हनुमान बजरंग बाण: Difference between revisions
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तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्घ करैं हनुमान ।।</poem></span></blockquote> | |||
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जय हनुमन्त सन्त हितकारी । सुन लीजै प्रभु अरज हमारी ।। | |||
जन के काज विलम्ब न कीजै । आतुर दौरि महा सुख दीजै ।। | जन के काज विलम्ब न कीजै । आतुर दौरि महा सुख दीजै ।। | ||
जैसे कूदि सुन्धु वहि पारा । सुरसा बद पैठि विस्तारा ।। | जैसे कूदि सुन्धु वहि पारा । सुरसा बद पैठि विस्तारा ।। | ||
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पाठ करै बजरंग बाण की । हनुमत रक्षा करैं प्राम की ।। | पाठ करै बजरंग बाण की । हनुमत रक्षा करैं प्राम की ।। | ||
यह बजरंग बाण जो जापै । ताते भूत प्रेत सब कांपै ।। | यह बजरंग बाण जो जापै । ताते भूत प्रेत सब कांपै ।। | ||
धूप देय अरु जपै हमेशा । ताके तन नहिं रहै कलेशा ।।</poem> | धूप देय अरु जपै हमेशा । ताके तन नहिं रहै कलेशा ।।</poem></span></blockquote> | ||
<poem>प्रेम प्रतीतहि कपि भजै, सदा धरैं उर ध्यान । | '''दोहा''' | ||
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्घ करैं हनुमान ।। | <blockquote><span style="color: blue"><poem>प्रेम प्रतीतहि कपि भजै, सदा धरैं उर ध्यान । | ||
</poem> | तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्घ करैं हनुमान ।।</poem></span></blockquote> | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
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Revision as of 21:16, 3 January 2011
[[चित्र:Hanuman.jpg|thumb|250px|हनुमान
Hanuman]]
दोहा
निश्चय प्रेम प्रतीत ते, विनय करें सनमान ।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्घ करैं हनुमान ।।
चौपाई
जय हनुमन्त सन्त हितकारी । सुन लीजै प्रभु अरज हमारी ।।
जन के काज विलम्ब न कीजै । आतुर दौरि महा सुख दीजै ।।
जैसे कूदि सुन्धु वहि पारा । सुरसा बद पैठि विस्तारा ।।
आगे जाई लंकिनी रोका । मारेहु लात गई सुर लोका ।।
जाय विभीषण को सुख दीन्हा । सीता निरखि परम पद लीन्हा ।।
बाग़ उजारी सिन्धु महं बोरा । अति आतुर जमकातर तोरा ।।
अक्षय कुमार मारि संहारा । लूम लपेट लंक को जारा ।।
लाह समान लंक जरि गई । जय जय धुनि सुरपुर मे भई ।।
अब विलम्ब केहि कारण स्वामी । कृपा करहु उन अन्तर्यामी ।।
जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता । आतुर होय दुख हरहु निपाता ।।
जै गिरिधर जै जै सुखसागर । सुर समूह समरथ भटनागर ।।
जय हनु हनु हनुमंत हठीले । बैरिहि मारु बज्र की कीले ।।
गदा बज्र लै बैरिहिं मारो । महाराज प्रभु दास उबारो ।।
ऊँ कार हुंकार महाप्रभु धावो । बज्र गदा हनु विलम्ब न लावो ।।
ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा । ऊँ हुं हुं हनु अरि उर शीशा ।।
सत्य होहु हरि शपथ पाय के । रामदूत धरु मारु जाय के ।।
जय जय जय हनुमन्त अगाधा । दुःख पावत जन केहि अपराधा ।।
पूजा जप तप नेम अचारा । नहिं जानत हौं दास तुम्हारा ।।
वन उपवन, मग गिरि गृह माहीं । तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं ।।
पांय परों कर जोरि मनावौं । यहि अवसर अब केहि गोहरावौं ।।
जय अंजनि कुमार बलवन्ता । शंकर सुवन वीर हनुमन्ता ।।
बदन कराल काल कुल घालक । राम सहाय सदा प्रति पालक ।।
भूत प्रेत पिशाच निशाचर । अग्नि बेताल काल मारी मर ।।
इन्हें मारु तोहिं शपथ राम की । राखु नाथ मरजाद नाम की ।।
जनकसुता हरि दास कहावौ । ताकी शपथ विलम्ब न लावो ।।
जय जय जय धुनि होत अकाशा । सुमिरत होत दुसह दुःख नाशा ।।
चरण शरण कर जोरि मनावौ । यहि अवसर अब केहि गौहरावौं ।।
उठु उठु उठु चलु राम दुहाई । पांय परों कर जोरि मनाई ।।
ॐ चं चं चं चं चपल चलंता । ऊँ हनु हनु हनु हनु हनुमन्ता ।।
ऊँ हं हं हांक देत कपि चंचल । ऊँ सं सं सहमि पराने खल दल ।।
अपने जन को तुरत उबारो । सुमिरत होय आनन्द हमारो ।।
यह बजरंग बाण जेहि मारै । ताहि कहो फिर कौन उबारै ।।
पाठ करै बजरंग बाण की । हनुमत रक्षा करैं प्राम की ।।
यह बजरंग बाण जो जापै । ताते भूत प्रेत सब कांपै ।।
धूप देय अरु जपै हमेशा । ताके तन नहिं रहै कलेशा ।।
दोहा
प्रेम प्रतीतहि कपि भजै, सदा धरैं उर ध्यान ।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्घ करैं हनुमान ।।
संबंधित लेख
- REDIRECT साँचा:आरती स्तुति स्तोत्र