दसवीं लोकसभा (1991): Difference between revisions
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दसवीं लोकसभा के चुनाव वर्ष 1991 में 20 मई, 12 जून और 15 जून को आयोजित हुए। ये चुनाव तीन चरणों में कराये गए थे। क्योंकि पिछली लोकसभा को सरकार के गठन के केवल 16 महीने बाद ही भंग कर दिया गया था, इसीलिए ये लोकसभा चुनाव मध्यावधि चुनाव थे। 1991 के यह चुनाव कांग्रेस, भाजपा और राष्ट्रीय मोर्चा- जनता दल (एस)- के गठबंधन के बीच एक त्रिशंकु मुकाबला था।
मंडल-मंदिर चुनाव
यह चुनाव विपरीत वातावरण में सम्पन्न हुए थे। दो सबसे महत्त्वपूर्ण चुनावी मुद्दों- मंडल आयोग और राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद के चलते इन्हें 'मंडल-मंदिर चुनाव' भी कहा गया। जहाँ एक ओर वी. पी. सिंह की सरकार द्वारा लागू मंडल आयोग की रिपोर्ट में सरकारी नौकरियों में अन्य पिछड़ी जातियों को 27 फीसदी आरक्षण दिया गया था, जिसके कारण बड़े पैमाने पर हिंसा हुई और सामान्य जातियों ने देश भर में इसका विरोध किया, वहीं दूसरी ओर मंदिर अयोध्या के विवादित बाबरी मस्जिद ढांचे का प्रतिनिधित्व करता था, जिसे 'भारतीय जनता पार्टी' अपने प्रमुख चुनावी मुद्दे के रूप में उपयोग कर रही थी।
राजीव गाँधी की हत्या
राम मंदिर तथा मस्जिद मुद्दे के फलस्वरुप देश के कई हिस्सों में दंगे हुए, जिस कारण मतदाताओं का जाति और धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण हो गया। राष्ट्रीय मोर्चे में फैली अव्यवस्था ने कांग्रेस की वापसी के संकेत स्पष्ट कर दिए थे। चुनाव तीन चरणों में 20 मई, 12 जून और 15 जून को आयोजित किए गए। मतदान के पहले दौर के एक दिन बाद ही 20 मई को पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी की 'तमिल ईलम लिबरेशन टाइगर' द्वारा श्रीपेरंबदूर में चुनाव प्रचार के समय हत्या कर दी गई। चुनाव के शेष दिनों को जून के मध्य तक के लिए स्थगित कर दिए गया। अंत में मतदान 12 जून और 15 जून को सम्पन्न हुआ। इस संसदीय चुनावों में अब तक का सबसे कम मतदान हुआ, इसमें केवल 53 प्रतिशत मतदाताओं ने ही मत डाले।
कांग्रेस की जीत
सन 1999 के इन लोकसभा चुनावों के परिणामों से एक त्रिशंकु संसद का निर्माण हुआ। इसमें 232 सीटों के साथ कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी, जबकि 120 सीटों के साथ भाजपा दूसरे स्थान पर रही। जनता दल मात्र 59 सीट प्राप्त कर सका। 21 जून को कांग्रेस के पी. वी. नरसिंह राव ने प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली। पी. वी. नरसिंह राव नेहरू-गांधी परिवार से अलग दूसरे कांग्रेसी प्रधानमंत्री थे।
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