पुरन्दर क़िला: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "काफी " to "काफ़ी ") |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "मुगल " to "मुग़ल ") |
||
Line 7: | Line 7: | ||
*पुरन्दर को उन्होंने यदा-कदा अपने शासन का केन्द्र भी बनाया। 1650 ई. में बीजापुरी सेनाओं ने पुरन्दर क़िले पर आक्रमण किये परंतु शिवाजी ने उन्हें असफल बना दिया। 1665 ई. में [[औरंगजेब]] ने राजा [[जयसिंह]] को शिवाजी के विरुद्ध भेजा। वज्रगढ़ को जीतकर जयसिंह ने पुरन्दर के क़िले में शिवाजी को घेर लिया। पुरन्दर क़िले पर अत्यधिक दबाव डाला गया। | *पुरन्दर को उन्होंने यदा-कदा अपने शासन का केन्द्र भी बनाया। 1650 ई. में बीजापुरी सेनाओं ने पुरन्दर क़िले पर आक्रमण किये परंतु शिवाजी ने उन्हें असफल बना दिया। 1665 ई. में [[औरंगजेब]] ने राजा [[जयसिंह]] को शिवाजी के विरुद्ध भेजा। वज्रगढ़ को जीतकर जयसिंह ने पुरन्दर के क़िले में शिवाजी को घेर लिया। पुरन्दर क़िले पर अत्यधिक दबाव डाला गया। | ||
*यह निश्चय होने पर कि पुरन्दर की रक्षा सम्भव नहीं है, शिवाजी ने आत्मसमर्पण कर दिया। [[22 जून]], 1665 ई. को दोनों के बीच '[[पुरन्दर की सन्धि]]' हुई। यह सन्धि इतिहास प्रसिद्ध है। | *यह निश्चय होने पर कि पुरन्दर की रक्षा सम्भव नहीं है, शिवाजी ने आत्मसमर्पण कर दिया। [[22 जून]], 1665 ई. को दोनों के बीच '[[पुरन्दर की सन्धि]]' हुई। यह सन्धि इतिहास प्रसिद्ध है। | ||
*इसके अनुसार शिवाजी ने 23 क़िले [[ | *इसके अनुसार शिवाजी ने 23 क़िले [[मुग़ल काल|मुगलों]] को दे दिये तथा सिर्फ 12 अपने पास रखे। | ||
*शिवाजी ने पुरन्दर के क़िले पर [[8 मार्च]], 1670 को फिर से अपना अधिकार कर लिया। | *शिवाजी ने पुरन्दर के क़िले पर [[8 मार्च]], 1670 को फिर से अपना अधिकार कर लिया। | ||
Revision as of 10:52, 8 December 2011
चित्र:Icon-edit.gif | इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव" |
पुरन्दर क़िला पुणे के निकट स्थित एक ऐतिहासिक क़िला है।
- पुरन्दर का महत्त्व सम्पूर्ण मराठा इतिहास में रहा है।
- शिवाजी की रणनीतिक कुशलता सुदृढ़ दुर्गों पर आधारित थी। पूना में शिवाजी के निवास स्थान की सुरक्षा जिन दो मजबूत क़िलों से होती थी, उनमें से एक पुरन्दर का क़िला था, दूसरा दक्षिण-पश्चिम में सिहंगढ़ का क़िला था।
- पुरन्दर क़िले पर सत्रहवीं शताब्दी के मध्य में बीजापुर की ओर से एक ब्राह्मण अधिकारी नीलोजी नीलकण्ठ सरनायक नियुक्त था। 1648 ई. में शिवाजी ने बड़े नाटकीय ढँग से पुरन्दर क़िले पर कब्जा कर लिया।
- सरनायक परिवार मराठा सेवा में आ गया। 1649 ई. में जब बीजापुर की सेनाओं ने शिवाजी पर आक्रमण किया तो पुरन्दर काफ़ी महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुआ।
- पुरन्दर को उन्होंने यदा-कदा अपने शासन का केन्द्र भी बनाया। 1650 ई. में बीजापुरी सेनाओं ने पुरन्दर क़िले पर आक्रमण किये परंतु शिवाजी ने उन्हें असफल बना दिया। 1665 ई. में औरंगजेब ने राजा जयसिंह को शिवाजी के विरुद्ध भेजा। वज्रगढ़ को जीतकर जयसिंह ने पुरन्दर के क़िले में शिवाजी को घेर लिया। पुरन्दर क़िले पर अत्यधिक दबाव डाला गया।
- यह निश्चय होने पर कि पुरन्दर की रक्षा सम्भव नहीं है, शिवाजी ने आत्मसमर्पण कर दिया। 22 जून, 1665 ई. को दोनों के बीच 'पुरन्दर की सन्धि' हुई। यह सन्धि इतिहास प्रसिद्ध है।
- इसके अनुसार शिवाजी ने 23 क़िले मुगलों को दे दिये तथा सिर्फ 12 अपने पास रखे।
- शिवाजी ने पुरन्दर के क़िले पर 8 मार्च, 1670 को फिर से अपना अधिकार कर लिया।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख