शशांक: Difference between revisions

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यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता कि दक्षिण और पूर्वी बंगाल शशांक के राज्य के अंतर्गत थे अथवा नहीं। लेकिन पश्चिम में उसका राज्य [[मगध]] तक और दक्षिण में [[उड़ीसा]] की [[चिल्का झील]] तक अवश्य विस्तृत था। पश्चिम की ओर साम्राज्य विस्तार करने के प्रयास में शशांक को [[मौखरि वंश|मौखरि]] शासकों से संघर्ष करना आवश्यक हो गया और उसने मौखरियों के शत्रु और [[मालवा]] के शासक देवगुप्त से सन्धि कर ली।
यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता कि दक्षिण और पूर्वी बंगाल शशांक के राज्य के अंतर्गत थे अथवा नहीं। लेकिन पश्चिम में उसका राज्य [[मगध]] तक और दक्षिण में [[उड़ीसा]] की [[चिल्का झील]] तक अवश्य विस्तृत था। पश्चिम की ओर साम्राज्य विस्तार करने के प्रयास में शशांक को [[मौखरि वंश|मौखरि]] शासकों से संघर्ष करना आवश्यक हो गया और उसने मौखरियों के शत्रु और [[मालवा]] के शासक देवगुप्त से सन्धि कर ली।
====कन्नौज की विजय====
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देवगुप्त ने अपने मौखरि प्रतिद्वन्द्वी गृहवर्मा को पराजित करके मार डाला और अपने मित्र के सहायतार्थ आगे बढ़कर शशांक ने [[कन्नौज]] पर अधिकार कर लिया। इस पर [[राज्यवर्धन]] ने, जो उन्हीं दिनों [[थानेश्वर]] का शासक हुआ था और जिसकी बहन [[राज्यश्री]] गृहवर्मा के मारे जाने से विधवा हो गई थी, शशांक पर आक्रमण कर दिया। घटनाओं का क्रम क्या रहा, यह निश्चय करना कठिन है, किन्तु राज्यवर्धन को शशांक अथवा उसके अनुचरों ने मार डाला।
देवगुप्त ने अपने मौखरि प्रतिद्वन्द्वी [[गृहवर्मा]] को पराजित करके मार डाला और अपने मित्र के सहायतार्थ आगे बढ़कर शशांक ने [[कन्नौज]] पर अधिकार कर लिया। इस पर [[राज्यवर्धन]] ने, जो उन्हीं दिनों [[थानेश्वर]] का शासक हुआ था और जिसकी बहन [[राज्यश्री]] गृहवर्मा के मारे जाने से विधवा हो गई थी, शशांक पर आक्रमण कर दिया। घटनाओं का क्रम क्या रहा, यह निश्चय करना कठिन है, किन्तु राज्यवर्धन को शशांक अथवा उसके अनुचरों ने मार डाला।
==हर्षवर्धन की कार्यवाही==
==हर्षवर्धन की कार्यवाही==
राज्यवर्धन के इस प्रकार मारे जाने पर उसके भ्राता और उत्तराधिकारी [[हर्षवर्धन]] ने [[कामरूप]] के शासक [[भास्कर वर्मा]] से सन्धि कर ली, जो शशांक की शक्ति से भयभीत तथा उसके विरुद्ध हर्षवर्धन की सहायता का आकांक्षी था। इस प्रकार दोनों ओर से आक्रमण की आशंका से शशांक को पीछे हटकर अपनी राजधानी वापस जाना पड़ा। उसके वापस जाने पर दोनों शत्रुओं ने उसके विजित राज्य को विशेष क्षति पहुँचायी।
राज्यवर्धन के इस प्रकार मारे जाने पर उसके भ्राता और उत्तराधिकारी [[हर्षवर्धन]] ने [[कामरूप]] के शासक [[भास्कर वर्मा]] से सन्धि कर ली, जो शशांक की शक्ति से भयभीत तथा उसके विरुद्ध हर्षवर्धन की सहायता का आकांक्षी था। इस प्रकार दोनों ओर से आक्रमण की आशंका से शशांक को पीछे हटकर अपनी राजधानी वापस जाना पड़ा। उसके वापस जाने पर दोनों शत्रुओं ने उसके विजित राज्य को विशेष क्षति पहुँचायी।

