फूँक वाद्य: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replace - "आवाज " to "आवाज़ ")
Line 17: Line 17:
यह वाद्य यंत्र पीतल से बनाया जाता है। इसकी आकृति एक बड़े बिगुल के समान होती है। इसका प्रयोग मांगलिक अवसरों पर किया जाता है। इसके साथ- साथ ढ़ोल भी बजाया जाता है।
यह वाद्य यंत्र पीतल से बनाया जाता है। इसकी आकृति एक बड़े बिगुल के समान होती है। इसका प्रयोग मांगलिक अवसरों पर किया जाता है। इसके साथ- साथ ढ़ोल भी बजाया जाता है।
==सिंगी==
==सिंगी==
यह वाद्य यंत्र सींग से बनाया जाता है। साधु संन्यासी इस वाद्य यंत्र का प्रयोग प्राय: भगवान को स्मरण करने के पश्र्चात् करते हैं।  
{{Main|सिंगी}}
यह वाद्य यंत्र सींग से बनाया जाता है। साधु संन्यासी इस वाद्य यंत्र का प्रयोग प्राय: भगवान को स्मरण करने के पश्र्चात् करते हैं।
 
==शंख==
==शंख==
{{main|शंख}}
{{main|शंख}}

Revision as of 11:56, 13 October 2012

चित्र:Icon-edit.gif इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव"

फूँक से बजाने वाले वाद्य यंत्रों को फूँक वाद्य कहा जाता है।

बाँसुर

इसे बाँस से बनाया जाता है। सात स्वरों वाले इस वाद्य यंत्र को लोक वादक तथा शास्त्रीय वादक अपने-अपने तरीके से बजाते हैं। बाँसुरी को स्वर से अत्यधिक बजाते हैं।

अलगोजा

  1. REDIRECTसाँचा:मुख्य

यह बाँसुरी के समान होता है। वादक दो अलगोजे मुँह में रखकर एक साथ बजाता है। राजस्थान में अनेक प्रकार के अलगोजे प्रचलित हैं। राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों, विशिष्ट रूप से आदिवासी क्षेत्रों में इस यंत्र का प्रयोग किया जाता है। इसे कालबेलिए भी बजाते हैं।

शहनाई

  1. REDIRECTसाँचा:मुख्य

इसका आकार चिलम के समान होता है। यह सागवान शीशम की लकड़ी से बनाई जाती है। इस यंत्र के ऊपरी सिरे पर ताड़ के पत्ते की तूंती लगाई जाती है। शहनाई का प्रयोग मांगलिक अवसरों पर विशेष रूप से किया जाता है। इसे नगारची बजाते हैं। शहनाई और नगाड़े का जोड़ा होता है। राजस्थान में विवाह के अवसर पर इसको बजाया जाता है।

पूंगी

इसका निर्माण तूँबे से किया जाता है। तूँबे का ऊपरी भाग लम्बा तथा पतला होता है तथा नीचे का भाग गोल होता है। तूँबे के गोल भाग में छेद करके दो नालियाँ लगाई जाती हैं। गोल भाग की इन नालियों में स्वरों के छ्दे होते हैं। इस वाद्य यंत्र को मुख्यत: कालबेलियों द्वारा बजाया जाता है। माना जाता है कि पूंगी में साँप को मोहित करने की शक्ति होती है।

भूंगल

यह भवाई जाति का प्रमुख वाद्य यंत्र है। तीन हाथ लम्बा यह वाद्य यंत्र पीतल का बना होता है। तीन हाथ लम्बा यह वाद्य यंत्र पीतल का बना होता है। यह यंत्र बांकिया के समान होता है। इस वाद्य यंत्र को भेरी भी कहा जाता है। इसे रण- क्षेत्र में बजाया जाता है।

बांकिया

यह वाद्य यंत्र पीतल से बनाया जाता है। इसकी आकृति एक बड़े बिगुल के समान होती है। इसका प्रयोग मांगलिक अवसरों पर किया जाता है। इसके साथ- साथ ढ़ोल भी बजाया जाता है।

सिंगी

  1. REDIRECTसाँचा:मुख्य

यह वाद्य यंत्र सींग से बनाया जाता है। साधु संन्यासी इस वाद्य यंत्र का प्रयोग प्राय: भगवान को स्मरण करने के पश्र्चात् करते हैं।

शंख

  1. REDIRECTसाँचा:मुख्य

यह एक जंतु का अंडा होता है जो समुद्र में उत्पन्न होती है। इसकी गम्भीर आवाज़ दूर- दूर तक सूनी जा सकती है। मंदिर में इसे आरती के समय बजाया जाता है। महाभारत युद्ध में शंख का अत्यधिक महत्त्व था। शंखनाद के साथ युद्ध प्रारंभ होता था। जिस प्रकार प्रत्येक रथी सेनानायक का अपना ध्वज होता था- उसी प्रकार प्रमुख योद्धाओं के पास अलग- अलग शंख भी होते थे। भीष्मपर्वांतर्गत गीता उपपर्व के प्रारंभ में विविध योद्धाओं के नाम दिए गए हैं। कृष्ण के शंख का नाम पांचजन्य था, अर्जून का देवदत्त, युधिष्ठिर का अनंतविजय, भीम का पौण्ड, नकुल का सुघोष और सहदेव का मणिपुष्पक।

मशक

कलाकार लोकोत्सव, शादी-विवाह के अवसर पर मशक वादक शुभ एंव मांगलिक स्वरलहरी बिखेरते हैं। राजस्थान में प्राचीन काल से ही अतिथि का सत्कार एंव उनकी अगवानी के निमित्त इस वाद्ययंत्र का उपयोग किया जाता रहा है। अनवरत गति से बजने वाले इस साज में स्वागत गीत, महिलाओं द्वारा गाए जाने वाले मांगलिक, महिला- पुरुषों द्वारा गाए जाने वाले परम्परागत लोकगीतों तथा फ़िल्मी गीतों की धुनों को बखूबी ढ़ोल- मजीरे की संगत के साथ बजाया जाता है। वाद्य मशक बकरी की पूरी खाल से निर्मित एक थैलेनुमा साज है, जिसके दोनों ओर छेद होते हैं। एक छेद वाली नली को वादक मुँह में लेकर आवश्यकता के अनुसार हवा भरता है तथा दूसरे छेद पर लकड़ी की चपटी नली होती है। जिसके ऊंपरी भाग पर छ: तथा नीचे की ओर एक छेद होता है। इसमें एक ओर वाल्व लगे होते हैं, जो मुख से फूँक द्वारा हवा भरने के काम आते हैं। इस वाद्य को बगल में लेकर धीरे- धीरे दबाने से सांगीतिक ध्वनि निकलती है। यह वाद्य राजस्थान के अलवर तथा सवाईमाधोपुर क्षेत्र में विशष लोकप्रिय है। मशक- वादन में पारंगत लोक- कलाकार श्रवण कुमार ने इस कला को न केवल देश वरन् अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलवाई।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख