कनिंघम: Difference between revisions

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*[[मथुरा]] में 1871 और 1882-83 में खुदाई का कार्य कराया।  
*[[मथुरा]] में 1871 और 1882-83 में खुदाई का कार्य कराया।  
*सर अलेक्जंडर कनिंघम ने [[भारत]] के पुरातत्त्व विभाग के निदेशक के रूप में 1870 से 1885 ई. तक काम किया। उसकी रूचि विविध विषयों में थी।   
*सर अलेक्जंडर कनिंघम ने [[भारत]] के पुरातत्त्व विभाग के निदेशक के रूप में 1870 से 1885 ई. तक काम किया। उसकी रूचि विविध विषयों में थी।   
*1833 ई. में एक सैनिक शिक्षार्थी के रूप में वह ब्रिटेन से [[भारत]] आया, सैनिक इंजीनियर बनकर युद्धों में भाग लिया तथा बाद में बर्मा और पश्चिमोत्तर प्रांत का मुख्य अभियंता रहा।   
*1833 ई. में एक सैनिक शिक्षार्थी के रूप में वह ब्रिटेन से [[भारत]] आया, सैनिक इंजीनियर बनकर युद्धों में भाग लिया तथा बाद में बर्मा (वर्तमान [[म्यांमार]]) और पश्चिमोत्तर प्रांत का मुख्य अभियंता रहा।   
*1861 ई. में सेवानिवृत्त होने पर वह पुरातत्त्व के काम में लगा तथा अपने अध्ययन के आधार पर मृदाशास्त्र का अधिकारी विद्वान माना जाने लगा।   
*1861 ई. में सेवानिवृत्त होने पर वह पुरातत्त्व के काम में लगा तथा अपने अध्ययन के आधार पर मृदाशास्त्र का अधिकारी विद्वान माना जाने लगा।   
*उसने अनेक पुरातत्त्व-स्थलों की खोज की तथा इस विषय पर कई [[ग्रंथ]] लिखे, जिनका महत्त्व आज भी है।  
*उसने अनेक पुरातत्त्व-स्थलों की खोज की तथा इस विषय पर कई [[ग्रंथ]] लिखे, जिनका महत्त्व आज भी है।  

Revision as of 08:14, 22 January 2013

Alexander Cunningham
अलेक्ज़ॅन्डर कॅनिंघम|thumb|200px
अलेक्ज़ॅन्डर कॅनिंघम (1814-1893) को भारत के पुरातत्त्व अन्वेषण का पिता कहा जाता है।

  • मथुरा में 1871 और 1882-83 में खुदाई का कार्य कराया।
  • सर अलेक्जंडर कनिंघम ने भारत के पुरातत्त्व विभाग के निदेशक के रूप में 1870 से 1885 ई. तक काम किया। उसकी रूचि विविध विषयों में थी।
  • 1833 ई. में एक सैनिक शिक्षार्थी के रूप में वह ब्रिटेन से भारत आया, सैनिक इंजीनियर बनकर युद्धों में भाग लिया तथा बाद में बर्मा (वर्तमान म्यांमार) और पश्चिमोत्तर प्रांत का मुख्य अभियंता रहा।
  • 1861 ई. में सेवानिवृत्त होने पर वह पुरातत्त्व के काम में लगा तथा अपने अध्ययन के आधार पर मृदाशास्त्र का अधिकारी विद्वान माना जाने लगा।
  • उसने अनेक पुरातत्त्व-स्थलों की खोज की तथा इस विषय पर कई ग्रंथ लिखे, जिनका महत्त्व आज भी है।
  • जनरल एलेक्जेंडर कनिंघम ने भारतीय भूगोल लिखते समय यह माना कि क्लीसीबोरा नाम वृन्दावन के लिए है। इसके विषय में उन्होंने लिखा है कि कालिय नाग के वृन्दावन निवास के कारण यह नगर `कालिकावर्त' नाम से जाना गया। यूनानी लेखकों के क्लीसोबोरा का पाठ वे `कालिसोबोर्क' या `कालिकोबोर्त' मानते हैं। उन्हें इंडिका की एक प्राचीन प्रति में `काइरिसोबोर्क' पाठ मिला, जिससे उनके इस अनुमान को बल मिला। [1] परंतु सम्भवतः कनिंघम का यह अनुमान सही नहीं है।
  • कनिंघम ने अपनी 1882-83 की खोज-रिपोर्ट में क्लीसोबोरा के विषय में अपना मत बदल कर इस शब्द का मूलरूप `केशवपुरा'[2] माना है और उसकी पहचान उन्होंने केशवपुरा या कटरा केशवदेव से की है। केशव या श्रीकृष्ण का जन्मस्थान होने के कारण यह स्थान केशवपुरा कहलाता है।
  • कनिंघम का मत है कि उस समय में यमुना की प्रधान धारा वर्तमान कटरा केशवदेव की पूर्वी दीवार के नीचे से बहती रही होगी और दूसरी ओर मथुरा शहर रहा होगा। कटरा के कुछ आगे से दक्षिण-पूर्व की ओर मुड़ कर यमुना की वर्तमान बड़ी धारा में मिलती रही होगी। [3] जनरल कनिंघम का यह मत विचारणीय है। यह कहा जा सकता है कि किसी काल में यमुना की प्रधान धारा या उसकी एक बड़ी शाखा वर्तमान कटरा के नीचे से बहती रही हो और इस धारा के दोनों तरफ नगर रहा हो, मथुरा से भिन्न `केशवपुर' या `कृष्णपुर' नाम का नगर वर्तमान कटरा केशवदेव और उसके आस-पास होता तो उसका उल्लेख पुराणों या अन्य सहित्य में अवश्य होता।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. देखिए कनिंघम्स ऎंश्यंट जिओग्रफी आफ इंडिया (कलकत्ता 1924) पृ0 429।
  2. लैसन ने भाषा-विज्ञान के आधार पर क्लीसोबोरा का मूल संस्कृत रूप `कृष्णपुर' माना है। उनका अनुमान है कि यह स्थान आगरा में रहा होगा। (इंडिश्चे आल्टरटुम्सकुण्डे, वॉन 1869, जिल्द 1, पृष्ठ 127, नोट 3।
  3. कनिंघम-आर्केंओलाजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, ऐनुअल रिपोर्ट, जिल्द 20 (1882-83), पृ0 31-32।

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