Revision as of 07:11, 29 November 2012

शशांक को बंगाल के यशस्वी शासकों में गिना जाता है। उसने बंगाल प्रदेश की सीमाओं के बाहर भी अपने राज्य का बहुत विस्तार किया। उसका वंश अज्ञात है और गुप्त वंश के साथ उसको सम्बन्धित करना केवल अनुमान मात्र है। उसकी उत्पत्ति चाहे जिस वंश में भी हुई हो, लेकिन इतना निश्चित है कि 606 ई. के पूर्व ही वह गौड़ अथवा बंगाल का शासक बन चुका था और उसकी राजधानी 'कर्णसुवर्ण' थी, जिसकी पहचान मुर्शिदाबाद ज़िले के अंतर्गत 'रांगामाटी' नामक कस्बे से की गयी है।

साम्राज्य विस्तार

यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता कि दक्षिण और पूर्वी बंगाल शशांक के राज्य के अंतर्गत थे अथवा नहीं। लेकिन पश्चिम में उसका राज्य मगध तक और दक्षिण में उड़ीसा की चिल्का झील तक अवश्य विस्तृत था। पश्चिम की ओर साम्राज्य विस्तार करने के प्रयास में शशांक को मौखरि शासकों से संघर्ष करना आवश्यक हो गया और उसने मौखरियों के शत्रु और मालवा के शासक देवगुप्त से सन्धि कर ली।

कन्नौज की विजय

देवगुप्त ने अपने मौखरि प्रतिद्वन्द्वी गृहवर्मा को पराजित करके मार डाला और अपने मित्र के सहायतार्थ आगे बढ़कर शशांक ने कन्नौज पर अधिकार कर लिया। इस पर राज्यवर्धन ने, जो उन्हीं दिनों थानेश्वर का शासक हुआ था और जिसकी बहन राज्यश्री गृहवर्मा के मारे जाने से विधवा हो गई थी, शशांक पर आक्रमण कर दिया। घटनाओं का क्रम क्या रहा, यह निश्चय करना कठिन है, किन्तु राज्यवर्धन को शशांक अथवा उसके अनुचरों ने मार डाला।

हर्षवर्धन की कार्यवाही

राज्यवर्धन के इस प्रकार मारे जाने पर उसके भ्राता और उत्तराधिकारी हर्षवर्धन ने कामरूप के शासक भास्कर वर्मा से सन्धि कर ली, जो शशांक की शक्ति से भयभीत तथा उसके विरुद्ध हर्षवर्धन की सहायता का आकांक्षी था। इस प्रकार दोनों ओर से आक्रमण की आशंका से शशांक को पीछे हटकर अपनी राजधानी वापस जाना पड़ा। उसके वापस जाने पर दोनों शत्रुओं ने उसके विजित राज्य को विशेष क्षति पहुँचायी।

मृत्यु

हर्ष और भास्कर वर्मा को भी शीघ्र ही अपने अपने राज्यों की स्थिति सम्भालने के लिए वापस जाना पड़ा और शशांक का गौड़, मगध और चिल्का झील तक 'उत्कल' (उड़ीसा) पर अधिकार मृत्यु पर्यन्त बना रहा। उसकी मृत्यु 619 ई. के उपरान्त, किन्तु 637 ई. के पूर्व कभी हुई, ऐसा अनुमान किया जाता है।

मत-मतांतर

शशांक के सिक्कों से स्पष्ट है कि वह शिव का उपासक था, किन्तु चीनी यात्री ह्वेनसांग द्वारा वर्णित उसके बौद्ध धर्म से विद्वेष और बौद्धों पर अत्याचार की कहानियों में कितनी सत्यता है, यह निश्चय कर पाना कठिन है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय इतिहास कोश |लेखक: सच्चिदानन्द भट्टाचार्य |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 445 |


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