घृत: Difference between revisions

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Revision as of 09:03, 21 March 2011

  • यज्ञ की सामग्री में से एक मुख्य पदार्थ है।
  • अग्नि में इसकी स्वतंत्र आहुति दी जाती है।
  • हवन कर्म में सर्वप्रथम 'आधार' एवं 'आज्यभाग' आहुतियों के नाम से अग्नि में घृत टपकाने का विधान है।
  • साफ़ किये हुए मक्खन का उल्लेख ऋग्वेद में यज्ञ उपादान घृत के अर्थ में हुआ है।
  • ऐतरेय ब्राह्मण के भाष्य में सायण ने घृत एवं सर्पि का अन्तर करते हुए कहा है कि सर्पि पिघलाया हुआ मक्खन है और घृत जमा हुआ (धनीभूत) मक्खन है। किन्तु यह अन्तर उचित नहीं जान पड़ता, क्योंकि मक्खन अग्नि में डाला जाता था।
  • अग्नि को 'घृतप्रतीक', 'घृतपृष्ठ', 'घृतप्रसह' एवं 'घृतप्री' कहा गया है।
  • जल का व्यवहार मक्खन को शुद्ध करने के लिए होता था, एतदर्थ उसे 'घृतपू' कहा जाता था।
  • ऐतरेय ब्राह्मण में आज्य, घृत, आयुत तथा नवनीत को क्रमश: देवता, मानव, पितृ एवं शिशु का प्रतीक माना गया है।
  • श्रौतसूत्रों, गृह्यसूत्रों, स्मृतियों तथा पद्धतियों में घृत के उपयोग का विस्तृत वर्णन पाया जाता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