रसखान- उपादान लक्षणा: Difference between revisions
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यहै दु:ख भारी गहै डगर हमारी माँझ, | यहै दु:ख भारी गहै डगर हमारी माँझ, | ||
नगर हमारे ग्वाल बगर हमारे को।<ref>सुजान रसखान, 46</ref></poem> | नगर हमारे ग्वाल बगर हमारे को।<ref>सुजान रसखान, 46</ref></poem> | ||
तीसरी पंक्ति में उपादान लक्षणा है। द्वार-द्वार नाचने वाला आज हमारे सामने | तीसरी पंक्ति में उपादान लक्षणा है। द्वार-द्वार नाचने वाला आज हमारे सामने आँखेंं नचा रहा है। उपादान लक्षणा से विदित हो रहा है कि वह हमारे साथ छल कर रहा है। | ||
Latest revision as of 05:22, 4 February 2021
जहां वाक्यार्थ की संगति के लिए अन्य अर्थ के लक्षित किये जाने पर भी अपना अर्थ न छूटे वहां उपादान लक्षणा होती है।[1] रसखान के काव्य में उपादान लक्षणा के सफल प्रयोग के दर्शन होते हैं।
अन्त ते न आयौ याही गाँवरे को जायौ
माई बापरे जिवायौ प्याइ दूध बारे बारे को।
सोई रसखानि पहिवानि कानि छाँडि चाहै,
लोचन नचावत नचैया द्वारे द्वारे को।
मैया की सौं सोच कछू मटकी उतारे को न
गोरस के ढारे को न चीर चीरि डारे को।
यहै दु:ख भारी गहै डगर हमारी माँझ,
नगर हमारे ग्वाल बगर हमारे को।[2]
तीसरी पंक्ति में उपादान लक्षणा है। द्वार-द्वार नाचने वाला आज हमारे सामने आँखेंं नचा रहा है। उपादान लक्षणा से विदित हो रहा है कि वह हमारे साथ छल कर रहा है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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