजा धर्मपाल ने किया था। इसकी खुदाई 1960 में की गई थी। खुदाई से प्राप्त वस्तुओं में से अधिकांश को राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली में रखा गया है। विक्रमशिला विश्वविद्यालय को 12वीं शताब्दी में बख़्तियार ख़िलज़ी ने नष्ट कर दिया था। ईसा पूर्व 541 में निर्मित 'श्री चम्पापुर जैन सिद्ध क्षेत्र' के नाम से एक प्रसिद्ध जैन मन्दिर भागलपुर रेलवे स्टेशन से 3 किलोमीटर दूर स्थित है। जो 12वें तीर्थकर भगवान वासुपूज्य के जन्मस्थान के रूप में जाना जाता है। प्रतिवर्ष यहाँ पर 50 हज़ार से अधिक जैन तीर्थयात्री दीपावली और होली (नवम्बर और मार्च) के बीच आते हैं। 5 एकड़ में फैले मन्दिर की कारीगरी विशेष रूप से दर्शनीय है। मन्दिर को प्रवेश द्वार जयपुर के 'हवा महल' से मिलता-जुलता है।

दर्शनीय स्थल

इस मन्दिर में विशेष रूप से दर्शनीय है, 1500 वर्ष पुरानी 12वें जैन तीर्थकर भगवान वासुपूज्य की ताँबे और सोने से बनी मूर्ति तथा उनकी चरण पादुका। इस मन्दिर के शिखर की ऊँचाई 73 फीट है। जो कि सफ़ेद संगमरमर से निर्मित है। भगवान वासुपूज्य की मूर्ति एक ही सफ़ेद संगमरमर के टुकड़े से बनाई गई है, जो कि 21 फीट ऊँची है।

परिवहन

भागलपुर शहर प्रमुख रेल और सड़क मार्गो से जुड़ा है।

कृषि और खनिज

यह कृषि उत्पादो और वस्त्रो का व्यापार केंद्र है। खाद्यान्न और तिलहन यहाँ पर उगाई जाने वाली प्रमुख फ़सलें है। चीनी मिट्टी, अग्निसह मिट्टी और अभ्रक के भंडार यहाँ पाए जाते हैं। इसके आसपास के क्षेत्र में जलोढ मैदान और दक्षिण में छोटा नागपुर पठार की वनाच्छादित अपरी भूमि है। गंगा और चंदन नदियों द्वारा इस क्षेत्र की सिंचाई होती है।

उद्योग और व्यापार

प्रदेश उद्योगों में चावल और चीनी की मिलें और ऊनी कपड़ों की बुनाई शामिल है। भागलपुर रेशम के उत्पादन के लिए भी विख्यात है। यहाँ एक रेशम उत्पादन संस्थान और एक कृषि अनुसंधान केंन्द स्थापित किए गए है।

पाँच तत्व

भागलपुर जैनियों के लिए विशेष रूप से पूज्य स्थल है, क्योंकि यही एक ऐसा सिद्ध क्षेत्र है जहाँ जैनियों के सभी पाँचों तत्त्व एक साथ पाये जाते हैं। ये पाँच तत्त्व हैं-

  • गर्भ,
  • जन्म,
  • तपस्या,
  • ज्ञान और
  • निर्वाण।

शिक्षण संस्थान

भागलपुर विश्‍वविद्यालय यहाँ का प्रमुख शिक्षा केन्द्र हैं। भागलपुर शहर में तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय (1960) से संबद्ध भागलपुर इंजिनीयरिंग कॉलज जे .एल .एन .मेडिकल कॉलेज और अनेक विश्वविद्यालय है।

जनसंख्या

2001 की जनगणना के अनुसार भागलपुर शहर कुल जनंसख्या 3,40,349 है।

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